Wednesday, December 5, 2018

हवन

मैं एक गृह प्रवेश की पूजा में गया था
पंडित जी पूजा करा रहे थे।

पंडित जी ने सबको हवन में शामिल होने के लिए बुलाया। सबके सामने हवन सामग्री रख दी गई। पंडित जी मंत्र पढ़ते और कहते, “स्वाहा।”

लोग चुटकियों से हवन सामग्री लेकर अग्नि में डाल देते, गृह मालिक को स्वाहा कहते ही अग्नि में घी डालने की ज़िम्मेदीरी सौंपी गई।

हर व्यक्ति थोड़ी सामग्री डालता, इस आशंका में कि कहीं हवन खत्म होने से पहले ही सामग्री खत्म न हो जाए, गृह मालिक भी बूंद-बूंद घी डाल रहे थे। उनके मन में भी डर था कि घी खत्म न हो जाए।

मंत्रोच्चार चलता रहा, स्वाहा होता रहा और पूजा पूरी हो गई, सबके पास बहुत सी हवन सामग्री बची रह गई।

"घी तो आधा से भी कम इस्तेमाल हुआ था।"

हवन पूरा होने के बाद पंडित जी ने कहा कि आप लोगों के पास जितनी सामग्री बची है, उसे अग्नि में डाल दें। गृह स्वामी से भी उन्होंने कहा कि आप इस घी को भी कुंड में डाल दें।

एक साथ बहुत सी हवन सामग्री अग्नि में डाल दी गई। सारा घी भी अग्नि के हवाले कर दिया गया। पूरा घर धुंए से भर गया। वहां बैठना मुश्किल हो गया, एक-एक कर सभी कमरे से बाहर निकल गए।

अब जब तक सब कुछ जल नहीं जाता, कमरे में जाना संभव नहीं था। काफी देर तक इंतज़ार करना पडा, सब कुछ स्वाहा होने के इंतज़ार में।
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......मेरी कहानी यहीं रुक जाती है।
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उस पूजा में मौजूद हर व्यक्ति जानता था कि जितनी हवन सामग्री उसके पास है, उसे हवन कुंड में ही डालना है। पर सबने उसे बचाए रखा। सबने बचाए रखा कि आख़िर में सामग्री काम आएगी।

ऐसा ही हम करते हैं। यही हमारी फितरत है। हम अंत के लिए बहुत कुछ बचाए रखते हैं।

*ज़िंदगी की पूजा खत्म हो जाती है और हवन सामग्री बची रह जाती है। हम बचाने में इतने खो जाते हैं कि जब सब कुछ होना हवन कुंड के हवाले है, उसे बचा कर क्या करना। बाद में तो वो सिर्फ धुंआ ही देगा।*

*"संसार" हवन कुंड है और "जीवन" पूजा।*
एक दिन सब कुछ हवन कुंड में समाहित होना है।

*अच्छी पूजा वही है, जिसमें...*
*"हवन सामग्री" का सही अनुपात में इस्तेमाल हो।*

Wednesday, November 28, 2018

જીવન

કદીક સીધું, કદીક આડું
ચાલ્યાં કરવાનું આ ગાડું.

કર્મની ઘંટી દળતી રહેતી
થોડુંક ઝીણું, થોડુંક જાડું.

સપનાંઓને રોકો ત્યાં તો
ઈચ્છાઓનું આવતું ધાડું.

આવ હૈયું ખાલી કરીએ
સાવ નકામું ભરવું ભાડું !

આંસુનાં તોરણો બાંધીને
આંખો પૂછે, સેલ્ફી પાડું ?

ઘડીક અંદર, બહાર ઘડીકમાં
શ્વાસોશ્વાસને બન્ને હાથે લાડું.

મંઝીલ દેખાય દૂર સામે, પણ
જીવન રોજેરોજ ઊતરે આડું

આ જીવન છે જ અડવીતરું
બસ, દિલથી જીવી લો થોડું !

અજ્ઞાત કવિ

Sunday, October 21, 2018

तू ज़िन्दा है तो....

तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर,
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!

सुबह औ' शाम के रंगे हुए गगन को चूमकर,
तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूमकर,
तू आ मेरा सिंगार कर, तू आ मुझे हसीन कर!
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है

ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन,
ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन,
कभी तो होगी इस चमन पर भी बहार की नज़र!
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है

हमारे कारवां का मंज़िलों को इन्तज़ार है,
यह आंधियों, ये बिजलियों की, पीठ पर सवार है,
जिधर पड़ेंगे ये क़दम बनेगी एक नई डगर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है

हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर
मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर
नई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई उमर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है

ज़मीं के पेट में पली अगन, पले हैं ज़लज़ले,
टिके न टिक सकेंगे भूख रोग के स्वराज ये,
मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम,
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है

बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये,
न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये,
गिरेंगे जुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर!
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है

फिल्म गीतकार शेलेंद्र द्वारा 1950 में रचित

Sunday, August 26, 2018

शिव स्तुति

पूज्य नारणस्वामि का बहुत ही प्यारा सा भजन, धून स्तुति जो यह कहता है कि हे कैलाश के निवासी आपका यह बालक आपके शरन में आया है ....

कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ,
नमो बार बार हूँ
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू,
आयो शरण तिहारी शम्भू तार तार तू,
भोले तार तार तू,
कैलाश के निवासी
भक्तो को कभी शिव तुने निराश ना किया
माँगा जिन्हें जो चाहा वरदान दे दिया
बड़ा हैं तेरा दायजा, बड़ा दातार तू,
बड़ा दातार तू
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ,
नमो बार बार हूँ
आयो शरण तिहारी शम्भू तार तार तू
भोले तार तार तू, तार तार तू
कैलाश के निवासी
बखान क्या करू मै राखो के ढेर का
चपटी भभूत में हैं खजाना कुबेर का
हैं गंग धार, मुक्ति द्वार, ओंकार तू
ओंकार तू
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ,
नमो बार बार हूँ
आयो शरण तिहारी शम्भू तार तार तू
भोले तार तार तू, तार तार तू
कैलाश के निवासी
क्या क्या नहीं दिया, हम क्या प्रमाण दे
बस गए त्रिलोक शम्भू तेरे दान से
ज़हर पिया, जीवन दिया
कितना उदार तू, कितना उदार तू,
कितना उदार तू
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ,
नमो बार बार हूँ
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
भोले तार तार तू, तार तार तू
कैलाश के निवासी
तेरी कृपा बिना न हींले एक भी अनु
लेते हैं स्वास तेरी दया से कनु कनु
कहे दास एक बार, मुझको निहार तू
मुझको निहार तू
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ,
नमो बार बार हूँ
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
भोले तार तार तू, तार तार तू
शम्भू तार तार तू, तार तार तू
भोले तार तार तू, तार तार तू.

Sunday, May 27, 2018

नर्मदाष्टक

सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम
द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम
कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे 1

त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम
कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं
सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे 2

महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं
ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम
जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे 3

गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा
मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा
पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे 4

अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं
सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे 5

सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपात्रि षटपदै
धृतम स्वकीय मानषेशु नारदादि षटपदै: 
रविन्दु रन्ति देवदेव राजकर्म शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे 6

अलक्षलक्ष लक्षपाप लक्ष सार सायुधं
ततस्तु जीवजंतु तंतु भुक्तिमुक्ति दायकं
विरन्ची विष्णु शंकरं स्वकीयधाम वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे 7

अहोमृतम श्रुवन श्रुतम महेषकेश जातटे
किरात सूत वाड़वेषु पण्डिते शठे नटे
दुरंत पाप ताप हारि सर्वजंतु शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे 8

इदन्तु नर्मदाष्टकम त्रिकलामेव ये सदा
पठन्ति ते निरंतरम न यान्ति दुर्गतिम कदा
सुलभ्य देव दुर्लभं महेशधाम गौरवम
पुनर्भवा नरा न वै त्रिलोकयंती रौरवम 9

त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।

Friday, May 25, 2018

कटोरा

रेलवे स्टेशन के बाहर सड़क के किनारे कटोरा लिए एक भिखारी लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने कटोरे में पड़े सिक्कों को हिलाता रहता और साथ-साथ यह गाना भी गाता जाता -
गरीबों की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा -२
तुम एक पैसा दोगे वो दस लाख देगा
गरीबों की सुनो ..."

कटोरे से पैदा हुई ध्वनि व उसके गीत को सुन आते-जाते मुसाफ़िर उसके कटोरे में सिक्के डाल देते।

आज भी हमेशा की तरह वह अपने कटोरे में पड़ी चिल्हर को हिलाते हुए, 'ग़रीबों की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा....' वाला गीत गा रहा था। तभी एक व्यक्ति भिखारी के पास आकर एक पल के लिए ठिठकर रुक गया। उसकी नजर भिखारी के कटोरे पर थी फिर उसने अपनी जेब में हाथ डाल कुछ सौ-सौ के नोट गिने। भिखारी उस व्यक्ति को इतने सारे नोट गिनता देख उसकी तरफ टकटकी बाँधे देख रहा था कि शायद कोई एक छोटा नोट उसे भी मिल जाए।

तभी उस व्यक्ति ने भिखारी को संबोधित करते हुए कहा, "अगर मैं तुम्हें हजार रुपये दूं तो क्या तुम अपना कटोरा मुझे दे सकते हो?"

भिखारी अभी सोच ही रहा था कि वह व्यक्ति बोला, "अच्छा चलो मैं तुम्हें दो हजार देता हूँ!"

भिखारी ने अचंभित होते हुए अपना कटोरा उस व्यक्ति की ओर बढ़ा दिया और वह व्यक्ति कुछ सौ-सौ के नोट उस भिखारी को थमा उससे कटोरा ले अपने बैग में डाल तेज कदमों से स्टेशन की ओर बढ़ गया।

इधर भिखारी भी अपना गीत बंद कर वहां से ये सोच कर अपने रास्ते हो लिया कि कहीं वह व्यक्ति अपना मन न बदल ले और हाथ आया इतना पैसा हाथ से निकल जाए। और भिखारी ने इसी डर से फैसला लिया अब वह इस स्टेशन पर कभी नहीं आएगा - कहीं और जाएगा!

रास्ते भर भिखारी खुश होकर  यही सोच रहा था कि 'लोग हर रोज आकर सिक्के डालते थे , पर आज दौ हजार में कटोरा! वह कटोरे का क्या करेगा?' भिखारी सोच रहा था?

उधर दो हजार में कटोरा खरीदने वाला व्यक्ति अब रेलगाड़ी में सवार हो चुका था। उसने धीरे से बैग की ज़िप्प खोल कर कटोरा टटोला - सब सुरक्षित था। वह पीछे छुटते नगर और स्टेशन को देख रहा था। उसने एक बार फिर बैग में हाथ डाल कटोरे का वजन भांपने की कोशिश की। कम से कम आधा किलो का तो होगा!

उसने जीवन भर धातुओं का काम किया था। भिखारी के हाथ में वह कटोरा देख वह हैरान हो गया था। सोने का कटोरा! .....और लोग डाल रहे थे उसमें एक-दो के सिक्के!

उसकी सुनार वाली आँख ने धूल में सने उस कटोरे को पहचान लिया था। ना भिखारी को उसकी कीमत पता थी और न सिक्का डालने वालों को पर वह तो जौहरी था, सुनार था।

भिखारी दो हजार में खुश था और जौहरी कटोरा पाकर! उसने लाखों की कीमत का कटोरा दो हजार में जो खरीद लिया था।

जीवन में देखें तो हम भी अपने अनमोल इंसानी जामे की उपयोगिता भूले बैठे है और उसे एक सामान्य कटोरे की भाँति समझ कर खटका कर कौड़ियां इक्कट्ठे करने में लगे हुए हैं।

** गहराई से मनन करने की आवश्यकता है ।
- गिरीश पाण्डे

Tuesday, May 22, 2018

नयी मंजिल

क्या हार में ..
क्या जीत में ..
किंचित नहीं भयभीत मैं..
कर्तव्य पथ पर जो भी मिला..
यह भी सही वह भी सही..
कई जीत बाकी है..
कई हार बाकी है..
अभी तो जिंदगी का..
सार बाकी है..
यहाँ से चले है...
नयी मंजिल के लिए..
ये तो एक पन्ना था..
अभी तो किताब बाकी है..

-अटलजी...

Sunday, April 29, 2018

Age matters❗❗

A group of old friends, all aged about 40, discussed where they should meet for lunch for their reunion.

Finally it was agreed that they would meet at the Ocean View restaurant, because the waitresses there were pretty.

🍺🍕🍤🍷🍟🍗🍥🍧

Ten years later, at age 50, the friends once again discussed where they should meet for lunch. Finally it was agreed that they would meet at the Ocean View restaurant because the food was good and the wine selection was excellent.

🍥🍟🍗🍕🍺🍦🍻🍔

Ten years later, at age 60, the friends again discussed where they should meet for lunch.

Finally it was agreed that they would meet at the Ocean View restaurant because they could dine in peace and quiet and the restaurant had a beautiful view of the ocean.

🎣🍢🍘🍷🍺🍻🍕🍟

Ten years later, at age 70, the friends discussed where they should meet for lunch.
Finally it was agreed that they would meet at the Ocean View restaurant because the restaurant was wheelchair ♿ accessible and had an elevator⬆⬇.

Ten years later, at age 80, the friends discussed where they should meet for lunch.
Finally it was agreed that they would meet at the Ocean View restaurant because they had never been there before!
Memory loss!!

😀

Aging with grace❗

शाम

कुछ ऐसा ही मंज़र था
आसमान उसकी आखों की तरह ऐसा ही नीला था
जैसा आज है
सांज भी ऐसी ही सुरमई थी
सुहाने ख्वाबों की तरह
गीली रेत की खुशबु भी ऐसी ही थी
जिस रेत पर कदम रख सारी सुगंध रूह में समेटी थी हमने
उस वक़्त हाथों में हाथ डाले
साहील पे सुस्त कदमो से चलते चलते
उसने कहा था मुझसे
सुनो
तुमने मुझे जो ये लम्हात अता कीये हैं
यकीं मानो
मेरी ज़िंदगी इनसे खाली थी
जो खाली जगहें तुमने मेरी हस्ती को पुर की हैं
तुम्हारी शुक्रगुज़ार हुँ
तुम न होते तो हंमेशा अधूरी रह जातीं
तुमसे और क्या कहूँ
मेरी तकमील हो गई है
ऐसे मुक्कमल तौर पर की महसूस होता है मुझे
अब तुम्हारी जरुरत नहीं रही
और चली गई वोह
जैसे समंदर की मौज कोई साहील को छूके मुड़ जाये
आज भी वोही शाम वोही मंज़र है और तन्हा मैं हुं ....

(तकमील-completion,मुक्कमल-perfect, complete)

Monday, March 19, 2018

नव-वर्ष पर

ये धुंध कुहासा छंटने दो
          रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
          फागुन का रंग बिखरने दो,
प्रकृति दुल्हन का रूप धर
           जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
           घर -घर खुशहाली लायेगी,
तब चैत्र-शुक्ल की प्रथम तिथि
           नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
           जय-गान सुनाया जायेगा...

- राष्ट्रकवि दिनकर

Monday, March 5, 2018

नवधा भक्ति

श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥

श्रवण (परीक्षित), कीर्तन (शुकदेव), स्मरण (प्रह्लाद), पादसेवन (लक्ष्मी), अर्चन (पृथुराजा), वंदन (अक्रूर), दास्य (हनुमान), सख्य (अर्जुन) और आत्मनिवेदन (बलि राजा) - इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं।

श्रवण: ईश्वर की लीला, कथा, महत्व, शक्ति, स्रोत इत्यादि को परम श्रद्धा सहित अतृप्त मन से निरंतर सुनना।

कीर्तन: ईश्वर के गुण, चरित्र, नाम, पराक्रम आदि का आनंद एवं उत्साह के साथ कीर्तन करना।

स्मरण: निरंतर अनन्य भाव से परमेश्वर का स्मरण करना, उनके महात्म्य और शक्ति का स्मरण कर उस पर मुग्ध होना।

पाद सेवन: ईश्वर के चरणों का आश्रय लेना और उन्हीं को अपना सर्वस्य समझना।

अर्चन: मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से ईश्वर के चरणों का पूजन करना।

वंदन: भगवान की मूर्ति को अथवा भगवान के अंश रूप में व्याप्त भक्तजन, आचार्य, ब्राह्मण, गुरूजन, माता-पिता आदि को परम आदर सत्कार के साथ पवित्र भाव से नमस्कार करना या उनकी सेवा करना।

दास्य: ईश्वर को स्वामी और अपने को दास समझकर परम श्रद्धा के साथ सेवा करना।

सख्य: ईश्वर को ही अपना परम मित्र समझकर अपना सर्वस्व उसे समर्पण कर देना तथा सच्चे भाव से अपने पाप पुण्य का निवेदन करना।

आत्मनिवेदन: अपने आपको भगवान के चरणों में सदा के लिए समर्पण कर देना और कुछ भी अपनी स्वतंत्र सत्ता न रखना। यह भक्ति की सबसे उत्तम अवस्था मानी गई हैं।

Monday, February 12, 2018

अमोघ शिव कवच

।।श्रीगणेशाय नम:।।

विनियोगः-

ॐ अस्य श्रीशिवकवचस्तोत्रमंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: अनुष्टप् छन्द:।
श्रीसदाशिवरुद्रो देवता।
ह्रीं शक्‍ति:।
रं कीलकम्।
श्रीं ह्री क्लीं बीजम्।
श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थे शिवकवचस्तोत्रजपे विनियोग:।

कर-न्यास: -

ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामालिने ॐ ह्लांसर्वशक्तिधाम्ने ईशानात्मने अंगुष्ठाभ्यां नम: ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामालिने ॐ नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषात्मने तर्जनीभ्यां नम: ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामालिने ॐ मं रुं अनादिशक्‍तिधाम्ने अघोरात्मने मध्यामाभ्यां नम: ।

ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामालिने ॐ शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने अनामिकाभ्यां नम: ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामालिने ॐ वांरौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्यो जातात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नम: ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामालिने ॐयंर: अनादिशक्तिधाम्ने सर्वात्मने करतल करपृष्ठाभ्यां नम:।

॥ अथ ध्यानम् ॥

वज्रदंष्ट्रं त्रिनयनं कालकण्ठमरिन्दमम् ।
सहस्रकरमत्युग्रं वंदे शंभुमुपतिम् ॥ १ ॥

।।ऋषभ उवाच।।

अथापरं सर्वपुराणगुह्यं निशे:षपापौघहरं पवित्रम् ।
जयप्रदं सर्वविपत्प्रमोचनं वक्ष्यामि शैवं कवचं हिताय ते ॥ २ ॥

नमस्कृत्य महादेवं विश्‍वव्यापिनमीश्‍वरम्।
वक्ष्ये शिवमयं वर्म सर्वरक्षाकरं नृणाम् ॥ ३ ॥

शुचौ देशे समासीनो यथावत्कल्पितासन: ।
जितेन्द्रियो जितप्राणश्‍चिंतयेच्छिवमव्ययम् ॥ ४ ॥

ह्रत्पुंडरीक तरसन्निविष्टं स्वतेजसा व्याप्तनभोवकाशम् ।
अतींद्रियं सूक्ष्ममनंतताद्यंध्यायेत्परानंदमयं महेशम् ॥ ५ ॥

ध्यानावधूताखिलकर्मबन्धश्‍चरं चितानन्दनिमग्नचेता: ।
षडक्षरन्याससमाहितात्मा शैवेन कुर्यात्कवचेन रक्षाम् ॥ ६ ॥

मां पातु देवोऽखिलदेवत्मा संसारकूपे पतितं गंभीरे
तन्नाम दिव्यं वरमंत्रमूलं धुनोतु मे सर्वमघं ह्रदिस्थम् ॥ ७ ॥

सर्वत्रमां रक्षतु विश्‍वमूर्तिर्ज्योतिर्मयानंदघनश्‍चिदात्मा ।
अणोरणीयानुरुशक्‍तिरेक: स ईश्‍वर: पातु भयादशेषात् ॥ ८ ॥

यो भूस्वरूपेण बिर्भीत विश्‍वं पायात्स भूमेर्गिरिशोऽष्टमूर्ति: ॥
योऽपांस्वरूपेण नृणां करोति संजीवनं सोऽवतु मां जलेभ्य: ॥ ९ ॥

कल्पावसाने भुवनानि दग्ध्वा सर्वाणि यो नृत्यति भूरिलील: ।
स कालरुद्रोऽवतु मां दवाग्नेर्वात्यादिभीतेरखिलाच्च तापात् ॥ १० ॥

प्रदीप्तविद्युत्कनकावभासो विद्यावराभीति कुठारपाणि: ।
चतुर्मुखस्तत्पुरुषस्त्रिनेत्र: प्राच्यां स्थितं रक्षतु मामजस्त्रम् ॥ ११ ॥

कुठारवेदांकुशपाशशूलकपालढक्काक्षगुणान् दधान: ।
चतुर्मुखोनीलरुचिस्त्रिनेत्र: पायादघोरो दिशि दक्षिणस्याम् ॥ १२ ॥

कुंदेंदुशंखस्फटिकावभासो वेदाक्षमाला वरदाभयांक: ।
त्र्यक्षश्‍चतुर्वक्र उरुप्रभाव: सद्योधिजातोऽवस्तु मां प्रतीच्याम् ॥ १३ ॥

वराक्षमालाभयटंकहस्त: सरोज किंजल्कसमानवर्ण: ।
त्रिलोचनश्‍चारुचतुर्मुखो मां पायादुदीच्या दिशि वामदेव: ॥ १४ ॥

वेदाभ्येष्टांकुशपाश टंककपालढक्काक्षकशूलपाणि: ॥
सितद्युति: पंचमुखोऽवतान्मामीशान ऊर्ध्वं परमप्रकाश: ॥ १५ ॥

मूर्धानमव्यान्मम चंद्रमौलिर्भालं ममाव्यादथ भालनेत्र: ।
नेत्रे ममा व्याद्भगनेत्रहारी नासां सदा रक्षतु विश्‍वनाथ: ॥ १६ ॥

पायाच्छ्र ती मे श्रुतिगीतकीर्ति: कपोलमव्यात्सततं कपाली ।
वक्रं सदा रक्षतु पंचवक्रो जिह्वां सदा रक्षतु वेदजिह्व: ॥ १७ ॥

कंठं गिरीशोऽवतु नीलकण्ठ: पाणि: द्वयं पातु: पिनाकपाणि: ।
दोर्मूलमव्यान्मम धर्मवाहुर्वक्ष:स्थलं दक्षमखातकोऽव्यात् ॥ १८ ॥

मनोदरं पातु गिरींद्रधन्वा मध्यं ममाव्यान्मदनांतकारी ।
हेरंबतातो मम पातु नाभिं पायात्कटिं धूर्जटिरीश्‍वरो मे ॥ १९ ॥

ऊरुद्वयं पातु कुबेरमित्रो जानुद्वयं मे जगदीश्‍वरोऽव्यात् ।
जंघायुगंपुंगवकेतुख्यातपादौ ममाव्यत्सुरवंद्यपाद: ॥ २० ॥

महेश्‍वर: पातु दिनादियामे मां मध्ययामेऽवतु वामदेव: ॥
त्रिलोचन: पातु तृतीययामे वृषध्वज: पातु दिनांत्ययामे ॥ २१ ॥

पायान्निशादौ शशिशेखरो मां गंगाधरो रक्षतु मां निशीथे ।
गौरी पति: पातु निशावसाने मृत्युंजयो रक्षतु सर्वकालम् ॥ २२ ॥

अन्त:स्थितं रक्षतु शंकरो मां स्थाणु: सदापातु बहि: स्थित माम् ।
तदंतरे पातु पति: पशूनां सदाशिवोरक्षतु मां समंतात् ॥ २३ ॥

तिष्ठतमव्याद्‍भुवनैकनाथ: पायाद्‍व्रजंतं प्रथमाधिनाथ: ।
वेदांतवेद्योऽवतु मां निषण्णं मामव्यय: पातु शिव: शयानम् ॥ २४ ॥

मार्गेषु मां रक्षतु नीलकंठ: शैलादिदुर्गेषु पुरत्रयारि: ।
अरण्यवासादिमहाप्रवासे पायान्मृगव्याध उदारशक्ति: ॥ २५ ॥

कल्पांतकोटोपपटुप्रकोप-स्फुटाट्टहासोच्चलितांडकोश: ।
घोरारिसेनर्णवदुर्निवारमहाभयाद्रक्षतु वीरभद्र: ॥ २६ ॥

पत्त्यश्‍वमातंगघटावरूथसहस्रलक्षायुतकोटिभीषणम् ।
अक्षौहिणीनां शतमाततायिनां छिंद्यान्मृडोघोर कुठार धारया २७ ॥

निहंतु दस्यून्प्रलयानलार्चिर्ज्वलत्रिशूलं त्रिपुरांतकस्य ।
शार्दूल सिंहर्क्षवृकादिहिंस्रान्संत्रासयत्वीशधनु: पिनाक: ॥ २८ ॥

दु:स्वप्नदु:शकुनदुर्गतिदौर्मनस्यर्दुर्भिक्षदुर्व्यसनदु:सहदुर्यशांसि ।
उत्पाततापविषभीतिमसद्‍ग्रहार्ति व्याधींश्‍च नाशयतु मे जगतामधीश: ॥ २९ ॥

ॐ नमो भगवते सदाशिवाय सकलतत्त्वात्मकाय सर्वमंत्रस्वरूपाय सर्वयंत्राधिष्ठिताय सर्वतंत्रस्वरूपाय सर्वत्त्वविदूराय ब्रह्मरुद्रावतारिणे नीलकंठाय पार्वतीमनोहरप्रियाय सोमसूर्याग्निलोचनाय भस्मोद्‍धूलितविग्रहाय महामणिमुकुटधारणाय माणिक्यभूषणाय सृष्टिस्थितिप्रलयकालरौद्रावताराय दक्षाध्वरध्वंसकाय महाकालभेदनाय मूलाधारैकनिलयाय तत्त्वातीताय गंगाधराय सर्वदेवाधिदेवाय षडाश्रयाय वेदांतसाराय त्रिवर्गसाधनायानंतकोटिब्रह्माण्डनायकायानंतवासुकितक्षककर्कोटकङ्‍खकुलिक पद्ममहापद्मेत्यष्टमहानागकुलभूषणायप्रणवस्वरूपाय चिदाकाशाय आकाशदिक्स्वरूपायग्रहनक्षत्रमालिने सकलाय कलंकरहिताय सकललोकैकर्त्रे सकललोकैकभर्त्रे सकललोकैकसंहर्त्रे सकललोकैकगुरवे सकललोकैकसाक्षिणे सकलनिगमगुह्याय सकल वेदान्तपारगाय सकललोकैकवरप्रदाय सकलकोलोकैकशंकराय शशांकशेखराय शाश्‍वतनिजावासाय निराभासाय निरामयाय निर्मलाय निर्लोभाय निर्मदाय निश्‍चिंताय निरहंकाराय निरंकुशाय निष्कलंकाय निर्गुणाय निष्कामाय निरुपप्लवाय निरवद्याय निरंतराय निष्कारणाय निरंतकाय निष्प्रपंचाय नि:संगाय निर्द्वंद्वाय निराधाराय नीरागाय निष्क्रोधाय निर्मलाय निष्पापाय निर्भयाय निर्विकल्पाय निर्भेदाय निष्क्रियय निस्तुलाय नि:संशयाय निरंजनाय निरुपमविभवायनित्यशुद्धबुद्ध परिपूर्णसच्चिदानंदाद्वयाय परमशांतस्वरूपाय तेजोरूपाय तेजोमयाय जय जय रुद्रमहारौद्रभद्रावतार महाभैरव कालभैरव कल्पांतभैरव कपालमालाधर खट्‍वांगखड्गचर्मपाशांकुशडमरुशूलचापबाणगदाशक्‍तिभिंदिपालतोमरमुसलमुद्‌गरपाशपरिघ भुशुण्डीशतघ्नीचक्राद्यायुधभीषणकरसहस्रमुखदंष्ट्राकरालवदनविकटाट्टहासविस्फारितब्रह्मांडमंडल नागेंद्रकुंडल नागेंद्रहार नागेन्द्रवलय नागेंद्रचर्मधरमृयुंजय त्र्यंबकपुरांतक विश्‍वरूप विरूपाक्ष विश्‍वेश्वर वृषभवाहन विषविभूषण विश्‍वतोमुख सर्वतो रक्ष रक्ष मां ज्वल ज्वल महामृत्युमपमृत्युभयं नाशयनाशयचोरभयमुत्सादयोत्सादय विषसर्पभयं शमय शमय चोरान्मारय मारय ममशमनुच्चाट्योच्चाटयत्रिशूलेनविदारय कुठारेणभिंधिभिंभधि खड्‌गेन छिंधि छिंधि खट्‍वांगेन विपोथय विपोथय मुसलेन निष्पेषय निष्पेषय वाणै: संताडय संताडय रक्षांसि भीषय भीषयशेषभूतानि निद्रावय कूष्मांडवेतालमारीच ब्रह्मराक्षसगणान्‌संत्रासय संत्रासय ममाभय कुरु कुरु वित्रस्तं मामाश्‍वासयाश्‍वासय नरकमहाभयान्मामुद्धरसंजीवय संजीवयक्षुत्तृड्‌भ्यां मामाप्याय-आप्याय दु:खातुरं मामानन्दयानन्दयशिवकवचेन मामाच्छादयाच्छादयमृत्युंजय त्र्यंबक सदाशिव नमस्ते नमस्ते नमस्ते।

।। ऋषभ उवाच ।।

इत्येतत्कवचं शैवं वरदं व्याह्रतं मया ॥
सर्वबाधाप्रशमनं रहस्यं सर्वदेहिनाम् ॥ ३० ॥

य: सदा धारयेन्मर्त्य: शैवं कवचमुत्तमम् ।
न तस्य जायते क्वापि भयं शंभोरनुग्रहात् ॥ ३१ ॥

क्षीणायुअ:प्राप्तमृत्युर्वा महारोगहतोऽपि वा ॥
सद्य: सुखमवाप्नोति दीर्घमायुश्‍चविंदति ॥ ३२ ॥

सर्वदारिद्र्य शमनं सौमंगल्यविवर्धनम् ।
यो धत्ते कवचं शैवं सदेवैरपि पूज्यते ॥ ३३ ॥

महापातकसंघातैर्मुच्यते चोपपातकै: ।
देहांते मुक्‍तिमाप्नोति शिववर्मानुभावत: ॥ ३४ ॥

त्वमपि श्रद्धया वत्स शैवं कवचमुत्तमम्
धारयस्व मया दत्तं सद्य: श्रेयो ह्यवाप्स्यसि ॥ ३५ ॥

॥ सूत उवाच ॥

इत्युक्त्वाऋषभो योगी तस्मै पार्थिवसूनवे ।
ददौ शंखं महारावं खड्गं चारिनिषूदनम् ॥ ३६ ॥

पुनश्‍च भस्म संमत्र्य तदंगं परितोऽस्पृशत् ।
गजानां षट्‍सहस्रस्य द्विगुणस्य बलं ददौ । ३७ ॥

भस्मप्रभा