Tuesday, October 17, 2017

कभी कभी

کبھی کبھی میرے دل میں خیال آتا ہے
کہ زندگی تری زلفوں کی نرم چھاؤں میں
گزرنے پاتی تو شاداب ہو بھی سکتی تھی

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
कि ज़िंदगी तेरी ज़ुल्फ़ों की नर्म छाँव में
गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी

یہ تیرگی جو مری زیست کا مقدر ہے
تری نظر کی شعاعوں میں کھو بھی سکتی تھی

ये तीरगी जो मेरी ज़ीस्त का मुक़द्दर है
तेरी नज़र की शुआ'ओं में खो भी सकती थी

عجب نہ تھا کہ میں بیگانۂ الم ہو کر
ترے جمال کی رعنائیوں میں کھو رہتا
ترا گداز بدن تیری نیم باز آنکھیں
انہی حسین فسانوں میں محو ہو رہتا

अजब न था कि मैं बेगाना-ए-अलम हो कर
तेरे जमाल की रानाइयों में खो रहता
तेरा गुदाज़-बदन तेरी नीम-बाज़ आँखें
इन्ही हसीन फ़सानों में महव हो रहता

پکارتیں مجھے جب تلخیاں زمانے کی
ترے لبوں سے حلاوت کے گھونٹ پی لیتا
حیات چیختی پھرتی برہنہ سر اور میں
گھنیری زلفوں کے سائے میں چھپ کے جی لیتا

पुकारतीं मुझे जब तल्ख़ियाँ ज़माने की
तेरे लबों से हलावत के घूँट पी लेता
हयात चीख़ती फिरती बरहना सर और मैं
घनेरी ज़ुल्फ़ों के साए में छुप के जी लेता

مگر یہ ہو نہ سکا اور اب یہ عالم ہے
کہ تو نہیں ترا غم تیری جستجو بھی نہیں
گزر رہی ہے کچھ اس طرح زندگی جیسے
اسے کسی کے سہارے کی آرزو بھی نہیں

मगर ये हो न सका और अब ये आलम है
कि तू नहीं तेरा ग़म तेरी जुस्तुजू भी नहीं
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे
उसे किसी के सहारे की आरज़ू भी नहीं

زمانے بھر کے دکھوں کو لگا چکا ہوں گلے
گزر رہا ہوں کچھ انجانی رہ گزاروں سے
مہیب سائے مری سمت بڑھتے آتے ہیں
حیات و موت کے پر ہول خارزاروں سے

ज़माने भर के दुखों को लगा चुका हूँ गले
गुज़र रहा हूँ कुछ अन-जानी रहगुज़ारों से
मुहीब साए मेरी सम्त बढ़ते आते हैं
हयात ओ मौत के पुर-हौल ख़ारज़ारों से

نہ کوئی جادۂ منزل نہ روشنی کا سراغ
بھٹک رہی ہے خلاؤں میں زندگی میری
انہی خلاؤں میں رہ جاؤں گا کبھی کھو کر
میں جانتا ہوں مری ہم نفس مگر یوں ہی
کبھی کبھی مرے دل میں خیال آتا ہے

न कोई जादा-ए-मंज़िल न रौशनी का सुराग़
भटक रही है ख़लाओं में ज़िंदगी मेरी
इन्ही ख़लाओं में रह जाऊँगा कभी खो कर
मैं जानता हूँ मेरी हम-नफ़स मगर यूँही
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

#SahirLudhianvi #IshqUrdu

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