Tuesday, September 10, 2019

19 ऊंट की कहानी

एक गाँव में एक व्यक्ति के पास 19 ऊंट थे।

एक दिन उस व्यक्ति की मृत्यु हो गयी।

मृत्यु के पश्चात वसीयत पढ़ी गयी। जिसमें लिखा था कि:

मेरे 19 ऊंटों में से आधे मेरे बेटे को,19 ऊंटों में से एक चौथाई मेरी बेटी को, और 19 ऊंटों में से पांचवाँ हिस्सा मेरे नौकर को दे दिए जाएँ।

सब लोग चक्कर में पड़ गए कि ये बँटवारा कैसे हो ?

19 ऊंटों का आधा अर्थात एक ऊँट काटना पड़ेगा, फिर तो ऊँट ही मर जायेगा। चलो एक को काट दिया तो बचे 18 उनका एक चौथाई साढ़े चार- साढ़े चार. फिर?

सब बड़ी उलझन में थे। फिर पड़ोस के गांव से एक बुद्धिमान व्यक्ति को बुलाया गया।

वह बुद्धिमान व्यक्ति अपने ऊँट पर चढ़ कर आया, समस्या सुनी, थोडा दिमाग लगाया, फिर बोला इन 19 ऊंटों में मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो।

सबने सोचा कि एक तो मरने वाला पागल था, जो ऐसी वसीयत कर के चला गया, और अब ये दूसरा पागल आ गया जो बोलता है कि उनमें मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो। फिर भी सब ने सोचा बात मान लेने में क्या हर्ज है।

19+1=20 हुए।

20 का आधा 10, बेटे को दे दिए।

20 का चौथाई 5, बेटी को दे दिए।

20 का पांचवाँ हिस्सा 4, नौकर को दे दिए।

10+5+4=19

बच गया एक ऊँट, जो बुद्धिमान व्यक्ति का था...

वो उसे लेकर अपने गॉंव लौट गया।

इस तरह 1 उंट मिलाने से, बाकी 19 उंटो का बंटवारा सुख, शांति, संतोष व आनंद से हो गया।

सो हम सब के जीवन में भी 19 ऊंट होते हैं।

5 ज्ञानेंद्रियाँ
(आँख, नाक, जीभ, कान, त्वचा)

5 कर्मेन्द्रियाँ
(हाथ, पैर, जीभ, मूत्र द्वार, मलद्वार)

5 प्राण
(प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान)

और

4 अंतःकरण
(मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार)

कुल 19 ऊँट होते हैं।

सारा जीवन मनुष्य इन्हीं 19 ऊँटो के बँटवारे में उलझा रहता है।

और जब तक उसमें आत्मा रूपी ऊँट नहीं मिलाया जाता यानी के आध्यात्मिक जीवन नहीं जिया जाता, तब तक सुख, शांति, संतोष व आनंद की प्राप्ति नहीं हो सकती।

यह है 19 ऊंट की कहानी...

संस्कृत की प्रसिद्ध लोकोक्तियाँ

1. संघे शक्ति: कलौ युगे। – एकता में बल है।
2. अविवेक: परमापदां पद्म। – अज्ञानता विपत्ति का घर है।
3. कालस्य कुटिला गति:। – विपत्ति अकेले नहीं आती।
4. अल्पविद्या भयंकरी। – नीम हकीम खतरे जान।
5. बह्वारम्भे लघुक्रिया। – खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
6. वरमद्य कपोत: श्वो मयूरात। – नौ नगद न तेरह उधार।
7. वीरभोग्य वसुन्धरा। – जिकसी लाठी उसकी भैंस।
8. शठे शाठ्यं समाचरेत् – जैसे को तैसा।
9. दूरस्था: पर्वता: रम्या:। – दूर के ढोल सुहावने लगते हैं।
10. बली बलं वेत्ति न तु निर्बल : जौहर की गति जौहर जाने।
11. अतिपर्दे हता लङ्का। – घमंडी का सिर नीचा।
12. अर्धो घटो घोषमुपैति नूनम्। – थोथा चना बाजे घना।
13. कष्ट खलु पराश्रय:। – पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।
14. क्षते क्षारप्रक्षेप:। – जले पर नमक छिड़कना।
15. विषकुम्भं पयोमुखम। – तन के उजले मन के काले।
16. जलबिन्दुनिपातेन क्रमश: पूर्यते घट:। – बूँद-बूँद घड़ा भरता है।
17. गत: कालो न आयाति। – गया वक्त हाथ नहीं आता।
18. पय: पानं भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनम्। – साँपों को दूध पिलाना उनके विष को बढ़ाना है।
19. सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्धं त्य​जति पण्डित:। – भागते चोर की लंगोटी सही।
20. यत्नं विना रत्नं न लभ्यते। – सेवा बिन मेवा नहीं।