Sunday, July 19, 2020

તો હું શું કરું?

દીલ ન લાગે કિનારે, તો હું શું કરું?
દૂર ઝંઝા પુકારે, તો હું શું કરું?

હું કદી ના ગણું તુજને પથ્થર સમો,
તું જ એ રૂપ ધારે, તો હું શું કરું?

હો વમળમાં તો મનને મનાવી લઉં,
નાવ ડૂબે કિનારે, તો હું શું કરું?

આંસુઓ ખૂબ મોંઘા છે માન્યું છતાં
કોઈ પાલવ પ્રસારે, તો હું શું કરું?

તારી ઝૂલ્ફોમાં ટાંકી દઉં તારલાં,
પણ તું આવે સવારે, તો હું શું કરું?

Saturday, July 18, 2020

મહાભારતના ૯ સાર-સુત્રો

૧)  સંતાનોની ખોટી જીદ અને માંગણીઓ ઉપર, તમારો જો સમયસર અંકુશ નહિ હોય તો, જીવનમાં છેલ્લે તમે નિ:સહાય થઈ જશો = કૌરવો

૨)  તમે ગમે તેટલા બલવાન હો,પણ તમે અધર્મ નો સાથ આપશો તો, તમારી શક્તિ, અસ્ત્ર -શસ્ત્ર, વિધા,વરદાન, બધું જ નકામું થઈ જશે. = કર્ણ

૩)  સંતાનો ને એટલા મહત્વાકાંક્ષી ન બનાવો,
 કે વિદ્યાનો દુરૂપયોગ કરીને સર્વનાશ નોતરે = અષ્વત્થામા

૪). ક્યારેય  કોઈને એવાં વચન ના આપો, કે જેનાથી તમારે અધર્મીઓની સામે સમર્પણ કરવું પડે = ભીષ્મપિતા

૫). સંપત્તિ, શક્તિ, સત્તા, સંખ્યાનો દુરુપયોગ, અને દુરાચારીઓનો સથવારો, અંતે  સર્વનાશ નોતરે છે = દુર્યોધન

૬). અંધ વ્યક્તિ .. અર્થાત્ ..સ્વાર્થાંધ, વિત્તાંધ, મદાંધ, જ્ઞાનાન્ધ , મોહાન્ધ અને  કામાન્ધ વ્યક્તિના હાથમાં સત્તાનું સુકાન ના સોંપાવુ જોઈએ, નહીં તો તે સર્વ નાશ નોંતરશે. = ધ્રુતરાષ્ટ્ર

૭)  વિદ્યા ની સાથે વિવેક હશે તો, તમે અવશ્ય વિજયી થશો - = અર્જુન 

૮)  બધા સમયે-બધી બાબતોમાં  છળકપટથી, તમે બધે, બધી બાબતમાં, દરેક વખત સફળ નહીં થાવ = શકુનિ

૯)  જો તમે નીતી/ધર્મ/કર્મ સફળતા પુર્વક નિભાવશો તો, વિશ્વની કોઈ પણ શક્તિ,  તમારો વાળ પણ વાંકો નહીં કરી શકે = યુધિષ્ઠિર

Sunday, July 5, 2020

रामायण के सात काण्ड

श्री राम जय राम जय जय राम 
जय जय विघ्न हरण हनुमान

रामायण के सात काण्ड मानव की उन्नति के सात सोपान
 
1. बालकाण्ड –

बालक प्रभु को प्रिय है क्योकि उसमेँ छल , कपट , नही होता विद्या , धन एवं प्रतिष्ठा बढने पर भी जो अपना हृदय निर्दोष निर्विकारी बनाये रखता है ,उसी को भगवान प्राप्त होते है। बालक जैसा निर्दोष निर्विकारी दृष्टि रखने पर ही राम के स्वरुप को पहचान सकते है। जीवन मेँ सरलता का आगमन संयम एवं ब्रह्मचर्य से होता है।बालक की भाँति अपने मान अपमान को भूलने से
जीवन मेँ सरलता आती है बालक के समान निर्मोही एवं निर्विकारी बनने पर शरीर अयोध्या बनेगा । जहाँ युद्ध, वैर, ईर्ष्या नहीँ है, वही अयोध्या है।

2. अयोध्याकाण्ड –

यह काण्ड मनुष्य को निर्विकार बनाता है। जब जीव भक्ति रुपी सरयू नदी के तट पर हमेशा निवास करता है, तभी मनुष्य निर्विकारी बनता है। भक्ति अर्थात् प्रेम, अयोध्याकाण्ड प्रेम प्रदान करता है । रामका भरत प्रेम , राम का सौतेली माता से प्रेम आदि, सब इसी काण्ड मेँ है। राम की निर्विकारिता इसी मेँ दिखाई  देती है ।अयोध्याकाण्ड का पाठ करने से परिवार मेँ प्रेम बढता है ।उसके घर मेँ लडाई झगडे नहीँ होते ।उसका घर अयोध्या बनता है। कलह का मूल कारण धन एवं प्रतिष्ठा है ।अयोध्याकाण्ड का फल निर्वैरता है ।सबसे पहले अपने घर की ही सभी प्राणियोँ मेँभगवद् भाव रखना चाहिए।

3.  अरण्यकाण्ड –

यह निर्वासन प्रदान करता है ।इसका मनन करने से वासना नष्ट होगी ।बिना अरण्यवास(जंगल) के जीवन मेँ दिव्यता नहीँ आती ।रामचन्द्र राजा होकर भी सीता के साथ वनवास किया ।वनवास मनुष्य हृदय को कोमल बनाता है।तप द्वारा ही कामरुपी रावण का बध होगा । इसमेँ सूपर्णखा(मोह )एवं शबरी (भक्ति)दोनो ही है।भगवान राम सन्देश देते हैँ कि मोह को त्यागकर भक्ति को अपनाओ ।

किष्किन्धाकाण्ड –

जब मनुष्य निर्विकार एवं निर्वैर होगा तभी जीव की ईश्वर से मैत्री होगी ।इसमे सुग्रीव और राम अर्थात् जीव और ईश्वर की मैत्री का वर्णन है।जब जीव सुग्रीव की भाँति हनुमान अर्थात् ब्रह्मचर्य का आश्रय लेगा तभी उसे राम मिलेँगे। जिसका कण्ठ सुन्दर है वही सुग्रीव है।कण्ठ की शोभा आभूषण से नही बल्कि राम नाम का जप करने से है।जिसका कण्ठ सुन्दर है ,उसी की मित्रता राम से होती है किन्तु उसे हनुमान यानी ब्रह्मचर्य की सहायता लेनी पडेगी।

5. सुन्दरकाण्ड –

जब जीव की मैत्री राम से हो जाती है तो वह सुन्दर हो जाता है ।इस काण्ड मेँ हनुमान को सीता के दर्शन होते है।सीताजी पराभक्ति है ,जिसका जीवन सुन्दर होता है उसे ही पराभक्ति के दर्शन होते है ।संसार समुद्र पार करने वाले को पराभक्ति सीता के दर्शन होते है ।ब्रह्मचर्य एवं रामनाम का आश्रय लेने वाला संसार सागर को पार करता है ।संसार सागर को पार करते समय मार्ग मेँ सुरसा बाधा डालने आ जाती है। अच्छे रस ही सुरसा है , नये नये रस की वासना रखने वाली जीभ ही सुरसा है। संसार सागर पार करने की कामना रखने वाले को जीभ को वश मे रखना होगा ।जहाँ पराभक्ति सीता है वहाँ शोक नही रहता ,जहाँ सीता है वहाँ अशोकवन है।

6.  लंकाकाण्ड –

जीवन भक्तिपूर्ण होने पर राक्षसो का संहार होता है काम क्रोधादि ही राक्षस हैँ ।जो इन्हेँ मार
सकता है ,वही काल को भी मार सकता है ।जिसे काम मारता है उसे काल भी मारता है ,लंका शब्द के अक्षरो को इधर उधर करने पर होगा कालं ।काल सभी को मारता है किन्तु हनुमान जी काल को भी मार देते हैँ ।क्योँकि वे ब्रह्मचर्य का पालन करते हैँ पराभक्ति का दर्शन करते है ।

7 उत्तरकाण्ड –

इस काण्ड मेँ काकभुसुण्डि एवं गरुड संवाद को बार बार पढना चाहिए । इसमेँ सब कुछ है ।जब तक राक्षस ,काल का विनाश नहीँ होगा तब तक उत्तरकाण्ड मे प्रवेश नही मिलेगा। इसमेँ भक्ति की कथा है। भक्त कौन है ? जो भगवान से एक क्षण भी अलग नही हो सकता वही भक्त है पूर्वार्ध मे जो काम रुपी रावण को मारता है उसी का उत्तरकाण्ड सुन्दर बनता है ,वृद्धावस्था मे
राज्य करता है। जब जीवन के पूर्वार्ध मे युवावस्था मे काम को मारने का प्रयत्न होगा तभी उत्तरार्ध –उत्तरकाण्ड सुधर पायेगा । अतः जीवन को सुधारने का प्रयत्न युवावस्था से ही करना चाहिए उसमे भी यदि अपने सद्गुरु जैसे की कृपा हो जाय तो जीवन धन्य,सफल हो जाय।

भावार्थ रामायण से

Saturday, June 27, 2020

हनुमान जी का कर्जा

रामजी लंका पर विजय प्राप्त करके आए तो, भगवान ने विभीषण जी, जामवंत जी, अंगद जी, सुग्रीव जी सब को अयोध्या से विदा किया। 
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तो सब ने सोचा हनुमान जी को प्रभु बाद में बिदा करेंगे, लेकिन रामजी ने हनुमानजी को विदा ही नहीं किया,
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अब प्रजा बात बनाने लगी कि क्या बात सब गए हनुमानजी नहीं गए अयोध्या से !
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अब दरबार में काना फूसी शुरू हुई कि हनुमानजी से कौन कहे जाने के लिए, तो सबसे पहले माता सीता की बारी आई कि आप ही बोलो कि हनुमानजी चले जाएं।
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माता सीता बोलीं मै तो लंका में विकल पड़ी थी, मेरा तो एक एक दिन एक एक कल्प के समान बीत रहा था, 
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वो तो हनुमानजी थे,जो प्रभु मुद्रिका ले के गए, और धीरज बंधवाया कि...!

कछुक दिवस जननी धरु धीरा।
कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।

निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।
तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥
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मै तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी अयोध्या छोड़कर जाने के लिए, आप किसी और से बुलावा लो।
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अब बारी आयी लखनजी की तो लक्ष्मण जी ने कहा, मै तो लंका के रणभूमि में वैसे ही मरणासन्न अवस्था में पड़ा था, पूरा रामदल विलाप कर रहा था।

प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।
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ये तो जो खड़ा है, वो हनुमानजी का लक्ष्मण है। मै कैसे बोलूं, किस मुंह से बोलूं कि हनुमानजी अयोध्या से चले जाएं !
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अब बारी आयी भरतजी की, अरे ! भरतजी तो इतना रोए, कि रामजी को अयोध्या से निकलवाने का कलंक तो वैसे ही लगा है मुझपे, हनुमानजी का सब मिलके और लगवा दो !
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और दूसरी बात ये कि...!

बीतें अवधि रहहिं जौं प्राना।
अधम कवन जग मोहि समाना
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मैंने तो नंदीग्राम में ही अपनी चिता लगा ली थी, वो तो हनुमानजी थे जिन्होंने आकर ये खबर दी कि...!
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रिपु रन जीति सुजस सुर गावत।
सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥
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मैं तो बिल्कुल न बोलूं हनुमानजी से अयोध्या छोड़कर चले जाओ, आप किसी और से बुलवा लो।
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अब बचा कौन..? सिर्फ शत्रुहन भैया। जैसे ही सब ने उनकी तरफ देखा, तो शत्रुहन भैया बोल पड़े.. 
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मैंने तो पूरी रामायण में कहीं नहीं बोला, तो आज ही क्यों बुलवा रहे हो, और वो भी हनुमानजी को अयोध्या से निकलने के लिए, 
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जिन्होंने ने माता सीता, लखन भैया, भरत भैया सब के प्राणों को संकट से उबारा हो ! किसी अच्छे काम के लिए कहते बोल भी देता। मै तो बिल्कुल भी न बोलूं।
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अब बचे तो मेरे राघवेन्द्र सरकार... 
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माता सीता ने कहा प्रभु ! आप तो तीनों लोकों ये स्वामी है, और देखती हूं आप हनुमानजी से सकुचाते है। और आप खुद भी कहते हो कि...!
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प्रति उपकार करौं का तोरा।
सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥
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आखिर आप के लिए क्या अदेय है प्रभु ! 
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राघवजी ने कहा देवी कर्जदार जो हूं, हनुमान जी का, इसीलिए तो..
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सनमुख होइ न सकत मन मोरा
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देवी ! हनुमानजी का कर्जा उतारना आसान नहीं है, इतनी सामर्थ राम में नहीं है, जो "राम नाम" में है। 
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क्योंकि कर्जा उतारना भी तो बराबरी का ही पड़ेगा न...! यदि सुनना चाहती हो तो सुनो हनुमानजी का कर्जा कैसे उतारा जा सकता है।
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पहले हनुमान विवाह करें,
लंकेश हरें इनकी जब नारी।
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मुदरी लै रघुनाथ चलै,
निज पौरुष लांघि अगम्य जे वारी।
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अायि कहें, सुधि सोच हरें, 
तन से, मन से होई जाएं उपकारी।
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तब रघुनाथ चुकायि सकें, 
ऐसी हनुमान की दिव्य उधारी।।
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देवी ! इतना आसान नहीं है, हनुमान जी का कर्जा चुकाना। मैंने ऐसे ही नहीं कहा था कि...!
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं
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मैंने बहुत सोच विचार कर कहा था। लेकिन यदि आप कहती हो तो कल राज्य सभा में बोलूंगा कि हनुमानजी भी कुछ मांग लें।
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दूसरे दिन राज्य सभा में सब एकत्र हुए, सब बड़े उत्सुक थे कि हनुमानजी क्या मांगेंगे, और रामजी क्या देंगे।
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राघवजी ने कहा ! हनुमान सब लोगों ने मेरी बहुत सहायता की और मैंने, सब को कोई न कोई पद दे दिया। 
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विभीषण और सुग्रीव को क्रमशः लंका और किष्कन्धा का राजपद, अंगद को युवराज पद। तो तुम भी अपनी इच्छा बताओ...?
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हनुमानजी बोले ! प्रभु आप ने जितने नाम गिनाए, उन सब को एक एक पद मिला है, और आप कहते हो...!
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तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना
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तो फिर यदि मै दो पद मांगू तो..?
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सब लोग सोचने लगे बात तो हनुमानजी भी ठीक ही कह रहे हैं। 
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रामजी ने कहा ! ठीक है, मांग लो, 
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सब लोग बहुत खुश हुए कि आज हनुमानजी का कर्जा चुकता हुआ।
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हनुमानजी ने कहा ! प्रभु जो पद आप ने सबको दिए हैं, उनके पद में राजमद हो सकता है, तो मुझे उस तरह के पद नहीं चाहिए, जिसमे राजमद की शंका हो, 
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तो फिर...! आप को कौन सा पद चाहिए ?
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हनुमानजी ने रामजी के दोनों चरण पकड़ लिए, प्रभु ..! हनुमान को तो बस यही दो पद चाहिए।
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हनुमत सम नहीं कोउ बड़भागी।
नहीं कोउ रामचरण अनुरागी।।

जय श्री राम।।

Friday, June 5, 2020

सच्ची प्रार्थना

बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं, तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं । क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है?

आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर - अपने घर की व्यापार की - राजनीति की चर्चा करते हैं, परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई थी । वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं । आप इस लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं । यह श्लोक इस प्रकार है -

अनायासेन मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

इस श्लोक का अर्थ है अनायासेन मरणम्...... अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं ।

बिना देन्येन जीवनम्......... अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो । ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके ।

देहांते तव सानिध्यम ........अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले ।

देहि में परमेशवरम्..... हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।

यह प्रार्थना करें गाड़ी, लाडी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन यह नहीं मांगना है, यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं । इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए ।
यह प्रार्थना है, याचना नहीं है । याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है; वह याचना है, वह भीख है।

हम प्रार्थना करते हैं, प्रार्थना का अर्थ विशेष होता है अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ । अर्थना अर्थात निवेदन । ठाकुर जी से प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या करना है, यह श्लोक बोलना है :

सब से जरूरी बात
जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए । उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं । आंखें बंद क्यों करना - हम तो दर्शन करने आए हैं । भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, मुखारविंद का, शृंगार का, सम्पूर्ण आनंद लें । आंखों में भर ले - स्वरूप को । दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे, तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं, उस स्वरूप का ध्यान करें । मंदिर में नेत्र बंद नहीं करना । बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए, तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें । नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें।

यहीं शास्त्र हैं, यहीं बड़े बुजुर्गो का कहना हैं !

Tuesday, June 2, 2020

Intelligence and Wisdom

This is so so good ... I had never known these  profound distinctions between Intelligence and Wisdom
(Quotes from our ancient 
Books )


1. Intelligence leads to arguments.
Wisdom leads to settlements.
2. Intelligence is power of will.
Wisdom is power OVER  will.
3. Intelligence is heat, it burns.
Wisdom is warmth, it comforts.
4. Intelligence is pursuit of knowledge, it tires the seeker.
Wisdom is pursuit of truth, it inspires the seeker.
5. Intelligence is holding on.
Wisdom is letting go.
6. Intelligence leads you.
Wisdom guides you.
7. An intelligent man thinks he knows everything.
A wise man knows that there is still something to learn.
8. An intelligent man always tries to prove his point.
A wise man knows there really is no point.
9. An intelligent man freely gives unsolicited advice.
A wise man keeps his counsel until all options are considered.
10. An intelligent man understands what is being said.
A wise man understands what is left unsaid.
11. An intelligent man speaks when he has to say something.
A wise man speaks when he has something to say.
12. An intelligent man sees  everything as relative.
A wise man sees everything as related.
13. An intelligent man tries to control the mass flow.
A wise man navigates the mass flow.
14. An intelligent man preaches.
A wise man reaches.

Intelligence is good
but wisdom achieves better results.

Thursday, May 28, 2020

A Collection of superb, hard hitting, humorous comments...

"In my many years I have come to a conclusion, ... that one useless man is a shame,  two [useless men] is a law firm and three or more [useless men] is a government."

~John Adams 

 

"If you don't read the newspaper you are  uninformed, if you do read the newspaper, you are  misinformed."

 ~Mark Twain 

 

"I  contend that for  a nation to try to tax itself into prosperity is like a man standing in a bucket and trying  to lift himself up by the  handle."

 ~Winston Churchill 

 

"A government which  robs Peter to pay Paul can always depend on the support of  Paul."

 ~George Bernard Shaw  

 

"Foreign aid might be defined as a transfer of money from poor people in rich countries to rich people in poor countries."

~ Douglas Casey, Classmate of Bill Clinton at Georgetown University 


"Giving  money and  power to  government is like giving whiskey and car keys to teenage boys."

~P.J. O'Rourke,  Civil Libertarian 


"Just because you do not take an interest in politics doesn't mean politics won't take an interest in you!"

~Pericles (430  B.C.)  


"No man's life, liberty, or property is safe while the legislature is in session."

~Mark Twain  (1866)


"The government is like a baby's alimentary canal, with a happy appetite at one end and no responsibility at the other."

~ Ronald  Reagan  


"The  only difference between a tax man and a taxidermist is that the taxidermist leaves the skin."

~Mark Twain 


"What this country needs are more unemployed politicians."

~Edward Langley,  Artist (1928-1995)  


"A  government big enough to give you everything you want, is strong enough to take everything you have."

~Thomas Jefferson  

 

"We hang the petty thieves and appoint the great ones to public office."

~Aesop  


"If you think health care is expensive now, wait until you see what it costs when it's free!"

~P.J.  O'Rourke 


Wednesday, May 6, 2020

ओशो

*ओशो* गजब का *ज्ञान* दे गये, *कोरोना* जैसी *जगत बिमारी* के लिए

*70* के *दशक* में *हैजा* भी *महामारी* के रूप में पूरे *विश्व* में फैला था, तब *अमेरिका* में किसी ने *ओशो रजनीश जी* से प्रश्न किया
-इस *महामारी* से कैसे  बचे ?

*ओशो* ने विस्तार से जो समझाया वो आज *कोरोना* के सम्बंध में भी बिल्कुल *प्रासंगिक* है।

🌹 *ओशो* 🌹

यह *प्रश्न* ही आप *गलत* पूछ रहे हैं,

*प्रश्न* ऐसा होना चाहिए था कि *महामारी* के कारण मेरे मन में *मरने का जो डर बैठ गया है* उसके सम्बन्ध में कुछ कहिए?*

इस *डर* से कैसे बचा जाए...?

क्योंकि *वायरस* से *बचना* तो बहुत ही *आसान* है,

लेकिन जो *डर* आपके और *दुनिया* के *अधिकतर लोगों* के *भीतर* बैठ गया है, उससे *बचना* बहुत ही *मुश्किल* है।

अब इस *महामारी* से कम लोग, इसके *डर* के कारण लोग ज्यादा *मरेंगे*.......।

*’डर’* से ज्यादा खतरनाक इस *दुनिया* में कोई भी *वायरस* नहीं है।

इस *डर* को समझिये, 
अन्यथा *मौत* से पहले ही आप एक *जिंदा* लाश बन जाएँगे।

यह जो *भयावह माहौल* आप अभी देख रहे हैं, इसका *वायरस* आदि से कोई *लेना* *देना* नहीं है।

यह एक *सामूहिक पागलपन* है, जो एक *अन्तराल* के बाद हमेशा घटता रहता है, कारण *बदलते* रहते हैं, कभी *सरकारों की प्रतिस्पर्धा*, कभी *कच्चे तेल की कीमतें*, कभी *दो देशों की लड़ाई*, तो कभी *जैविक हथियारों की टेस्टिंग*!!

इस तरह का *सामूहिक* *पागलपन* समय-समय पर *प्रगट* होता रहता है। *व्यक्तिगत पागलपन* की तरह *कौमगत*, *राज्यगत*, *देशगत* और *वैश्विक* *पागलपन* भी होता है।

इस में *बहुत* से लोग या तो हमेशा के लिए *विक्षिप्त* हो जाते हैं या फिर *मर* जाते हैं ।

ऐसा पहले भी *हजारों* बार हुआ है, और आगे भी होता रहेगा और आप देखेंगे कि आने वाले बरसों में युद्ध *तोपों* से नहीं बल्कि *जैविक हथियारों* से लड़ें जाएंगे।

🌹मैं फिर कहता हूं हर समस्या *मूर्ख* के लिए *डर* होती है, जबकि *ज्ञानी* के लिए *अवसर*!!

इस *महामारी* में आप *घर* बैठिए, *पुस्तकें पढ़िए*, शरीर को कष्ट दीजिए और *व्यायाम* कीजिये, *फिल्में* देखिये, *योग*  कीजिये और एक माह में *15* किलो वजन घटाइए, चेहरे पर बच्चों जैसी ताजगी लाइये
अपने *शौक़* पूरे कीजिए।

मुझे अगर *15* दिन घर  बैठने को कहा जाए तो में इन *15* दिनों में *30* पुस्तकें पढूंगा और नहीं तो एक *बुक* लिख डालिये, इस *महामन्दी* में पैसा *इन्वेस्ट* कीजिये, ये अवसर है जो *बीस तीस* साल में एक बार आता है *पैसा* बनाने की सोचिए....क्युं बीमारी की बात करके वक्त बर्बाद करते हैं...

ये *’भय और भीड़’* का मनोविज्ञान सब के समझ नहीं आता है।* 

*’डर’* में रस लेना बंद कीजिए...

आमतौर पर हर आदमी *डर* में थोड़ा बहुत रस लेता है, अगर *डरने* में मजा नहीं आता तो लोग *भूतहा* फिल्म देखने क्यों जाते?


☘ यह सिर्फ़ एक *सामूहिक पागलपन* है जो *अखबारों* और *TV* के माध्यम से *भीड़* को बेचा जा रहा है...

लेकिन *सामूहिक पागलपन* के *क्षण* में आपकी *मालकियत छिन* सकती है...आप *महामारी* से *डरते* हैं तो आप भी *भीड़* का ही हिस्सा है

*ओशो* कहते है...tv पर खबरे सुनना या *अखबार* पढ़ना बंद करें

ऐसा कोई भी *विडियो* या *न्यूज़* मत देखिये जिससे आपके भीतर *डर* पैदा हो...

*महामारी* के बारे में बात करना *बंद* कर दीजिए, 

*डर* भी एक तरह का *आत्म-सम्मोहन* ही है। 

एक ही तरह के *विचार* को बार-बार *घोकने* से *शरीर* के भीतर *रासायनिक* बदलाव  होने लगता है और यह *रासायनिक* बदलाव कभी कभी इतना *जहरीला* हो सकता है कि आपकी *जान* भी ले ले;

*महामारी* के अलावा भी बहुत कुछ *दुनिया* में हो रहा है, उन पर *ध्यान* दीजिए;

*ध्यान-साधना* से *साधक* के चारों तरफ  एक *प्रोटेक्टिव Aura* बन जाता है, जो *बाहर* की *नकारात्मक उर्जा* को उसके भीतर *प्रवेश* नहीं करने देता है, 
अभी पूरी *दुनिया की उर्जा* *नाकारात्मक*  हो चुकी  है.......

ऐसे में आप कभी भी इस *ब्लैक-होल* में  गिर सकते हैं....ध्यान की *नाव* में बैठ कर हीं आप इस *झंझावात* से बच सकते हैं।

*शास्त्रों* का *अध्ययन* कीजिए, 
*साधू-संगत* कीजिए, और *साधना* कीजिए, *विद्वानों* से सीखें

*आहार* का भी *विशेष* ध्यान रखिए, *स्वच्छ* *जल* पीए,

*अंतिम बात:*
*धीरज* रखिए...*जल्द* ही सब कुछ *बदल* जाएगा.......

जब  तक *मौत* आ ही न जाए, तब तक उससे *डरने* की कोई ज़रूरत नहीं है और जो *अपरिहार्य* है उससे *डरने* का कोई *अर्थ* भी नहीं  है, 

*डर* एक  प्रकार की *मूढ़ता* है, अगर किसी *महामारी* से अभी नहीं भी मरे तो भी एक न एक दिन मरना ही होगा, और वो एक दिन कोई भी  दिन हो सकता है, इसलिए *विद्वानों* की तरह *जीयें*, *भीड़* की तरह  नहीं!!

☘☘ *ओशो* 🙏☘☘

Sunday, May 3, 2020

कवच

पूरे मोहल्ले में यह चर्चा थी कि गुड़िया को एड्स की बीमारी है। दरअसल उसका पति एक सरकारी मुलाज़िम था जो कि सिर्फ 25 वर्ष की आयु में ही अचानक किसी रहस्यमयी बीमारी का शिकार हो कर दुनिया छोड़ गया था। एड्स पर काम कर रही एक स्वयंसेवी संस्था के कार्यकर्ता बहुत समझा-बुझा कर गुडिया को एड्स की जाँच करवाने अपने साथ ले गए थे। गुड़िया को जो सरकारी पेंशन मिलती थी उसी से किसी तरह अपना जीवन यापन कर रही थी।
 जांच करने वाले डॉक्टर ने बड़ी हैरानी से पूछा कि रिपोर्ट में तो तुम्हें कोई बीमारी नहीं है, तुम तो बिलकुल स्वस्थ हो, फिर यह एड्स की अफवाह क्यों ? तुम लोगों को मुँह तोड़ जवाब क्यों नहीं देती ? हाथ जोड़ कर गुड़िया बोली,"डॉ० साहिब, आप से विनती है यह बात किसी से भी मत कहिएगा, एक जवान बेवा अपनी इज्जत खूंखार भेडियों से अभी तक इसी अफवाह के सहारे ही बचाती रही है, भगवान् के लिए मेरा यह कवच मुझ से मत छीनिए!"

Friday, March 13, 2020

आस्था का प्रमाण

          एक साधु महाराज श्री रामायण कथा सुना रहे थे। लोग आते और आनंद विभोर होकर जाते। साधु महाराज का नियम था, रोज कथा शुरू करने से पहले "आइए हनुमंत जी बिराजिए" कहकर हनुमान जी का आह्वान करते थे, फिर एक घण्टा प्रवचन करते थे।
          एक वकील साहब हर रोज कथा सुनने आते। वकील साहब के भक्तिभाव पर एक दिन तर्कशीलता हावी हो गई। उन्हें लगा कि महाराज रोज "आइए हनुमंत जी बिराजिए" कहते हैं, तो क्या हनुमान जी सचमुच आते होंगे ? अत: वकील साहब ने महात्मा जी से पूछ ही डाला- महाराजजी ! आप रामायण की कथा बहुत अच्छी कहते हैं, हमें बड़ा रस आता है, परन्तु आप जो गद्दी प्रतिदिन हनुमान जी को देते हैं उस पर क्या हनुमान जी सचमुच बिराजते हैं ?
          साधु महाराज ने कहा: हाँ यह मेरा व्यक्तिगत विश्वास है, कि रामकथा हो रही हो तो हनुमान जी अवश्य पधारते हैं। वकील ने कहा: महाराज ऐसे बात नहीं बनेगी, हनुमान जी यहाँ आते हैं इसका कोई सबूत दीजिए। आपको साबित करके दिखाना चाहिए, कि हनुमान जी आपकी कथा सुनने आते हैं। महाराज जी ने बहुत समझाया, कि भैया आस्था को किसी सबूत की कसौटी पर नहीं कसना चाहिए, यह तो भक्त और भगवान के बीच का प्रेमरस है, व्यक्तिगत श्रद्धा का विषय है। आप कहो तो मैं प्रवचन करना बन्द कर दूँ, या आप कथा में आना छोड़ दो। लेकिन वकील नहीं माना। कहता ही रहा, कि आप कई दिनों से दावा करते आ रहे हैं। यह बात और स्थानों पर भी कहते होंगे, इसलिए महाराज आपको तो साबित करना होगा, कि हनुमान जी कथा सुनने आते हैं।
           इस तरह दोनों के बीच वाद-विवाद होता रहा। मौखिक संघर्ष बढ़ता चला गया। हार कर साधु महाराज ने कहा- हनुमान जी हैं या नहीं उसका सबूत कल दिलाऊँगा। कल कथा शुरू हो तब प्रयोग करूँगा। जिस गद्दी पर मैं हनुमानजी को विराजित होने को कहता हूँ आप उस गद्दी को आज अपने घर ले जाना, कल अपने साथ उस गद्दी को लेकर आना और फिर मैं कल गद्दी यहाँ रखूँगा। कथा से पहले हनुमानजी को बुलाएँगे, फिर आप गद्दी ऊँची उठाना। यदि आपने गद्दी ऊँची कर दी तो समझना कि हनुमान जी नहीं हैं। वकील इस कसौटी के लिए तैयार हो गया।
          महाराज ने कहा: हम दोनों में से जो पराजित होगा वह क्या करेगा, इसका निर्णय भी कर लें ? यह तो सत्य की परीक्षा है। वकील ने कहा: मैं गद्दी ऊँची न कर सका तो वकालत छोड़कर आपसे दीक्षा ले लूँगा। आप पराजित हो गए तो क्या करोगे ? साधु ने कहा: मैं कथा वाचन छोड़कर आपके ऑफिस का चपरासी बन जाऊँगा।
        अगले दिन कथा पंडाल में भारी भीड़ हुई जो लोग रोजाना कथा सुनने नहीं आते थे, वे भी भक्ति, प्रेम और विश्वास की परीक्षा देखने आए, काफी भीड़ हो गई, पंडाल भर गया। श्रद्धा और विश्वास का प्रश्न जो था। साधु महाराज और वकील साहब कथा पंडाल में पधारे। गद्दी रखी गई। महात्मा जी ने सजल नेत्रों से मंगलाचरण किया और फिर बोले: "आइए हनुमंत जी बिराजिए" ऐसा बोलते ही साधु महाराज के नेत्र सजल हो उठे। मन ही मन साधु बोले- प्रभु ! आज मेरा प्रश्न नहीं, बल्कि रघुकुल रीति की परम्परा का सवाल है। मैं तो एक साधारण जन हूँ। मेरी भक्ति और आस्था की लाज रखना। फिर वकील साहब को निमंत्रण दिया गया, आइए गद्दी ऊँची कीजिए। 
           लोगों की आँखे जम गईं। वकील साहब खड़े हुए। उन्होंने गद्दी उठाने के लिए हाथ बढ़ाया पर गद्दी को स्पर्श भी न कर सके। जो भी कारण रहा, उन्होंने तीन बार हाथ बढ़ाया, किन्तु तीनों बार असफल रहे। महात्मा जी देख रहे थे, गद्दी को पकड़ना तो दूर वकील साहब गद्दी को छू भी न सके। तीनों बार वकील साहब पसीने से तर-बतर हो गए। वकील साहब साधु महाराज के चरणों में गिर पड़े और बोले, महाराज गद्दी उठाना तो दूर, मुझे नहीं मालूम कि क्यों मेरा हाथ भी गद्दी तक नहीं पहुँच पा रहा है। अत: मैं अपनी हार स्वीकार करता हूँ।
          कहते है कि श्रद्धा और भक्ति के साथ की गई आराधना में बहुत शक्ति होती है। मानो तो देव नहीं तो पत्थर। प्रभु की मूर्ति तो पाषाण की ही होती है, लेकिन भक्त के भाव से उसमें प्राण प्रतिष्ठा होती है, तो प्रभु बिराजते है।
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