Tuesday, May 22, 2018

नयी मंजिल

क्या हार में ..
क्या जीत में ..
किंचित नहीं भयभीत मैं..
कर्तव्य पथ पर जो भी मिला..
यह भी सही वह भी सही..
कई जीत बाकी है..
कई हार बाकी है..
अभी तो जिंदगी का..
सार बाकी है..
यहाँ से चले है...
नयी मंजिल के लिए..
ये तो एक पन्ना था..
अभी तो किताब बाकी है..

-अटलजी...

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