अक्सर सुनने और पढ़ने में आता है : “बीपीसीएल को बेचने की कवायद तेज”, “राम मंदिर निर्माण की कवायद तेज, PM Modi करेंगे भूमि पूजन!”,”महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर कवायद तेज हो गयी है” या “कोरोना के फैलाव को देख बिस्तरों की संख्या बढ़ाने की कवायद”
जहाँ तक मुझे पता/लगता है ऊपर के वाक्यों में “क़वायद” शब्द का इस्तेमाल “प्रक्रिया” (process) के सेंस में हुआ है जबकि उर्दू में “क़वायद” का मतलब होता है : नियम या नियमावली (Rules), जो कि “क़ायदा” का बहुवचन है। ये शब्द उर्दू में अरबी से आया है। जैसे उर्दू में व्याकरण की किताब को “उर्दू का क़ायदा” कहते हैं।
वैसे क़ायदा से याद आया कि हमारे कुछ साथी अक्सर मज़ाक़ में कहते हैं कि हमारे “खोजी पत्रकारों” का ये हाल है कि अगर किसी मुसलमान के घर से “क़ायदा बग़दादी” बरामद हो जाये तो उसका संबंध “अल-क़ायदा” और “अबुबक्र अल-बगदादी” से जोड़ देंगे।
दरअसल,”क़ायदा बग़दादी/बग़दादी क़ायदा” अरबी सीखने की बुनयादी किताबों में से है। बचपन में क़ुरान पढ़ने से पहले हमने “क़ायदा बग़दादी/बग़दादी क़ायदा” ही पढ़ी थी।
वापस लौटते हैं क़वायद पर। उर्दू में “प्रक्रिया” के लिए जो शब्द है वो है “अमल”। ये भी उर्दू में अरबी से आया है।
जैसे उर्दू में लिखते हैं : “कोरोना वायरस के टेस्टों/टेस्टिंग का अमल तेज़” या “महाराष्ट्र में हुकूमत साज़ी का अमल तेज़”
कुछ लोग ये भी कह सकते हैं क्योंकि “क़वायद” का एक मतलब “परेड”/ “अभ्यास” (military drill) भी होता है इसीलिये प्रक्रिया के लिये “क़वायद” लिखना/बोलना मुनासिब है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि “सरकार बनाने का “परेड”/ “अभ्यास” तेज” क्यों नहीं बोलते/लिखते?
“शफ़्फ़ाफ़” और “सफ़्फ़ाक” फ़र्क़
ये दो ऐसे अल्फ़ाज़ हैं, जिसके बारे में कह सकते हैं : “सावधानी हटी, दुर्घटना घटी”
वो इसलिए क्योंकि “शफ़्फ़ाफ़” और “सफ़्फ़ाक” में बहुत फ़र्क़ है और ध्यान न देने पर अर्थ का अनर्थ हो सकता है।
शफ़्फ़ाफ़” का मतलब होता है “साफ़ सुथरा”, “निर्मल”, “पारदर्शी” या transparent, clear, clean.
आपने लोगों को “साफ़-शफ़्फ़ाफ़” बोलते सुना होगा, वो भी इसी से सेंस में है।
“अम्मार यासिर” का ये शेर देखें :
“चश्मे के पानी जैसा शफ़्फ़ाफ़ हूँ मैं
दाग़ कोई दिल में है न पेशानी पर”
ध्यान रहे यहाँ चश्मे का मतलब पहने वाला चश्मा नहीं बल्कि झरना/fountain है।
जबकि “सफ़्फ़ाक” का अर्थ होता है : निष्ठुर, अत्याचारी, cruel, tyrant.
जैसे “रज़ा मौरान्वी” का ये शेर देखें :
“ज़िंदगी अब इस क़दर सफ़्फ़ाक हो जाएगी क्या
भूख ही मज़दूर की ख़ुराक हो जाएगी क्या”
इसी तरह निष्ठुर व्यक्ति के लिए “सफ़्फ़ाक़ दिल इंसान” लफ्ज़ का इस्तेमाल करते हैं। या फिर “अत्याचार की पराकाष्ठा” के लिए “सफ़्फ़ाकियत की इंतिहा” लिखते/बोलते हैं।
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