Monday, January 18, 2021

एक ग़ज़ल

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो 
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो 

सिर्फ़ आँखों से ही दुनिया नहीं देखी जाती 
दिल की धड़कन को भी बीनाई बना कर देखो 

पत्थरों में भी ज़बाँ होती है दिल होते हैं 
अपने घर के दर-ओ-दीवार सजा कर देखो 

वो सितारा है चमकने दो यूँही आँखों में 
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बना कर देखो 

फ़ासला नज़रों का धोका भी तो हो सकता है 
वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो 

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