Saturday, June 27, 2020

हनुमान जी का कर्जा

रामजी लंका पर विजय प्राप्त करके आए तो, भगवान ने विभीषण जी, जामवंत जी, अंगद जी, सुग्रीव जी सब को अयोध्या से विदा किया। 
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तो सब ने सोचा हनुमान जी को प्रभु बाद में बिदा करेंगे, लेकिन रामजी ने हनुमानजी को विदा ही नहीं किया,
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अब प्रजा बात बनाने लगी कि क्या बात सब गए हनुमानजी नहीं गए अयोध्या से !
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अब दरबार में काना फूसी शुरू हुई कि हनुमानजी से कौन कहे जाने के लिए, तो सबसे पहले माता सीता की बारी आई कि आप ही बोलो कि हनुमानजी चले जाएं।
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माता सीता बोलीं मै तो लंका में विकल पड़ी थी, मेरा तो एक एक दिन एक एक कल्प के समान बीत रहा था, 
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वो तो हनुमानजी थे,जो प्रभु मुद्रिका ले के गए, और धीरज बंधवाया कि...!

कछुक दिवस जननी धरु धीरा।
कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।

निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।
तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥
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मै तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी अयोध्या छोड़कर जाने के लिए, आप किसी और से बुलावा लो।
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अब बारी आयी लखनजी की तो लक्ष्मण जी ने कहा, मै तो लंका के रणभूमि में वैसे ही मरणासन्न अवस्था में पड़ा था, पूरा रामदल विलाप कर रहा था।

प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।
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ये तो जो खड़ा है, वो हनुमानजी का लक्ष्मण है। मै कैसे बोलूं, किस मुंह से बोलूं कि हनुमानजी अयोध्या से चले जाएं !
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अब बारी आयी भरतजी की, अरे ! भरतजी तो इतना रोए, कि रामजी को अयोध्या से निकलवाने का कलंक तो वैसे ही लगा है मुझपे, हनुमानजी का सब मिलके और लगवा दो !
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और दूसरी बात ये कि...!

बीतें अवधि रहहिं जौं प्राना।
अधम कवन जग मोहि समाना
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मैंने तो नंदीग्राम में ही अपनी चिता लगा ली थी, वो तो हनुमानजी थे जिन्होंने आकर ये खबर दी कि...!
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रिपु रन जीति सुजस सुर गावत।
सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥
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मैं तो बिल्कुल न बोलूं हनुमानजी से अयोध्या छोड़कर चले जाओ, आप किसी और से बुलवा लो।
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अब बचा कौन..? सिर्फ शत्रुहन भैया। जैसे ही सब ने उनकी तरफ देखा, तो शत्रुहन भैया बोल पड़े.. 
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मैंने तो पूरी रामायण में कहीं नहीं बोला, तो आज ही क्यों बुलवा रहे हो, और वो भी हनुमानजी को अयोध्या से निकलने के लिए, 
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जिन्होंने ने माता सीता, लखन भैया, भरत भैया सब के प्राणों को संकट से उबारा हो ! किसी अच्छे काम के लिए कहते बोल भी देता। मै तो बिल्कुल भी न बोलूं।
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अब बचे तो मेरे राघवेन्द्र सरकार... 
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माता सीता ने कहा प्रभु ! आप तो तीनों लोकों ये स्वामी है, और देखती हूं आप हनुमानजी से सकुचाते है। और आप खुद भी कहते हो कि...!
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प्रति उपकार करौं का तोरा।
सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥
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आखिर आप के लिए क्या अदेय है प्रभु ! 
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राघवजी ने कहा देवी कर्जदार जो हूं, हनुमान जी का, इसीलिए तो..
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सनमुख होइ न सकत मन मोरा
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देवी ! हनुमानजी का कर्जा उतारना आसान नहीं है, इतनी सामर्थ राम में नहीं है, जो "राम नाम" में है। 
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क्योंकि कर्जा उतारना भी तो बराबरी का ही पड़ेगा न...! यदि सुनना चाहती हो तो सुनो हनुमानजी का कर्जा कैसे उतारा जा सकता है।
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पहले हनुमान विवाह करें,
लंकेश हरें इनकी जब नारी।
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मुदरी लै रघुनाथ चलै,
निज पौरुष लांघि अगम्य जे वारी।
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अायि कहें, सुधि सोच हरें, 
तन से, मन से होई जाएं उपकारी।
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तब रघुनाथ चुकायि सकें, 
ऐसी हनुमान की दिव्य उधारी।।
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देवी ! इतना आसान नहीं है, हनुमान जी का कर्जा चुकाना। मैंने ऐसे ही नहीं कहा था कि...!
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं
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मैंने बहुत सोच विचार कर कहा था। लेकिन यदि आप कहती हो तो कल राज्य सभा में बोलूंगा कि हनुमानजी भी कुछ मांग लें।
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दूसरे दिन राज्य सभा में सब एकत्र हुए, सब बड़े उत्सुक थे कि हनुमानजी क्या मांगेंगे, और रामजी क्या देंगे।
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राघवजी ने कहा ! हनुमान सब लोगों ने मेरी बहुत सहायता की और मैंने, सब को कोई न कोई पद दे दिया। 
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विभीषण और सुग्रीव को क्रमशः लंका और किष्कन्धा का राजपद, अंगद को युवराज पद। तो तुम भी अपनी इच्छा बताओ...?
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हनुमानजी बोले ! प्रभु आप ने जितने नाम गिनाए, उन सब को एक एक पद मिला है, और आप कहते हो...!
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तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना
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तो फिर यदि मै दो पद मांगू तो..?
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सब लोग सोचने लगे बात तो हनुमानजी भी ठीक ही कह रहे हैं। 
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रामजी ने कहा ! ठीक है, मांग लो, 
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सब लोग बहुत खुश हुए कि आज हनुमानजी का कर्जा चुकता हुआ।
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हनुमानजी ने कहा ! प्रभु जो पद आप ने सबको दिए हैं, उनके पद में राजमद हो सकता है, तो मुझे उस तरह के पद नहीं चाहिए, जिसमे राजमद की शंका हो, 
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तो फिर...! आप को कौन सा पद चाहिए ?
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हनुमानजी ने रामजी के दोनों चरण पकड़ लिए, प्रभु ..! हनुमान को तो बस यही दो पद चाहिए।
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हनुमत सम नहीं कोउ बड़भागी।
नहीं कोउ रामचरण अनुरागी।।

जय श्री राम।।

Friday, June 5, 2020

सच्ची प्रार्थना

बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं, तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं । क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है?

आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर - अपने घर की व्यापार की - राजनीति की चर्चा करते हैं, परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई थी । वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं । आप इस लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं । यह श्लोक इस प्रकार है -

अनायासेन मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

इस श्लोक का अर्थ है अनायासेन मरणम्...... अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं ।

बिना देन्येन जीवनम्......... अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो । ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके ।

देहांते तव सानिध्यम ........अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले ।

देहि में परमेशवरम्..... हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।

यह प्रार्थना करें गाड़ी, लाडी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन यह नहीं मांगना है, यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं । इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए ।
यह प्रार्थना है, याचना नहीं है । याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है; वह याचना है, वह भीख है।

हम प्रार्थना करते हैं, प्रार्थना का अर्थ विशेष होता है अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ । अर्थना अर्थात निवेदन । ठाकुर जी से प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या करना है, यह श्लोक बोलना है :

सब से जरूरी बात
जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए । उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं । आंखें बंद क्यों करना - हम तो दर्शन करने आए हैं । भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, मुखारविंद का, शृंगार का, सम्पूर्ण आनंद लें । आंखों में भर ले - स्वरूप को । दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे, तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं, उस स्वरूप का ध्यान करें । मंदिर में नेत्र बंद नहीं करना । बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए, तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें । नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें।

यहीं शास्त्र हैं, यहीं बड़े बुजुर्गो का कहना हैं !

Tuesday, June 2, 2020

Intelligence and Wisdom

This is so so good ... I had never known these  profound distinctions between Intelligence and Wisdom
(Quotes from our ancient 
Books )


1. Intelligence leads to arguments.
Wisdom leads to settlements.
2. Intelligence is power of will.
Wisdom is power OVER  will.
3. Intelligence is heat, it burns.
Wisdom is warmth, it comforts.
4. Intelligence is pursuit of knowledge, it tires the seeker.
Wisdom is pursuit of truth, it inspires the seeker.
5. Intelligence is holding on.
Wisdom is letting go.
6. Intelligence leads you.
Wisdom guides you.
7. An intelligent man thinks he knows everything.
A wise man knows that there is still something to learn.
8. An intelligent man always tries to prove his point.
A wise man knows there really is no point.
9. An intelligent man freely gives unsolicited advice.
A wise man keeps his counsel until all options are considered.
10. An intelligent man understands what is being said.
A wise man understands what is left unsaid.
11. An intelligent man speaks when he has to say something.
A wise man speaks when he has something to say.
12. An intelligent man sees  everything as relative.
A wise man sees everything as related.
13. An intelligent man tries to control the mass flow.
A wise man navigates the mass flow.
14. An intelligent man preaches.
A wise man reaches.

Intelligence is good
but wisdom achieves better results.