तिरुवल्लुवर
तिरुवल्लुवर (तमिल : திருவள்ளுவர்), एक जाने-माने तमिल
कवि और दार्शनिक थे। उन्हें Deiva Pulavar (दिव्य कवि), वल्लुवर और Poyyamozhi Pulavar, Senna
Pothar, Gnana Vettiyan जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। उन्हों
ने तमिल साहित्य को नैतिकता पर एक अनन्य कृति तिरुकुरल
की
भेट दी है। उनका जन्म तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में मायलापुर में हुआ था । उसकी
पत्नी वासुकी एक पवित्र और समर्पित महिला और आदर्श पत्नी थी, जो अपने पति के किसी आदेश का उल्लंघन नहीं करती थी, अपितु
चुपचाप पालन किया करती थी । तिरुवल्लुवर ने लोगो को बताया कि एक व्यक्ति एक ही समय
में एक दिव्य जीवन या शुद्धता तथा पवित्रता का जीवन और गृहस्थ का जीवन व्यतीत कर जी सकता है। उन्हों ने लोगो को यह भी दिखाया कि शुद्धता और
पवित्रता का दिव्य जीवन जीने के लिए परिवार को छोड़ने या संन्यासी बनने की कोई जरूरत
नहीं है।
तमिल शब्द ‘तिरुवल्लूवर’ में तिरु का अर्थ पवित्र तथा वल्लूवर यानि मालिक, व्यक्ति
अर्थात पूरे शब्द से तात्पर्य है‘विशिष्ट पवित्र व्यक्ति’। तिरुवल्लूवर की तुलना विश्व में पूजनीय महापुरुष जैसे कि सोक्रेटिस, प्लेटो, एरिस्टोटल, कन्फ़्यूशियस, रूसो से कि जाती है, पर ये सभी महापुरुष में से
किसी का भी जन्म 2000 वर्ष पूर्व नहीं हुआ था, अत:
तिरुवल्लूवरको अति प्राचीन महागुरु कहा जा सकता है । इनके तिरुकुरल में अत्यंत सरल
भाषा में जीवनोपयोगी बातें कही गईं है। तिरुकुरल में वाकचातुर्य नहीं है अपितु उस
में दर्शाया गया सदबोध, सदा के लिए अज्ञानरूपी इस गहन अंधकार
में ज्योति मिलने जैसा है। इस लिए इसे ‘प्रेरणा के मोती’ (Pearls of Inspiration) जैसा
विशिष्ट नाम दिया गया है। यह ग्रंथ हमें जीवन जीने का कौशल सिखाता है।
भारत के सबसे दक्षिणी छौर पर कन्याकुमारी में
दो समुद्र बंगाल का सागर व अरब सागर तथा एक महासागर हिन्द महासागर - तीन सागर के
मिलन स्थान (Confluence)
पर तिरुवल्लूवर की एक विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है। इस प्रतिमा के
निर्माण के लिए सीरुथामूर, पट्टुमलाईकुप्पम तथा अम्बासमुद्रम पर्वतों से शिलाएँ
लाई गई है । तिरुवल्लूवर
की इस भव्य प्रतिमा का अनावरण 01 जनवरी 2000 (सहस्राब्दी) को किया गया था। प्रतिमा
की कुल ऊंचाई 133 फीट है जो कुरल के अध्याय की संख्या को दर्शाता है। मूर्तितल की 38 फीट
की ऊंचाई कुरल के 38 अध्याय के प्रथम भाग का प्रतीक है तथा मूर्तितल पर खड़ी 95 फीट की प्रतिमा
कुरल के दूसरे व तीसरे भाग के कुल 95 अध्याय को सूचित करती है। इस तरह, यह प्रतिमा गुण (Virtue) पर आधारित प्रेम व संपत्ति
के विषयवस्तु को प्रतिकात्मक रूप से दर्शाती है।
मूर्तितल
(अथरामंडपम)
38 फीट ऊंचाई के अलंकार मंडपम नाम के कलात्मक मंडपम से घिरा हुआ है। अलंकार मंडपम
के आस-पास दस हाथी के पुतले है। तिरुवल्लूवर
के पवित्र चरणों की पूजा करने के लिए मुलाकातियों की मदद हेतु मंडपम में अंदर 140
सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। कमर के चारों ओर से मामूली मोड़ के साथ मूर्ति, नटराज की तरह प्राचीन भारतीय देवी देवताओं की नृत्य मुद्रा की याद ताजा
करती है । इस मूर्ति को भारतीय मूर्तिकार डॉ. वी. गणपति स्थपति ने रूप दिया है जो
इराइवन मंदिर के निर्माण के लिए भी जाने जाते है ।
इस स्मारक से 26 दिसंबर 2004 को हिंद महासागर में उठी सुनामी टकराई थी ।
इस स्मारक से 26 दिसंबर 2004 को हिंद महासागर में उठी सुनामी टकराई थी ।
प्रतिमा
की सांख्यिकीय सूचना :
प्रतिमा
की ऊंचाई – 95 फीट
|
मूर्तितल की ऊंचाई – 28 फीट
|
मूर्तितल के साथ प्रतिमा – 133 फीट
|
चेहरे (मस्तिष्क) की ऊंचाई – 10 फीट
|
शरीर
के भाग की ऊंचाई – 30 फीट
|
जांघ के भाग की ऊंचाई – 30 फीट
|
पैर के भाग की ऊंचाई – 20 फीट
|
पहुंचे
से कोहनी तक हाथ की लंबाई – 10 फीट
|
हस्तलिपि
की लंबाई – 10 फीट
|
कंधों की चौड़ाई – 30 फीट
|
केशविन्यास
की लंबाई – 5 फीट
|
समग्र ढाँचे का कुल वजन – 7000 टन
|
तिरुकुरल
(तमिल में திருக்குறள்)
तिरूवल्लुवर ने हमें तमिल लोगों में तमिल
वेद के रूप से सुख्यात पवित्र सिद्धांत ‘तिरुक्कुराल’ की भेंट दी हैं । तमिल के प्रसिद्ध संत कवि तिरुवल्लुवर का ग्रंथ
तिरुकुरल तमिल वेद के रुप में भी जाना जाता है । दक्षिण भारत में अत्यंत लोकप्रिय
इस ग्रंथ की रचना कवि द्वारा दो हज़ार वर्ष पूर्व हुई थी । उस समय का कोई आधारभूत
साहित्य अथवा कृति नहीं है, परंतु तिरुवल्लूवर और तिरुकुरल
कुछ इस तरह से लोगो के जीवन से जुड़ गए कि ये अमर बन गए । तिरु का अर्थ है पवित्र
और कुरल का अर्थ है अति संक्षिप्त, यानि कि तिरुकुरल से
तात्पर्य है ‘अत्यंत छोटे पवित्र श्लोक’ ।
उनकी सभी बुद्धिमान बातें और शिक्षाएं अब पुस्तक
के रूप में हैं और जो 'तिरुकुरल' के नाम से जाना जाता है। तमिल कैलेंडर उस
अवधि से दिनांकित होता है जो तिरुवल्लुवर आँदू (वर्ष) के रूप
में जाना जाता है। तिरुवल्लुवर के अस्तित्व की समय अवधि को ज्यादातर भाषाई सबूतों
के बजाय पुरातात्विक सबूतों के आधार पर तय किया गया है। यह अवधि 2 शताब्दी ई.पू.
और 8वीं सदी के बीच होने का अनुमान लगाया गया है ।
तिरुकुरल तमिल में सबसे प्रतिष्ठित
प्राचीन कार्यों में से एक है। कुरल मानव नैतिकता और जीवन में बेहतरी के लिए जिस
तरह से पथदर्शन करता है, इसे ‘आम पंथ’ के रूप में माना
जाता है। बाइबल, कुरान और गीता की तरह ही कुरल का भी सबसे
अधिक भाषाओं में अनुवाद किया गया है। 1730 में कोन्स्तांजों बेस्चि (Constanzo Beschi) द्वारा किए गए तिरुकुरल के लैटिन अनुवाद से
यूरोपीय बुद्धिजीवियों को तमिल साहित्य की सुंदरता और समृद्धि को जानने में सहायता
मिली।
तिरुकुरल दो शब्द तिरु और कुरल, यानी तिरु + कुरल = तिरुकुरल में शामिल होने से गठित एक संयुक्त शब्द है ।
तिरुकुरल तीन भागों में बांटा गया है ; भाग प्रथम “अराम” -विवेक और सम्मान ("सही आचरण") के साथ अच्छे नैतिक
व्यवहार से संबंधित है, भाग दो “पोरुल”
में सांसारिक मामलों के सही ढंग से संचालन की चर्चा है, और
तीसरा भाग “इंबाम”, आदमी और औरत के बीच के प्यार से संबंधित
है।
तिरुकुरल
के कुछ 1330 श्लोक है और प्रत्येक 10 पदवाले 133 अध्याय है, जिसमें सद्गुण (Virtue)-380,
सम्पदा (Wealth)-700 तथा प्रेम (love)–250 के बारे में सुंदर छोटे पद–श्लोक (मोती) है । सद्गुण के प्रमुख मूल्य
Domestic Virtue (गृहस्थ)
Ascetic
Virtue (तपस्वी)
Destiny
– (दैव)
Wealth
(सम्पदा)
Politic
– राजनीति
Limbs
of the states –राज्य के घटक
Miscellaneous
– प्रकीर्ण
Love- प्रेम
Secret-गोपनीय
Weded-परिणित
तिरुकुरल में 10 दोहे प्रत्येक
में ऐसे 133 अध्यायों में यानि कि कुल 1330 दोहे में संरचित है। इन 133 अध्याय को तीन
वर्गों में बांटा गया है :
1
(
तमिल : அறம் , अराम ) धर्म,
2
(
तमिल : பொருள் , पोरुल) धन और
3
(
तमिल : இன்பம் , इंबाम) प्यार ।
तिरुकुरल कई और नामों से भी
सुख्यात है :
1.
Uttaravedam – श्रेष्ठ वेद (उत्तरा = उच्च, वेदम = वेद)
2.
Poyyamozhi - असत्य से रहित वक्तव्य
3.
Vayuraivazhthu – सच्ची वाणी
4.
Deyvanool - दिव्य पुस्तक
5.
Pothumarai - आम आदमी के वेद
6.
Muppal – तीन मोड़ वाला रास्ता
7.
Tamil
Marai - तमिल वेद
सन 1886 में जी.यू. पोप द्वारा तिरुकुरल के अंग्रेजी अनुवाद से इसका
परिचय पश्चिमी दुनिया से हुआ। यह कृति अंग्रेजी भाषा में कुरल का सबसे पहला अनुवाद
है। तमिल साहित्य विश्वकोश में तिरुकुरल के निम्नलिखित अनुवाद/टिप्पणियां शामिल
हैं :
01) अरबी 02) बांग्ला 03) बर्मी 04) चीनी 05)
चेक 06) डच 07) अंग्रेजी 08) फिजी 09) फिनिश 10 ) फ्रेंच 11) जर्मन 12) गुजराती
13) हिन्दी 14) हंगेरीयन 15) इतालवी 16) जापानी 17) कन्नड़ 18) कोंकणी 19) कोरियाई
20 ) लैटिन 21) मलय 22) मलयालम 23 ) मराठी 24 ) नार्वेजियन 25) उड़िया 26) पॉलिश 27)
पंजाबी 28) राजस्थानी 29) रूसी 30) संस्कृत 31) सोरठी 32) सिंहाली 33) स्पेनिश 34)
स्विडिश 35) तेलुगू 36) उर्दू
तिरुवल्लूवर
ने भगवान का गौरव (glories), प्रकृति, कलाप्रेम (ascetics) और अपने महाकाव्य में गुण (virtue) की प्रशंसा की
है ।
तिरुवल्लूवर
की उक्तियाँ : एक शक्ति है जो हमारा संचालन करती है, जिसे हम
सर्वशक्तिमान और ईश्वर कहते है । करुणा ही सबसे बड़ा गुण है, जो दुनिया
को चलाता है।
अगर
आपको किसीसे शत्रुता करनी पड़े तो हथियारधारी व्यक्ति से करना किसी कलमधारी
साहित्यकार से नहीं। "
-तिरुवल्लुवर, कुरल
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