Thursday, May 28, 2020

A Collection of superb, hard hitting, humorous comments...

"In my many years I have come to a conclusion, ... that one useless man is a shame,  two [useless men] is a law firm and three or more [useless men] is a government."

~John Adams 

 

"If you don't read the newspaper you are  uninformed, if you do read the newspaper, you are  misinformed."

 ~Mark Twain 

 

"I  contend that for  a nation to try to tax itself into prosperity is like a man standing in a bucket and trying  to lift himself up by the  handle."

 ~Winston Churchill 

 

"A government which  robs Peter to pay Paul can always depend on the support of  Paul."

 ~George Bernard Shaw  

 

"Foreign aid might be defined as a transfer of money from poor people in rich countries to rich people in poor countries."

~ Douglas Casey, Classmate of Bill Clinton at Georgetown University 


"Giving  money and  power to  government is like giving whiskey and car keys to teenage boys."

~P.J. O'Rourke,  Civil Libertarian 


"Just because you do not take an interest in politics doesn't mean politics won't take an interest in you!"

~Pericles (430  B.C.)  


"No man's life, liberty, or property is safe while the legislature is in session."

~Mark Twain  (1866)


"The government is like a baby's alimentary canal, with a happy appetite at one end and no responsibility at the other."

~ Ronald  Reagan  


"The  only difference between a tax man and a taxidermist is that the taxidermist leaves the skin."

~Mark Twain 


"What this country needs are more unemployed politicians."

~Edward Langley,  Artist (1928-1995)  


"A  government big enough to give you everything you want, is strong enough to take everything you have."

~Thomas Jefferson  

 

"We hang the petty thieves and appoint the great ones to public office."

~Aesop  


"If you think health care is expensive now, wait until you see what it costs when it's free!"

~P.J.  O'Rourke 


Wednesday, May 6, 2020

ओशो

*ओशो* गजब का *ज्ञान* दे गये, *कोरोना* जैसी *जगत बिमारी* के लिए

*70* के *दशक* में *हैजा* भी *महामारी* के रूप में पूरे *विश्व* में फैला था, तब *अमेरिका* में किसी ने *ओशो रजनीश जी* से प्रश्न किया
-इस *महामारी* से कैसे  बचे ?

*ओशो* ने विस्तार से जो समझाया वो आज *कोरोना* के सम्बंध में भी बिल्कुल *प्रासंगिक* है।

🌹 *ओशो* 🌹

यह *प्रश्न* ही आप *गलत* पूछ रहे हैं,

*प्रश्न* ऐसा होना चाहिए था कि *महामारी* के कारण मेरे मन में *मरने का जो डर बैठ गया है* उसके सम्बन्ध में कुछ कहिए?*

इस *डर* से कैसे बचा जाए...?

क्योंकि *वायरस* से *बचना* तो बहुत ही *आसान* है,

लेकिन जो *डर* आपके और *दुनिया* के *अधिकतर लोगों* के *भीतर* बैठ गया है, उससे *बचना* बहुत ही *मुश्किल* है।

अब इस *महामारी* से कम लोग, इसके *डर* के कारण लोग ज्यादा *मरेंगे*.......।

*’डर’* से ज्यादा खतरनाक इस *दुनिया* में कोई भी *वायरस* नहीं है।

इस *डर* को समझिये, 
अन्यथा *मौत* से पहले ही आप एक *जिंदा* लाश बन जाएँगे।

यह जो *भयावह माहौल* आप अभी देख रहे हैं, इसका *वायरस* आदि से कोई *लेना* *देना* नहीं है।

यह एक *सामूहिक पागलपन* है, जो एक *अन्तराल* के बाद हमेशा घटता रहता है, कारण *बदलते* रहते हैं, कभी *सरकारों की प्रतिस्पर्धा*, कभी *कच्चे तेल की कीमतें*, कभी *दो देशों की लड़ाई*, तो कभी *जैविक हथियारों की टेस्टिंग*!!

इस तरह का *सामूहिक* *पागलपन* समय-समय पर *प्रगट* होता रहता है। *व्यक्तिगत पागलपन* की तरह *कौमगत*, *राज्यगत*, *देशगत* और *वैश्विक* *पागलपन* भी होता है।

इस में *बहुत* से लोग या तो हमेशा के लिए *विक्षिप्त* हो जाते हैं या फिर *मर* जाते हैं ।

ऐसा पहले भी *हजारों* बार हुआ है, और आगे भी होता रहेगा और आप देखेंगे कि आने वाले बरसों में युद्ध *तोपों* से नहीं बल्कि *जैविक हथियारों* से लड़ें जाएंगे।

🌹मैं फिर कहता हूं हर समस्या *मूर्ख* के लिए *डर* होती है, जबकि *ज्ञानी* के लिए *अवसर*!!

इस *महामारी* में आप *घर* बैठिए, *पुस्तकें पढ़िए*, शरीर को कष्ट दीजिए और *व्यायाम* कीजिये, *फिल्में* देखिये, *योग*  कीजिये और एक माह में *15* किलो वजन घटाइए, चेहरे पर बच्चों जैसी ताजगी लाइये
अपने *शौक़* पूरे कीजिए।

मुझे अगर *15* दिन घर  बैठने को कहा जाए तो में इन *15* दिनों में *30* पुस्तकें पढूंगा और नहीं तो एक *बुक* लिख डालिये, इस *महामन्दी* में पैसा *इन्वेस्ट* कीजिये, ये अवसर है जो *बीस तीस* साल में एक बार आता है *पैसा* बनाने की सोचिए....क्युं बीमारी की बात करके वक्त बर्बाद करते हैं...

ये *’भय और भीड़’* का मनोविज्ञान सब के समझ नहीं आता है।* 

*’डर’* में रस लेना बंद कीजिए...

आमतौर पर हर आदमी *डर* में थोड़ा बहुत रस लेता है, अगर *डरने* में मजा नहीं आता तो लोग *भूतहा* फिल्म देखने क्यों जाते?


☘ यह सिर्फ़ एक *सामूहिक पागलपन* है जो *अखबारों* और *TV* के माध्यम से *भीड़* को बेचा जा रहा है...

लेकिन *सामूहिक पागलपन* के *क्षण* में आपकी *मालकियत छिन* सकती है...आप *महामारी* से *डरते* हैं तो आप भी *भीड़* का ही हिस्सा है

*ओशो* कहते है...tv पर खबरे सुनना या *अखबार* पढ़ना बंद करें

ऐसा कोई भी *विडियो* या *न्यूज़* मत देखिये जिससे आपके भीतर *डर* पैदा हो...

*महामारी* के बारे में बात करना *बंद* कर दीजिए, 

*डर* भी एक तरह का *आत्म-सम्मोहन* ही है। 

एक ही तरह के *विचार* को बार-बार *घोकने* से *शरीर* के भीतर *रासायनिक* बदलाव  होने लगता है और यह *रासायनिक* बदलाव कभी कभी इतना *जहरीला* हो सकता है कि आपकी *जान* भी ले ले;

*महामारी* के अलावा भी बहुत कुछ *दुनिया* में हो रहा है, उन पर *ध्यान* दीजिए;

*ध्यान-साधना* से *साधक* के चारों तरफ  एक *प्रोटेक्टिव Aura* बन जाता है, जो *बाहर* की *नकारात्मक उर्जा* को उसके भीतर *प्रवेश* नहीं करने देता है, 
अभी पूरी *दुनिया की उर्जा* *नाकारात्मक*  हो चुकी  है.......

ऐसे में आप कभी भी इस *ब्लैक-होल* में  गिर सकते हैं....ध्यान की *नाव* में बैठ कर हीं आप इस *झंझावात* से बच सकते हैं।

*शास्त्रों* का *अध्ययन* कीजिए, 
*साधू-संगत* कीजिए, और *साधना* कीजिए, *विद्वानों* से सीखें

*आहार* का भी *विशेष* ध्यान रखिए, *स्वच्छ* *जल* पीए,

*अंतिम बात:*
*धीरज* रखिए...*जल्द* ही सब कुछ *बदल* जाएगा.......

जब  तक *मौत* आ ही न जाए, तब तक उससे *डरने* की कोई ज़रूरत नहीं है और जो *अपरिहार्य* है उससे *डरने* का कोई *अर्थ* भी नहीं  है, 

*डर* एक  प्रकार की *मूढ़ता* है, अगर किसी *महामारी* से अभी नहीं भी मरे तो भी एक न एक दिन मरना ही होगा, और वो एक दिन कोई भी  दिन हो सकता है, इसलिए *विद्वानों* की तरह *जीयें*, *भीड़* की तरह  नहीं!!

☘☘ *ओशो* 🙏☘☘

Sunday, May 3, 2020

कवच

पूरे मोहल्ले में यह चर्चा थी कि गुड़िया को एड्स की बीमारी है। दरअसल उसका पति एक सरकारी मुलाज़िम था जो कि सिर्फ 25 वर्ष की आयु में ही अचानक किसी रहस्यमयी बीमारी का शिकार हो कर दुनिया छोड़ गया था। एड्स पर काम कर रही एक स्वयंसेवी संस्था के कार्यकर्ता बहुत समझा-बुझा कर गुडिया को एड्स की जाँच करवाने अपने साथ ले गए थे। गुड़िया को जो सरकारी पेंशन मिलती थी उसी से किसी तरह अपना जीवन यापन कर रही थी।
 जांच करने वाले डॉक्टर ने बड़ी हैरानी से पूछा कि रिपोर्ट में तो तुम्हें कोई बीमारी नहीं है, तुम तो बिलकुल स्वस्थ हो, फिर यह एड्स की अफवाह क्यों ? तुम लोगों को मुँह तोड़ जवाब क्यों नहीं देती ? हाथ जोड़ कर गुड़िया बोली,"डॉ० साहिब, आप से विनती है यह बात किसी से भी मत कहिएगा, एक जवान बेवा अपनी इज्जत खूंखार भेडियों से अभी तक इसी अफवाह के सहारे ही बचाती रही है, भगवान् के लिए मेरा यह कवच मुझ से मत छीनिए!"