Friday, June 30, 2023

वास्तु

•वास्तु क्या है और क्यों आवश्यक है?

वास्तु शास्त्र मूल रूप से सही समायोजन (Settings) की कला है जहां एक व्यक्ति स्वयं को और अपनी आवश्यकतायों को इस तरह से स्थान देता है ताकि पंचभूतों से प्राप्त अधिकतम लाभ को अवशोषित (absorbed) कर सके।
•पञ्च तत्व तो आप जानते ही हैं (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और अंतरिक्ष) -

पृथ्वी के आसपास के चुंबकीय क्षेत्र/तत्वों का वैज्ञानिक उपयोग पूरी तरह से संतुलित वातावरण बनाता है, जो स्वास्थ्य, धन और समृद्धि को सुनिश्चित करता है।
"वास्तु शास्त्र" स्वर्णिम कल्पनाओं की स्वप्नभूमि है, क्यूँ कि ये आपके जीवन को अद्भुत ढंग से सुनियोजित (well planned) करता है।

•आपने कभी किसी मंदिर में नवग्रहों को एक स्थान पर स्थापित देखा है? कभी सोचा है ये मूर्तियां किस प्रकार व्यवस्थित की जाती हैं?
हिन्दू सनातन मंदिरों में, नवग्रहों (9 planets) की मूर्तियों को उस दिशा (9) के सामने रखा जाता है, जिसे वे वास्तु में शासित करते हैं।

सूर्य को केंद्र में रखते है और पूर्व में मुख, शुक्र को पूर्व की ओर रखते है, बुध उत्तर-पूर्व में, बृहस्पति उत्तर में, केतु उत्तर-पश्चिम में,...
शनि पश्चिम में, राहु दक्षिण-पश्चिम में, मंगल दक्षिण में और चंद्रमा दक्षिण-पूर्व की ओर स्थापित किये जाते हैं।

•इन 9 ग्रहों के लिए परिभाषित गुणों के आधार पर, वास्तु में इन दिशाओं और कोनों (कोण) का उपयोग तय किया गया है।
उदाहरण के लिए उत्तर-पूर्व की दिशा से पारा व्यापार, धन प्रवाह, गणित आदि को नियंत्रित करते हैं। इसलिए उत्तर-पूर्व दिशा आमतौर पर पानी, हरे पौधों आदि से भरी होती है। इसे कुबेर की दिशा भी कहते हैं।

दक्षिण-पश्चिम की दिशा को कैसे नियोजित करते हैं? राहु कालसर्प का सिर है, इसीलिए...उसके नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए उस दिशा में भारी वजन जैसे ओवरहेड टैंक, भंडारण कक्ष (store room) आदि बनाए जाते हैं।

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में किसी पुरुष ग्रह (सूर्य, मंगल, गुरु) का प्रभाव होता है, तो आमतौर पर समस्या उस ग्रह से संबंधित दिशा से आती है और...घर में उससे संबंधित कोने में लगातार गड़बड़ी या मरम्मत का कारण बना रहता है। आप इसे प्रत्यक्ष अनुभव कर सकते हैं।

शास्त्रानुसार 
"सुखम धानानी बुद्धी संतति श्रवणरुणम प्रियाण्यशमश्च समसिद्धि सरस्वस्य सुभलक्षणम् यत्र निन्दिता लक्षामृतं तद् गृहीतम् विघथकृत् अथ सार्वामूपाद्यम् यद्भवे...सुभलक्षणम् देसह पुरं निवासाश्च सर्वेषां शन्नानिच यधाय धीरध्रुस पुरुष यश्चैव त्यश्रेयस्करम् माथमवासस्तु शास्ताधनुते तस्य नश्यं लक्षमणिरन्या थस्मा लोकास्य कृपाय शत्रुमथ-धुरिर्यते”

"समरांगण सूत्र-धारा" में लेखक बताते हैं कि उचित रूप से नियोजित गृह-निर्माण (सुखदायक मकान) से...उस परिवार में सदैव अच्छे स्वास्थ्य, धन, बुद्धि, अच्छे बच्चे, सुख-शांति, खुशी का सदैव आगमन होगा और दायित्वों के ऋण से भी मुक्त रहेंगे।

वास्तुकला के नियमों का उल्लंघन करने से आपके जीवन में अनावश्यक यात्रा, अस्वस्थता, समाज में कलंकित, दुःख और निराशा जैसे परिणाम प्राप्त होते हैं।

Sunday, June 11, 2023

आपकी ज़िंदगी का कोच कौन है ??

गहराई से सोचो !
आपकी ज़िंदगी का कोच कौन है ?? 

अनीता_अल्वारेज, 
अमेरिका की एक पेशेवर तैराक हैं जो वर्ल्ड चैंपियनशिप के दौरान परफॉर्म करने के लिए स्विमिंग पूल में जैसे ही छलांग लगाई , वो छलांग लगाते ही पानी के अंदर बेहोश हो गई , 

जहाँ पूरी भीड़ सिर्फ़ जीत और हार के बारे में सोच रही थी वहीं उसकी कोच एंड्रिया ने जब देखा कि अनीता एक नियत समय से ज़्यादा देर तक पानी के अंदर है , 

एंड्रिया पल भर के लिए सब कुछ भूल गई कि वर्ल्ड चैंपियनशिप प्रतियोगिता चल रही है , एक पल भी व्यर्थ ना करते हुए एंड्रिया चलती प्रतियोगिता के बीच में ही स्विमिंग पूल में छलांग लगा दी , 

वहाँ मौजूद हज़ारों लोग कुछ समझ पाते तब तक एंड्रिया पानी के अंदर अनीता के पास थी , 
एंड्रिया ने देखा कि अनीता स्विमिंग पूल में पानी के अंदर बेहोश पड़ी है , 

ऐसी हालत में ना हाथ पैर चला सकती ना मदद माँग सकती , 

एंड्रिया ने अनीता को जैसे बाहर निकाला मौजूद हज़ारों लोग सन्न रह गए , एंड्रिया ने अनीता को तो बचा लिया , 

लेकिन हम सबकी ज़िंदगी में बहुत बड़ा सवाल छोड़ गई ! 

इस दुनियाँ में ना जाने कितने लोग हम सबकी ज़िंदगी से जुड़े हैं कितनों से रोज़ मिलते भी होंगे , 

जो इंसान हर किसी से अपने मन की बात नहीं कह पाता कि असल ज़िंदगी में वह भी कहीं डूब रहा है , वह भी किसी तकलीफ़ से गुज़र रहा है , वह भी किसी बात को लेक़र ज़िंदगी से परेशान हो रहा है , लेकिन बता नहीं पा रहा है

जब इंसान किसी को अपने मन की व्यथा , अपनी परेशानी नहीं बता पाता तो मानसिक तनाव इतना बढ़ जाता है कि वह ख़ुद को पूरी दुनियाँ से अलग़ कर लेता है ,  सबकी नज़रों से दूर एकांत में ख़ुद को चारदीवारी में क़ैद कर लेता है , 

ये वक़्त ऐसा होता है कि तब इंसान डूब रहा होता है , उसका मोह ख़त्म हो चुका होता है , ना किसी से बात चीत  ना किसी से मिलना जुलना , 

ये स्थिति इंसान के लिए सबसे ख़तरनाक होती है , 

जब इंसान अपने डूबने के दौर से गुज़र रहा होता है , तब बाक़ी सब दर्शकों की  भाँति अपनी ज़िंदगी में व्यस्त होते हैं किसी को ख़्याल ना होता कि एक इंसान किसी बड़ी परेशानी में है , 

अगर इंसान  कुछ दिन के लिए ग़ायब हो जाए  तो पहले तो लोगों को ख़्याल नहीं आएगा , अगर कुछ को आ भी जाए तो लोग यही सोचेंगे , पहले कितनी बात होती थी अब वो बदल गया है या फिर उसे घमंड हो गया है या अब तो बड़ा आदमी बन गया है इसलिए बात नहीं करता , जब वो बात नहीं करता तो हम कियूँ करें ! 

या फिर ये सोच लेते हैं कि अब दिखाई ना देता तो वो अपनी ज़िंदगी में मस्त है इसलिए नहीं दिखाई देता , 

अनीता पेशेवर तैराक होते हुए डूब सकती है तो कोई भी अपनी ज़िंदगी में बुरे दौर से गुज़र सकता है , ये समझना ज़रूरी है 

लेकिन उन लोगों से हट कर कोई एक इंसान ऐसा भी होगा जो आपकी मनोस्थिति तुरंत भाँप लेगा , उसे बिना कुछ बताये सब पता चल जाएगा , आपकी ज़िंदगी के हर पहलू पर हमेशा नज़र रखेगा , थोड़ा सा भी परेशान हुए वो आपकी परेशानी आकर पूछने लगेगा , 

आपके बेहवियर को पहचान लेगा , आपको हौसला देगा आपको सकारात्मक बनायेगा और एंड्रिया की तरह कोच बन कर आपकी ज़िंदगी को बचा लेगा , 

हम सबको ऐसे कोच की ज़रूरत पड़ती है…

ऐसा  कोच कोई भी हो सकता है , आपका भाई , बहन , माँ , पापा ,
आपका कोई दोस्त , आपका कोई हितैषी , आपका कोई रिश्तेदार , कोई भी , जो बिना बताये आपके भावों को पढ़ ले और तुरंत एक्शन ले।

गहराई से सोचो आपकी ज़िंदगी का कोच कौन है ?? 

साभार

ll सर्वे भवंतु सुखिन:

Thursday, June 1, 2023

अफ़सोस

एक बार एक टीवी इंटरव्यू में अभिनेता धर्मेंद्र से पूछा गया कि आपको क़भी भी फिल्म अमर अकबर एंथनी छोड़ने का अफसोस होता है क्योंकि वो एक सुपर डुपर हिट फिल्म बन गई थी ? 

धर्मेंद्र ने जवाब में मुस्कुराते हुए कहा कि अगर मैंने वो फ़िल्म कर भी ली होती तो अपने जीवन में और क्या बन गया होता, जो अभी नहीं हूं !

ऐसा ही सवाल एक्टर पीयूष मिश्रा से एक इंटरव्यू में पूछा गया कि सुना है सूरज बड़जात्या आपको मैंने प्यार किया में हीरो लेना चाहते थे, आपने मना कर दिया और रोल सलमान खान को मिल गया और वो कहां से कहां पहुंच गए, कभी आपको इसका अफसोस होता है?  

पीयूष का जवाब बहुत शानदार था ...उन्होंने कहा तब कर लिया होता तो शायद अब जो कर रहा हूं, वो ना कर पाता, इसलिए अभी ज्यादा खुश हूं. 

दोनों जवाब में एक बात कॉमन है कि हर काम, हर खिताब, हर पुरस्कार आप नहीं ले सकते. सब आप ही समेट लें इसका लालच मत कीजिए । जीवन में सभी को किसी न किसी बात का दुख रहेगा ही क्योंकि....जिंदगी की कोई अंतिम मंजिल नहीं होती... इसलिए किसी आखिरी जीत या अंतिम लक्ष्य के लिए जीना भ्रम है....।

जीवन एक खेल है, बस फर्क है कि इसमें कोई रैफरी नहीं है। इसलिए जिंदगी जीने का कोई पक्का फॉर्मूला किसी किताब में नहीं मिल सकता। जिंदगी की रेस में कई बार आपको लगता है जीत रहे हैं और कई बार हारने का एहसास होता हैं। 
 
साहित्य के नोबेल विजेता मशहूर लेखक जोसेफ ब्रॉडस्की ने जिंदगी हंसते-गाते हुए बिताने के गुरों का विस्तार से जिक्र किया था। उनका मानना है कि जिंदगी को समझने के दो तरीके हैं.....या तो हर बात अपने अनुभव से सीखें या फिर.... कुछ बातों के लिए दूसरे के अनुभव को भी तरजीह दें...क्योंकि कोई किसी काम में एक्सपर्ट हो सकता है जबकि कोई दूसरे काम में मास्टर हो सकता है।
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वह पथ क्या,पथिक कुशलता क्या...
जिस पथ पर बिखरे शूल न हों...
नाविक की धैर्य परीक्षा क्या...
यदि धाराएँ प्रतिकूल न हों...!!

जयशंकर प्रसाद

Sunday, December 18, 2022

કલાપી

વિધવા બહેન બાબાને....

વ્હાલી બાબા! સહન કરવું એય છે એક લ્હાણું!
મ્હાણ્યું તેનું સ્મરણ કરવું એય છે એક લ્હાણું ! 
મૃત્યુ થાતાં રટણ કરવું ઇષ્ટનું એય લ્હાણું!
આશા રાખી મરણ પછી ને જીવવું એય લ્હાણું!

સબંધીના મરણ પછી ના સર્વ સબંધ તૂટે,
બ્હેની! આંહી વિરહ જ ખરો ચિર સબંધ ભાસે;
તે પ્રેમી જે પ્રણયમયતા જોઈ મ્હાણે વિયોગે,
મીઠું કિન્તુ ક્ષણિક જ નકી સ્વપ્ન સંયોગ તો છે.

છે વૈવિધ્ય વધુ વિમલતા, બ્હેન! સૌભાગ્ય કૈં;
છે ભક્તિમાં વધુ વિમલતા, બ્હેન! શૃંગારથી કૈં;
બાબા ત્હારા મૃદુ હ્રદયને ઓપ વૈધવ્ય આપી,
ઊંચે ઊંચે તુજ દિલ જશે લેઈ ધીમે ઉપાડી.

ના બોલું આ તુજ હ્રદયનાં અશ્રુ હું લૂછવાને,
શાને લૂછું હ્રદયશુચિતા આંસુડાં દાખવે જે?
વ્હાલી બાબા! કુદરત કૃતિ સર્વદા હેતુવાળી,
ઇચ્છે દેવા અનુભવ પ્રભુ સર્વને સર્વ વ્હાલી!

બાપુ! આ સૌ સુખ દુઃખ તણી વેઠ નાખી નથી કૈં,
આ તો બોજો કુદરત તણો માત્ર કલ્યાણકારી;
આ પ્હાડો જે પથિક સહુને આવતા માર્ગમાં ત્યાં
ચક્ષુવાળાં શ્રમિત ન બને કિન્તુ સૌન્દર્ય જોતાં.

આ કુંડાળું કુદરત તણું કોઈ કોઈ જોઈ શકે, તો
ના ના જોશે કંઈ વિષમતા કિન્તુ સીધાઈ લીસી;
ટૂંકી દૃષ્ટિ જનહ્રદયની અલ્પ ખંડો જ જોતી,
ને તેથી આ સુઘડ સરણી દિસતી ડાઘવાળી.

બાબા ! જોને નયન ભરીને આંસુથી એક વાર!
બાબા! જોને સુપ્રભ રચના વિશ્વની એક વાર!
વ્હાલા સાથે નિરખતી હતી આજ જો એકલી તું,
બાબા! ખુલ્લું હ્રદય કરી જો, એ જ ઇચ્છયું હરિનું.

જોને, બાપુ! તુજ જિગરનો મિત્ર તો ત્યાં વિલાસે,
ત્હારો ચ્હેરો ગત હ્રદય એ ત્યાંય ઊભું વિમાસે!
એ રેલાયું ઉદધિ સઘળે કિન્તુ તું બિન્દુ તેનું,
આડું આવ્યું પડ નયનને ત્હોય એ વારિ ત્હારૂં.

બ્હેની! આવાં પડ પછી પડો આવતાં જાય આડાં,
અંતે ગાઢાં પડ ચીરી દઈ પાર જાતાં સહુ ત્યાં;
તું ને મ્હારી પ્રિય સખી ત્યજી હું ય જાઉં કદાપિ,
એવું એ કૈં શુભ જ કરવા ઈશ ઇચ્છે કદાપિ.

રે! તો સાથે તમ હ્રદયનાં ગાળજો અશ્રુ બન્ને,
જે બાકી તે ભણી લઈ તમે આવજો સાથ બન્ને;
બાબા ! તું એ શીખીશ ફરી આ પાઠ ઔદાર્યનો, ને
મ્હારી ભોળી પ્રિય અબુધને દોરજે આ જ માર્ગે.
- કલાપી..

Monday, August 29, 2022

ગર્ભોપનિષદ

ગર્ભોપનિષદ (પરિચય યાત્રા) __ પં. ડો. હિતેષ એ. મોઢા 

આ નાનો ઉપનિષદ ગ્રંથ અથર્વવેદની નવ શાખા અંતર્ગત આવે છે.  અથર્વવેદની કુલ નવ શાખા અને તેની અનેક પ્રશાખા હતી. હાલ કેવળ જ બે શાખાનાં પુસ્તકો ઉપલબ્ધ છે.  બાકીનાં ગ્રંથો, અનુપલબ્ધ છે.  અથર્વવેદનો + પિપ્પલાદનો અભ્યાસ કરતાં એવું પ્રતિત થાય છે, અથર્વવેદની શાખા બહુ વિસ્તાર ધરાવતી હોવી જોઈએ.  

આયુર્વેદ, ચિકિત્સા, પ્રજનન વિજ્ઞાન, શલ્ય ચિકિત્સા, અસાધ્ય રોગો, ભેજષ,  વનસ્પતિ વિદ્યા, ખગોળ, ભૂગોળ,  અર્થશાસ્ત્ર રાજશાસ્ત્ર, ક્ષાત્રવિદ્યા,  ઈત્યાદીનું સંક્ષેપ્ત જ્ઞાન  અથર્વવેદમાં આપવાં આપ્યું છે. આનો સ્પષ્ટ અર્થ એ થાય છે, આ તમામ જટીલ વિષયોની શાખા આ વેદ અતંર્ગત હોવી જોઈએ. અને આ દરેક વિષય પર પુરતાં ગ્રંથો અને સંશોધન વિદ્યમાન હોવાં જોઈએ. 

અથર્વવેદની પૈપલ કે પિપ્પલાદ શાખા અંતર્ગત,  અનેક ગ્રંથો અને ઉપનિષદ હતાં, તેમાંથી આપણે પ્રશ્નોપનિષદની યાત્રા આપણે અગાઉ કરી ચૂકયાં છીએ. આ  જ પિપ્પલાદનું અન્ય એવમ નાનું ઉપનિષદ એટલે  ગર્ભોપનિષદ. આ ઉપનિષદ કુલ ૨૨ છંદબદ્ધ મંત્ર છે.  

આપણે ફરીથી ટૂંકમાં પિપ્પલાદનો પરિચય મેળવી લઈએ.

આ પૈપલ એટલે પિપ્પલાદ. આ શાખાનાં ડીન અથવા સ્થાપક, પ્રસારક પિપ્પલાદ હતાં. તેને વેદોમાં મૂનિવર કહેવાંમાં આવતાં હતાં, તેઓ મહર્ષિ દધિચીનાં પુત્ર હતાં. મૂનિવર એટલે ૠષિ પહેલાંની ઉપાધી. ઘણા દાર્શનિકોને ઋષિ પણ કહેતાં હતાં. દધીચિનાં મૃત્યુ સમયે પિપ્પલાદ તેની માતા પ્રાતિથેયીનાં ઉદરમાં હતાં. મૃત્યુનાં સમાચાર સાંભળતાં તેને ઉદરવિદારણ કરી ગર્ભને બહાર કાઢી, પિપળાની નીચે રાખી, દધિચી પાછળ સતિ થઈ જાય છે. મિત્રો, આ ઉદરવિદારણ એટલે સીજેરીયન જેમાં બાળક ને ઉપરથી કાઢવાંનું, તથા આખેઆખુ ગર્ભાશય બહાર કાઢવું, તમે નક્કી કરજો કે આ સમયે આયુર્વેદ કમ વૈદિક મેડિકલ સાયંસ ટેકનોલોજી કેટલી અગ્ર હશે !!!!!   સંસ્કૃતમાં પિપ્પલનાં અર્થ જોઈએ, પિપળો, સ્લીવ, બાંય, કે તેવી ડિવાઈસ, દોરા વડે ટાંકા લેવાં તે, પીન, નિપ્પલ વગેરે વગેરે...... બે અર્થ તો વિજ્ઞાન સંબંધિત છે. પિપળા નીચે, ગર્ભાશયમાં રહેલ ભ્રૂ સાથે આખા ગર્ભાશયનું વિદારણ કરી પિપળા હેઠે રાખવાંથી બાળક જન્મી શકે ??? આ એક મેટાફર છે, અથવા પ્રતિકાત્મક છે, અથવા પિપલ નામની હ્યુમન બાયોલોજી & મેટરનિટીની શાખાનું નામ પણ હોઈ શકે. અથવા પિપળામાંથી કોઈ વિશિષ્ટ ઔષધિ કે વિશિષ્ટ મેટરનિટી કે બાયોલોજીકલ ટેકનોલોજીનું નિર્માણ થતું હોવું જોઈએ. 

આ પિપ્પલાદનું ગર્ભોપનિષદ વાંચ્યા બાદ બધુ સ્પષ્ટ થઈ જાય છે, આ સમયે, આયુર્વેદ + ગાયનેકોલોજી અત્યુત્તમ અગ્ર હતું.  આ ગ્રંથમાં પ્રિનેટલ ડેવલપમેંટ,   એંબ્રયોનિક ડેવલપમેંટ,  ફેટલ ડેવલપમેંટ  ઈત્યાદીનું સૂત્રાત્મક વૈજ્ઞાનિક જ્ઞાન એટલે ગર્ભોપનિષદ. જેમાં ગર્ભાધાનથી લઈને ભ્રૂણ અને ગર્ભ ની સંપૂર્ણ વિકાસ યાત્રા ત્થા જન્મ સુધીનું જ્ઞાન દર્શાવ્યું છે. અહીં પંચમહાભૂતની ભૂમિકા શું છે, એ પણ સ્પષ્ટ દર્શાવ્યું

આ ગ્રંથમાં એક્સ અને વાય ક્રોમોઝોમ્સનો પણ ઉલ્લેખ છે, અને  નપુંસક સંતાનનો પણ હળવો ઉલ્લેખ છે. 

 ॐ पञ्चात्मकं पञ्चसु वतर्मानं षडाश्रयं षडगुणयोगयुक्तम् । 
  तत्सप्तधातु त्रिमलं  द्वियोनि चतुर्विर्धाहारमयं शरीरं भवति॥  મંત્ર -૧ ની બે પંકતિ.

શરીર  પંચતત્વથી બનેલ  છે, પાંચ તત્વથી (સ્ટેટ) વિદ્યામન(અસ્તિત્વ) છે.  ષડરસનાં  આધાર પર ષડ ગુણો સાથે જોડાયેલ છે. જેમાં  સાતધાતુ, ત્રણઅશુદ્ધિ, બે લિંગ/યોનિ અને ચાર આહાર. અહીં, આર્યાવર્તનાં પ્રાકૃત વિજ્ઞાન અનુસાર શરીરની વ્યાખ્યા દર્શાવી છે. પછીનાં શ્લોકોમાં પાંચ તત્વ, ષડગુણ, ષડરસ, ત્રિમલ, દ્વિયોની ચાર આહાર અંગે પ્રશ્નોતરી છે. 

ऋतुकाले संप्रयोगादेकरात्रोषितं किललं भवति 
स􀆯रात्रोषितं बुद्रुदं  भवित अधर्मासाभ्यन्तरेण पिण्डो 
भवित मासाभ्यन्तरेण कठिनो भवित मासद्वयेन शिरः 
संपद्यते मासत्रयेण पादूवेशो भवति । 

अथ चतुर्थे मासे जठरकटिप्रदेशो भवति । 
पञ्चमे मासे पृष्ठवंशो भवति । 
षष्ठे मासे मुखनासिकाक्षिश्रोत्राणि भवन्ति । 
सप्तमे मासे जीवेन संयुक्तो भवति । 
अष्टमे मासे सर्वसंपूर्णो भवति । 
पितु रेतोऽतिरिक्त्तात पुरुषो भवति । 
मातुः रेतोऽतिरिक्तात्स्त्रियो भवन्त्युभयोर्बीजतुल्यत्वान्नपुंसको भवति ।
  
___મંત્ર -૩ ની પંક્તિઓ 

જો પિતુ-રેત વધુ બળવાન હોય, તો તે પુરુષ બને છે; જો માતુ-રેત મજબૂત હોય, તો તે સ્ત્રી બને છે. જો બીજ સમાન હોય, તો તે નપુંસક થશે. અહીં રેત એટલે ક્રોમોઝોમ. પુરુષનાં શુક્રાણુમાં બન્ને ક્રોમોઝમ હોય છે.  મોટા ભાગનાં અનુવાદકો રેતને બીજનો પર્યાય માની લીધો છે, આથી અર્થઘટન બદલાય જાય છે. જયારે આ ઉપનિષદમાં સ્ત્રી પુરુષનાં   માટે, બીજા મંત્રની પાંચમી પંક્તિમાં शुक्रशोणितसंयोगादावतर्ते गर्भो ह्रदि व्ययवस्थां नयति ।  
પુરુષ બીજ અને સ્ત્રી બીજ માટે શુક્ર-શોણિત જેવો શબ્દ પ્રયોગ કર્યો છે. ત્રીજા મંત્રમાં રેત શબ્દ છે. આ એક વૈદિક/આયુર્વેદ મેડિકલ પારિભાષિક શબ્દ છે. જેનો અર્થ ક્રોમોઝોમ જેવો થાય છે. શબ્દકોશમાં સામાન્ય રીતે બીજનો પર્યાય દર્શાવ્યો છે. X Y માટે માતુ અને પિતુ  શબ્દનો પ્રયોગ કર્યો છે. 

ત્રીજા મંત્રમાં નપુંસક સંતાનની સાથે હિનાંગ અને બેલડા સંતાનોનો પણ ઉલ્લેખ કર્યો છે. જે આપણે આધાન કુંડલીમાં સવિસ્તાર પરિચય મેળવ્યો છે. 

ઋષિ પિપ્પલાદનો સમય ગાળો, ઈસા પૂર્વે ૧૨૦૦૦ વર્ષ. આ સમયે આપણે કેટલા અગ્ર હતાં તેની કલ્પના જ કરવી રહી. સ્ત્રીબીજ, શુક્રાણુ, ભ્રૂણ, ગર્ભ, પ્રસવ, આર્તવ ને સંબંધિત અનેક પ્રતિમા તેમજ મંદિરો પણ છે. તેનો પરિચય આગામી અંકમાં. 

પં.ડો. હિતેષ એ. મોઢા

Wednesday, January 26, 2022

मौलिक कर्तव्य - Fundamental Duties

यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा : 

(1) संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों और संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना;  
(2) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों को संजोना और उनका पालन करना;  
(3) भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना;  
(4) देश की रक्षा करना और ऐसा करने के लिए बुलाए जाने पर राष्ट्रीय सेवा प्रदान करना;  
(5) धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या अनुभागीय विविधताओं से परे भारत के सभी लोगों के बीच सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना;  महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं को त्यागना;  
(6) हमारी मिश्रित संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व देना और संरक्षित करना;  
(7) वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और जीवित प्राणियों के लिए दया करना;  
(8) वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना विकसित करना;  
(9) सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा को दूर करना;  
(10) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की ओर प्रयास करना ताकि राष्ट्र निरंतर प्रयास और उपलब्धि के उच्च स्तर तक बढ़े;  
(11) जो माता-पिता या अभिभावक हैं, जो अपने बच्चे या, जैसा भी मामला हो, छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच शिक्षा के अवसर प्रदान करना।

It shall be the duty of every citizen of India (1) To abide by the Constitution and respect its ideals and institutions, the National Flag and the National Anthem; (2) To cherish and follow the noble ideals which inspired our national struggle for freedom; (3) To uphold and protect the sovereignty, unity and Integrity of India; (4) To defend the country and render national service when called upon to do so; (5) To promote harmöny and the spirit of common brotherhood amongst all the people of India transcending religious, linguistic and regional or sectional diversities; to renounce practices derogatory to the dignity of women; (6) To value and preserve the rich heritage of our composite culture; (7) To protect and improve the natural environment including forests, lakes, rivers and wild life, and to have compassion for living creatures; (8) To develop the scientific temper, humanism and the spirit of inquiry and reform; (9) To safeguard public property and to abjure violence; (10) To strive towards excellence in all spheres of individual and collective activity so that the nation constantly rises to higher levels of endeavour and achievement; (11) Who is a parent or guardlan to provide opportunities for educatlon to his child or, as the case may be, ward between the age of six and fourteen years.

Friday, January 14, 2022

राम धनुष टूटने की सत्य घटना......

बात 1880 के अक्टूबर नवम्बर की है बनारस की एक रामलीला मण्डली रामलीला खेलने तुलसी गांव आयी हुई थी... मण्डली में 22-24 कलाकार थे जो गांव के ही एक आदमी के यहाँ रुके थे वहीं सभी कलाकार रिहर्सल करते और खाना बनाते खाते थे...पण्डित कृपाराम दूबे उस रामलीला मण्डली के निर्देशक थे और हारमोनियम पर बैठ के मंच संचालन करते थे और फौजदार शर्मा साज-सज्जा और राम लीला से जुड़ी अन्य व्यवस्था देखते थे...एक दिन पूरी मण्डली बैठी थी और रिहर्सल चल रहा था तभी पण्डित कृपाराम दूबे ने फौजदार से कहा इस बार वो शिव धनुष हल्की और नरम लकड़ी की बनवाएं ताकि राम का पात्र निभा रहे 17 साल के युवक को परेशानी न हो पिछली बार धनुष तोड़ने में समय लग गया था... 

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इस बात पर फौजदार कुपित हो गया क्योंकि लीला की साज सज्जा और अन्य व्यवस्था वही देखता था और पिछला धनुष भी वही बनवाया था... इस बात को लेकर पण्डित जी और फौजदार में से कहा सुनी हो गया..फौजदार पण्डित जी से काफी नाराज था और पंडित जी से बदला लेने को सोच लिया था ...संयोग से अगले दिन सीता स्वयंवर और शिव धनुष भंग का मंचन होना था...फौजदार मण्डली जिसके घर रुकी थी उनके घर गया और कहा रामलीला में लोहे के एक छड़ की जरूरत आन पड़ी है दे दीजिए..... गृहस्वामी ने उसे एक बड़ा और मोटा लोहे का छड़ दे दिया छड़ लेके फौजदार दूसरे गांव के लोहार के पास गया और उसे धनुष का आकार दिलवा लाया। रास्ते मे उसने धनुष पर कपड़ा लपेट कर और रंगीन कागज से सजा के गांव के एक आदमी के घर रख आया...

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रात में रामलीला शुरू हुआ तो फौजदार ने चुपके धनुष बदल दिया और लोहे वाला धनुष ले जा के मंच के आगे रख दिया और खुद पर्दे के पीछे जाके तमाशा देखने के लिए खड़ा हो गया...रामलीला शुरू हुआ पण्डित जी हारमोनियम पर राम चरणों मे भाव विभोर होकर रामचरित मानस के दोहे का पाठ कर रहे थे... हजारों की संख्या में दर्शक शिव धनुष भंग देखने के लिए मूर्तिवत बैठे थे... रामलीला धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था सारे राजाओं के बाद राम जी गुरु से आज्ञा ले के धनुष भंग को आगे बढ़े...पास जाके उन्होंने जब धनुष हो हाथ लगाया तो धनुष उससे उठी ही नही कलाकार को सत्यता का आभास हो गया गया उस 17 वर्षीय कलाकार ने पंडित कृपाराम दूबे की तरफ कतार दृष्टि से देखा तो पण्डित जी समझ गए कि दाल में कुछ काला है...उन्होंने सोचा कि आज इज्जत चली जायेगी हजारों लोगों के सामने और ये कलाकार की नहीं स्वयं प्रभु राम की इज्जत दांव पर लगने वाली है.. पंडित जी ने कलाकार को आंखों से रुकने और धनुष की प्रदक्षिणा करने का संकेत किया और स्वयं को मर्यादा पुरुषोत्तम के चरणों में समर्पित करते हुए आंखे बंद करके उंगलियां हारमोनियम पर रख दी और राम जी की स्तुति करनी शुरू.... 

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जिन लोगों ने ये लीला अपनी आँखों से देखी थी बाद में उन्होंने बताया कि इस इशारे के बाद जैसे पंडित जी ने आंख बंद करके हारमोनियम पर हाथ रखा हारमोनियम से उसी पल दिव्य सुर निकलने लगे वैसा वादन करते हुए किसी ने पंडित जी को कभी नहीं देखा था...सारे दर्शक मूर्तिवत हो गए... नगाडे से निकलने वाली परम्परागत आवाज भीषण दुंदभी में बदल गयी..पेट्रोमेक्स की धीमी रोशनी बढ़ने लगी आसमान में बिन बादल बिजली कौंधने लगी और पूरा पंडाल अद्भुत आकाशीय प्रकाश से रह रह के प्रकाशमान हो रहा था...दर्शकों के कुछ समझ में नही आ रहा था कि क्या हो रहा और क्यों हो रहा....पण्डित जी खुद को राम चरणों मे आत्मार्पित कर चुके थे और जैसे ही उन्होंने चौपाई कहा---

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लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें॥

तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा॥

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पण्डित जी के चौपाई पढ़ते ही आसमान में भीषण बिजली कड़की और मंच पर रखे लोहे के धनुष को कलाकार ने दो भागों में तोड़ दिया...

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लोग बताते हैं हैं कि ये सब कैसे हुआ और कब हुआ किसी ने कुछ नही देखा सब एक पल में हो गया..धनुष टूटने के बाद सब स्थिति अगले ही पल सामान्य हो गयी पण्डित जी मंच के बीच गए और टूटे धनुष और कलाकार के सन्मुख दण्डवत हो गए.... लोग शिव धनुष भंग पर जय श्री राम का उद्घोषणा कर रहे थे और पण्डित जी की आंखों से श्रद्धा के आँसू निकल रहे थे..

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...राम "सबके" है एक बार "राम का" होकर तो देखिए.....

Thursday, January 13, 2022

शांति

मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन से उसकी एक पड़ोसी महिला ने कहा, पांच वर्ष पूर्व मेरा पति आलू खरीदने गया था, परंतु आज तक लौटा नहीं, बताइये मैं क्या करूं? मुल्ला ने खूब सोचा, सिर मारा, आंखें बंद कीं, बड़ा ध्यान लगाया—फिर बोला. ऐसा है, मेरी सलाह मानिये, आप गोभी पका लीजिए। पांच साल हो गये, पति आलू लेने गया था, नहीं लौटा, जाने दीजिये; आप गोभी पका लें, या और कोई सब्जी पका लें।

महिला कुछ पूछ रही है, मुल्ला कुछ उत्तर दे रहा है।

तुम जब किसी से पूछते हो कि मैं दुखी हूं क्या करूं? तो अष्टावक्र को छोड़ कर जो भी उत्तर दिये गये हैं, वे बस ऐसे हैं कि गोभी पका लीजिये। कोई न कोई उपाय बताया जाता है कि यह उपाय कर लो, इस उपाय से सब ठीक हो जायेगा। उपाय से भ्रांति कटती नहीं।

समझने की कोशिश करें। एक आदमी हिंसक है। वह सुनता है, हिंसा बुरी है, हिंसा पाप! उसके मन में भी भाव उठता है अहिंसक होने का। क्योंकि हिंसा पाप ही नहीं है, हिंसक को दुख भी देती है। जो दूसरे को दुख देना चाहता है, देने के पहले अपने को दुख दे लेता है। जो दूसरे को दुख देता है, वह देने के बाद भी उस दुख को भोगता रहता है। यह असंभव है कि दूसरे को हम दुख दें और खुद दुखी न हो जायें। जो हम देंगे, उसे हमें अपने हृदय में पालना पड़ेगा। और जो हमने दिया है, उसकी पश्चात्ताप की छाया हमें काटती रहेगी।

तो जो आदमी हिंसक है, वह धीरे—धीरे अनुभव कर लेता है कि हिंसा है तो बुरी, लेकिन करूं क्या? अहिंसक कैसे बनूं? वह पूछता है, अहिंसक कैसे बनूं? फिर उसे अहिंसक बनने की विधि बताने वाले लोग हैं। वह हिंसक आदमी उन विधियों का पालन भी करने लगता है, लेकिन उन विधियों के पालन करने से उसकी हिंसा थोड़े ही मिटती है! वह उन विधियों के पालन करने में ही हिंसक हो जाता है। वह दूसरों के साथ हिंसा बंद कर देता है, अपने साथ शुरू कर देता है। उसकी हिंसक वृत्ति कैसे जायेगी? कल तक वह दूसरों के साथ हिंसा कर रहा था, अब अपने साथ करता है।

मैंने सुना है, एक आदमी बहुत हिंसक था। उसने अपनी पत्नी को धक्का दे दिया, वह कुएं में गिर कर मर गई। उसे बड़ा दुख हुआ। किसी तरह अदालत से तो बच गया, सिद्ध न हो सका; लेकिन उसके प्राणों में बड़ा झंझावात हो गया। उसने कहा, अब बहुत हो गया। गाव में एक जैन मुनि आये थे, वह उनके पास गया। उसने कहा कि महाराज, मुझे मुक्त करो, आप जैन मुनि हैं और अहिंसक! और अहिंसा आपका परम धर्म! मैं हिंसक हूं। मुझे किसी तरह मुक्त करो।

मुनि ने कहा कि तुम मुनि—दीक्षा ले लो। उसने कहा, मैं अभी तैयार हूं इसी वक्त!

हिंसक आदमी! क्रोधी आदमी कोई भी चीज शीघ्रता से कर लेता है। जो किसी की हत्या कर दे शीघ्रता से, वह अपनी भी हत्या कर ले शीघ्रता से, कुछ अड़चन नहीं है।

मुनि ने कहा, बहुत लोग आते हैं, लेकिन तुम जैसा संकल्पवान…! वह संकल्प नहीं था, वह तो सिर्फ हिंसक आदमी की वृत्ति है, वह क्षण में कर गुजरता है। फिर पछताता रहे चाहे जिंदगी भर, लेकिन उसकी मूर्च्छा इतनी प्रगाढ़ होती है कि वह कुछ भी करना चाहे तो क्षण में कर लेता है। और चुनौती दे दी। मुनि ने कहा कि तुम फिर मुनि हो जाओ। उसने कहा मैं अभी तैयार हूं। इधर मुनि सोच ही रहे थे कि कपड़े गिरा कर वह नग्न खड़ा हो गया। उसने कहा, कि दें दीक्षा।

मुनि ने कहा, बहुत देखे लोग, तुम बड़े तपस्वी हो! बड़े तुम्हारे पुण्यों का फल है।

वे मुनि हो गये! मुनि ने उनको नाम ‘शांतिनाथ’ दे दिया। अब वे ऐसे अशांतिनाथ थे, मगर मुनि ने नाम शांतिनाथ दे दिया इसी आशा में कि चलो अब ये..। उनकी बड़ी ख्याति हो गई, क्योंकि उन्होंने सब मुनियों को प्रतियोगिता में पछाड़ दिया। कोई दो दिन का उपवास करे, तो वे चार दिन का करें। कोई चार घंटे सोये, तो वे दो घंटे सोये। कोई छाया में बैठे तो वे धूप में खड़े रहें। पुराने हिंसक! हिंसा का सारा का सारा ढंग अपने पर ही लौटा लिया। हिंसा खुद पर लौटने लगी, आत्महिंसा  हो गई। उन्होंने सब को मात कर दिया। वे तो धीरे—धीरे बड़े ख्यातिलब्ध हो गये। दिल्ली पहुंच गये। दूर—दूर से लोग उनके दर्शन करने को आने लगे।

एक पुराने मित्र उनके दर्शन करने को आये। उन्होंने सुना कि वे जो अशांतिनाथ थे, शांतिनाथ हो गये। चलो दर्शन कर आयें, क्रांति हुई! ऐसा मुश्किल है कि शाति हो जाये उनके जीवन में। वहां जा कर पहुंचे तो वे अकड़े बैठे थे। सब चला गया था, सब छोड़ दिया था—लेकिन अकड़! और सब छोड़ने की अकड़ और आंखों में वही हिंसा थी और वही क्रोध था और वही आग जल रही थी! शरीर दुर्बल हो गया था, शरीर सूख गया था! खूब तपश्चर्या की थी, लेकिन भीतर की आग शुद्ध हो कर जल रही थी। देख तो लिया मित्र को, पहचान भी गये, लेकिन अब इतने महातपस्वी, एक साधारण आदमी को कैसे पहचानें! मित्र ने भी देख लिया, पहचान भी गया कि उन्होंने भी पहचान लिया है, लेकिन वे पहचान नहीं रहे हैं, इधर—उधर देखते, देखते ही नहीं उसकी तरफ।

आखिर उस मित्र ने पूछा कि महाराज! बड़ी दूर से दर्शन को आया हूं आपका नाम क्या है? उन्होंने कहा, ‘शांतिनाथ! अखबार नहीं पढ़ते? रेडियो नहीं सुनते? टेलीविजन नहीं देखते? सारी दुनिया जानती है। कहां से आ रहे हो?’

उसने कहा, ‘महाराज गाव का गंवार हूं कुछ ज्यादा जानता—करता नहीं, पढ़ा—लिखा भी ज्यादा नहीं हूं। ‘

फिर थोड़ी देर ऐसी और बात चलती रही, उस आदमी ने फिर पूछा कि महाराज, नाम भूल गया आपका! महाराज तो भनभना गये। कहा, कह दिया एक दफे कि शांतिनाथ, समझ में नहीं आया? बहरे हो?

वह आदमी बोला कि नहीं महाराज, जरा बुद्धि मेरी कमजोर है।

मगर शांतिनाथ का असली रूप प्रगट होने लगा। वह फिर थोड़ी देर बैठा रहा और उसने फिर पूछा कि महाराज, नाम भूल गया। तो वह जो उन्होंने पिच्छी रख छोड़ी थी—जैन मुनि रखते हैं पिच्छी—उठा कर उसके सिर पर दे मारी बोले, हजार दफे समझा दिया तू ऐसे नहीं समझेगा! शांतिनाथ.!

उसने कहा, ‘महाराज बिलकुल समझ गया, अब कभी नहीं भूलेगा। इतना ही हम जानना चाहते थे कि कुछ फर्क हुआ कि नहीं हुआ? आप बिलकुल वही हैं। ‘

फर्क इतना आसान नहीं। अगर ऊपर—ऊपर से विधि और व्यवस्थायें की जायें तो फर्क होता ही नहीं; दिखाई पड़ता है।

Monday, December 20, 2021

ભીડ

અમારી ઓફિસ પાસે નાસ્તાની ચા પાણીની જગ્યા છે.
 અમે અવારનવાર ત્યાં જઈએ છીએ અને ત્યાં ઘણી ભીડ હોય છે.
ઘણી વખત મેં જોયું છે કે એક વ્યક્તિ આવે છે અને ભીડનો ફાયદો ઉઠાવે છે અને ખાધા પછી, પૈસા ચૂકવ્યા વિના છુપાઈને નીકળી જાય છે.

 એક દિવસ જ્યારે તે જમતો હતો ત્યારે મેં નાસ્તાના પોઈન્ટના માલિકને  જાણ કરી કે આ ભાઈ ભીડનો લાભ લઈ બિલ ચૂકવ્યા વિના જ નીકળી જશે.
 મારી વાત સાંભળીને બ્રેકફાસ્ટ પોઈન્ટનો માલિક હસવા લાગ્યો અને કહ્યું કે તેને કંઈપણ કહ્યા વગર જવા દો.. અને આ વિશે પછી વાત કરીશું.
🌹 રાબેતા મુજબ ભાઈએ નાસ્તો કર્યા પછી આજુબાજુ જોયું અને ભીડનો લાભ લઈને ચૂપચાપ ત્યાંથી સરકી ગયા.
🙏તેના ગયા પછી, મેં હવે બ્રેકફાસ્ટ પોઈન્ટના માલિકને પૂછ્યું કે મને કહો કે તમે માણસને શા માટે જવા દીધો.. તેણે આ માણસની ક્રિયાને કેમ અવગણી ???
🌹 બ્રેકફાસ્ટ પોઈન્ટના માલિકે  મને કહ્યું કે તમે એકલા નથી, ઘણા ભાઈઓએ તેની નોંધ લીધી છે અને મને તેના વિશે જણાવ્યું છે.
🌹તેણે કહ્યું કે તે દુકાનની સામે બેસે છે અને જ્યારે તેણે જોયું કે ત્યાં ભીડ છે, ત્યારે તે અંદર જઈને ખાશે.
🌹 મેં હંમેશા તેની અવગણના કરી અને તેને ક્યારેય રોક્યો નથી.. તેને ક્યારેય પકડ્યો નથી કે ક્યારેય તેનો અનાદર કરવાનો પ્રયાસ કર્યો નથી.
🙏કારણ કે મને લાગે છે કે મારી દુકાનમાં ધસારો આ ભાઈના મન ની  દુઆ ને કારણે છે....🙏🌹
👍તે મારી દુકાનની સામે બેસીને મનમાં દુઆ કરતો હશે કે જો આ દુકાનમાં ભીડ થાય તો હું ઝડપથી અંદર જઈ શકું, ખાઈ શકું અને બહાર નીકળી શકું.
અને જ્યારે તે અંદર આવે છે ત્યારે ચોક્કસ ત્યાં હંમેશા ધસારો હોય છે.🙏
હું  તેના મનની આ પ્રાર્થના અને સર્વ શક્તિમાન પાલનહાર આ પ્રાર્થના સ્વીકારની બાબતમાં વચ્ચે આવવા માંગતો નથી.🌹🙏આ હંમેશા મારા દ્વારા અવગણવામાં આવશે અને હું તેને હંમેશા આવો ખોરાક ખાવા દઈશ અને તેને પકડીને ક્યારેય તેનો અનાદર નહીં કરું!!!
🙏🙏🙏
1...કોઈ જાણતું નથી કે કોણ કોના નસીબ નું ખાય.છે .
2... અભિમાન ન રાખવું કે બધું તમારી ખુદ ની જ મહેનત કે આવડત થી છે... 
     આજુબાજુ માં નજર નાખશો ને તમારા કરતા પણ વધુ હોશિયારી અને આવડતવાળા મળશે જેની પાસે તમારા જેટલું નથી... કેમ કે તમારા પર ભગવાન ની  મહેરબાની જ છે એટલે તમે આગળ છો...
3..રોજ આભાર માનજો ભગવાનની 
 તેની ઉપર મહેરબાની  રહે.. અહીં રાતોરાત ખોવાઈ જતા વાર નથી લાગતી...
4.. પ્રાર્થના કરો કે બીજા પણ સુખી અને સમૃદ્ધ થાય... તમારું પણ  ભગવાન ધ્યાન રાખશે જ...
 🌹🙏 જીવન સૂત્ર આજ છે કે : બીજાના ભલામાં આપણું ભલું છે " 
" બીજાના સુખમાં આપણું સુખ છે " 
" બીજાના ઉત્કર્ષ માં આપણો ઉત્કર્ષ છે"
 🙏🙏🙏🙏🙏

Saturday, October 30, 2021

વાસ્તુદોષ

એક વ્યક્તિએ વેપારમાં ઉન્નતિ થયા બાદ લંડનમાં જમીન લીધી ને સરસ બંગલો બનાવ્યો.

જમીન પર પહેલેથી જ એક સરસ સ્વિમિંગ પુલ અને100 વરસ જૂનું લિચી નું ઝાડ હતું.

એ જગ્યા એમણે એ લિચી ના ઝાડને કારણે જ લીધેલી, કારણકે એની પત્નીને લિચી ખુબ જ પ્રિય હતી.

કેટલાક સમય પછી એમણે Renovation નું કામ કરવા ધાર્યું ત્યારે એમના મિત્રોએ સલાહ આપી કે એણે કોઈ વાસ્તુશાસ્ત્રીની સલાહ લેવી જોઈએ.

જો કે એને આવી કોઈ વાત પર વિશ્વાસ નહોતો પણ મિત્રોનું મન રાખવા એ માની ગયા અને
Hongkong ના 30 વરસથી વાસ્તુ શાસ્ત્રમાં પ્રસિદ્ધ
Master Cao  ને બોલાવી લીધા.

એમને Airport થી લીધા, બન્ને શહેરમાં જમ્યા અને પછી એમને પોતાની કારમાં પોતાને ઘેર લાવવા નીકળ્યા.

રસ્તામાં કોઈપણ કાર એમને Overtake કરવાની કોશિશ કરે, એ એને રસ્તો આપી દેતા.

Master Cao એ હસતા હસતા કહ્યું તમે ખૂબ Safe driving કરો છો. એણે પણ હસતા હસતા જ કીધું કે લોકો હમેશા Overtake ત્યારે જ કરે છે જ્યારે તેમને કોઈ અનિવાર્ય કાર્ય હોય, તો આપણે એમને રસ્તો આપવો જોઈએ.

ઘર સુધી પહોંચતા રસ્તો થોડો સાંકડો થઈ ગયો એટલે એણે કાર વધુ ધીમી કરી નાખી.ત્યારે જ અચાનક એક નાનો છોકરો હસતો હસતો ગલીમાંથી નીકળી ખૂબ ઝડપથી દોડતો એમની કાર આગળથી જ રસ્તો ક્રોસ કરી જતો રહ્યો.એ એ જ ધીમી ગતિથી પેલી ગલી બાજુ જોતા રહ્યા, જેમ કે એને કોઈની રાહ હોય, ત્યાં અચાનક એ જ ગલીમાંથી બીજો એક છોકરો તેજ ગતિથી દોડતો એમની કાર પાસેથી નીકળી ગયો, કદાચ પેલા આગળના બાળકનો પીછો કરતા કરતા.
Master Cao એ હેરાનીથી પૂછ્યું - તમને કેવી રીતે ખબર પડી કે બીજો છોકરો પણ દોડતો દોડતો નીકળશે?

એણે બહુ સહજભાવે કીધું, બાળકો હંમેશા એકબીજાની પાછળ દોડતા રહેતા હોય છે અને એ વાત પર વિશ્વાસ કરવો જ અસંભવ છે કે કોઈ સાથીદાર વગર કોઈ બાળક આવી ધમાલ કે ભાગદોડ કરતું હોય.

Master Cao આ વાત સાંભળી જોરથી હસ્યાં અને બોલ્યા, તમે નિઃસંદેહ ખૂબ જ સમજદાર વ્યક્તિ છો.

ઘર સુધી, પહોંચી બન્ને કારમાંથી ઉતર્યા,ત્યાં અચાનક ઘરની પાછળથી  7-8 પક્ષીઓ એકદમ ઝડપથી ઉડતા જોવામાં આવ્યા. એ જોઈને એણે Master Cao ને કીધું કે તમને ખરાબ ન લાગે તો આપણે થોડી વાર રોકાઈ જઈએ અહીં?

Master Cao એ કારણ જાણવા માગ્યુ તો એણે કહ્યું કે લગભગ કોઈ બાળકો ઝાડવા પરથી લિચી ચોરતા હશે, ને અચાનક આપણને જોઈને ગભરાહટમાં ભાગદોડ કરશેકે ઝાડ પર થી પડી જશે તો કોઈ બિચારા બાળકને ઇજા થઇ જશે.

Master Cao..... થોડો સમય

ચૂપ રહયા,પછી સંયમિત અવાજમાં બોલ્યા,
મિત્ર,
આ ઘર પર કોઈ જ વાસ્તુદોષ પણ નથી અને વાસ્તુદોષ નિવારણ ની કોઈ આવશ્યકતા પણ નથી.

એણે ખૂબ હેરાનીથી પૂછ્યું, કેમ?

Master Cao
જ્યાં તમારા જેવા વિવેકપૂર્ણ અને આસપાસના લોકોની ફક્ત ભલાઈ માટે જ વિચારતા લોકો રહેતા હોય,
એ સ્થાન/સંપત્તિ વાસ્તુશાસ્ત્ર ના નિયમ પ્રમાણે ખૂબ જ પવિત્ર-સુખદાયી-ફળદાયી જ રહેશે.

જયારે આપણું મન અને મસ્તિષ્ક બીજાની ખુશી અને શાંતિને પ્રાથમિકતા આપવા લાગશે, તો એનાથી બીજાને જ નહીં, આપણને પોતાને પણ માનસિક લાભ-શાંતિ- પ્રસન્નતા મળે છે.

જો કોઈ વ્યક્તિ કાયમ સ્વયં ની પહેલા બીજાનું ભલુ વિચારવા લાગે તો અજાણતા જ એને સંતત્વ પ્રાપ્ત થઈ જાય છે.

જેને કારણે બીજાનું ભલું પણ થતું જાય અને એને પોતાને જ્ઞાનબોધ મળે છે.

ભલે આપણે પ્રતિજ્ઞા ન કરીએ પરંતુ એવા પ્રયત્ન તો જરૂર કરીએ કે આપણામાં પણ કોઈ એવા ગુણ વિકસિત થઈ જાય,જેથી આપણા ઘરમાં પણ કોઈ પ્રકારના દોષની શાંતિ માટે મંત્ર તંત્ર ની આવશ્યકતા જ  ન રહે.