Here is a compilation of some really good collective works and my write-ups. In the current time of information technology and social platforms its easy to get access of such works but I post only those which are really damn good.
Saturday, April 10, 2021
Top 10 Gujrati Novel
Tuesday, January 19, 2021
English is a funny language.
Monday, January 18, 2021
एक ग़ज़ल
Saturday, January 2, 2021
નાની વાર્તા
Sunday, December 13, 2020
બાકી છે....
Friday, December 4, 2020
वेद वाणी 2-18-8
Monday, November 2, 2020
व्हाट्सएप ग्रुप
कार से उतरकर भागते हुए हॉस्पिटल में पहुंचे नोजवान बिजनेस मैन ने पूछा..
“डॉक्टर, अब कैसी हैं माँ?“ हाँफते हुए उसने पूछा।
“अब ठीक हैं। माइनर सा स्ट्रोक था। ये बुजुर्ग लोग उन्हें सही समय पर लें आये, वरना कुछ बुरा भी हो सकता था।"
डॉ ने पीछे बेंच पर बैठे दो बुजुर्गों की तरफ इशारा कर के जवाब दिया।
“रिसेप्शन से फॉर्म इत्यादि की फार्मैलिटी करनी है अब आपको।” डॉ ने जारी रखा।
“थैंक यू डॉ. साहेब, वो सब काम मेरी सेक्रेटरी कर रही हैं“ अब वो रिलैक्स था।
फिर वो उन बुजुर्गों की तरफ मुड़ा.. “थैंक्स अंकल, पर मैनें आप दोनों को नहीं पहचाना।“
“सही कह रहे हो बेटा, तुम नहीं पहचानोगे क्योंकि हम तुम्हारी माँ के वाट्सअप फ्रेंड हैं ।”एक ने बोला।
“क्या, वाट्सअप फ्रेंड ?” चिंता छोड़ , उसे अब, अचानक से अपनी माँ पर गुस्सा आया।
“महीने में एक दिन हम सब किसी पार्क में मिलने का भी प्रोग्राम बनाते हैं।”
“जिस किसी दिन कोई भी मेम्बर मैसेज नहीं भेजता है तो उसी दिन उससे लिंक लोगों द्वारा, उसके घर पर, उसके हाल चाल का पता लगाया जाता है।”
आज सुबह तुम्हारी माँ का मैसेज न आने पर हम 2 लोग उनके घर पहुंच गए..।
“माँ से अंतिम बार तुमने कब बात की थी बेटा? क्या तुम्हें याद है ?” एक ने पूछा।
बिज़नेस में उलझा, तीस मिनट की दूरी पर बने माँ के घर जाने का समय निकालना कितना मुश्किल बना लिया था खुद उसने।
हाँ पिछली दीपावली को ही तो मिला था वह उनसे गिफ्ट देने के नाम पर।
उसके सर पर हाथ फेर कर दोनों बुज़ुर्ग अस्पताल से बाहर की ओर निकल पड़े। नवयुवक एकटक उनको जाते हुए देखता ही रह गया।
Tuesday, October 6, 2020
सहारे, सरक जाया करते हैं...
अपनी ख़ुशी टाँगने को, तुम कंधे क्यूँ तलाशती हो..?
कमज़ोर हो, ये वहम क्यों पालती हो..??
ख़ुश रहो क़ि ये काजल, तुम्हारी आँखों मे आकर सँवर जाता हैं..!
ख़ुश रहो क़ि कालिख़ को, तुम निखार देती हों..!!
ख़ुश रहो क़ि तुम्हारा माथा, बिंदिया की ख़ुशकिस्मती हैं..!
ख़ुश रहो क़ि तुम्हारा रोम-रोम, बेशक़ीमती हैं..!!
ख़ुश रहो क़ि तुम न होतीं, तो क्या-क्या न होता..?
न मकानों के घर हुए होते, न आसरा होता..!!
न रसोइयों से खुशबुएँ ममता की, उड़ रही होतीं..!
न त्योहारों पर महफिलें, सज रही होतीं..!!
ख़ुश रहो क़ि तुम बिन, कुछ नहीं हैं..!
तुमसे ये आसमाँ, दिलक़श और ये ज़मीं हसीं हैं..!!
ख़ुश रहो क़ि रब ने तुम्हें पैदा ही, ख़ुद मुख़्तार किया..!
फ़िर क्यों किसी और को तुमने, अपनी मुस्कानों का हक़दार किया..!!
ख़ुश रहो जान लो क़ि, तुम क्या हों..?
चांद सूरज हरियाली, हवा हो..!!
खुशियाँ देती हो, खुशियाँ पा भी लो..!
कभी बेबात, गुनगुना भी लों..!!
अपनी मुस्कुराहटों के फूलों को,अपने संघर्ष की मिट्टी में खिलने दो..!
अपने पंखों की ताकत को, नया आसमान मिलने दो..!!
और हाँ मत ढूँढो कंधे..!
क़ि सहारे, सरक जाया करते हैं..!!
😊 सभी महिलाओं को समर्पित....
Monday, October 5, 2020
''क़मर” और “कमर” में फ़र्क़
मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र…
कुछ बरस पहले ये गाना ख़ूब हिट हुआ और अभी भी ख़ासा पसंद किया जाता है :
“मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया”
जब ये गाना आया तो पहले-पहले तो बहुत से लोग इसको “रक़्स-ए-कमर” मान कर चलने/समझने लगे। यहाँ “रक़्स” का मतलब है “डांस/नृत्य” और “कमर” का मतलब कमर/waist। क्योंकि कमर और डांस एक दूसरे से जुड़े हैं इसीलिए लोगों को सही भी लगने लगा। कुछ लोगों को ये “लचके कमर/कमरिया लचके” टाइप लगा !
ये ग़लतफ़हमी बुनयादी तौर पर “क़मर” और “कमर” में फ़र्क़ न करने की वजह से हुआ।
“क़मर” और ”कमर” का फ़र्क़
कमर का मतलब हम ऊपर बयान कर चुके हैं। जबकि “क़मर” का मतलब है “चाँद”। गाने में भी इसी सेंस में इस्तेमाल हुआ है। ये अरबी का लफ़्ज़ है जो कि उर्दू में भी इस्तेमाल भी होता है। इसीलिए “क़मर” लोगों का नाम भी होता है, ठीक उसी तरह से जैसे “महताब”। महताब फ़ारसी का लफ़्ज़ है। महताब का मतलब “चाँद” होता है और “आफ़ताब” का सूरज। आफ़ताब भी फ़ारसी ज़बान से उर्दू में आया है। अरबी में सूरज को “शम्स” कहते हैं ।
“रश्के-क़मर” का मतलब जानने से पहले हम एक और शब्द का मतलब जान लें तो अच्छा होगा। वो है, “रश्क”। इसका अर्थ होता है “ईर्ष्या, जलन”।
जानकारों का कहना है कि “रश्के-क़मर” दरअसल रश्क और क़मर से मिलकर बना है, जिसका मतलब है : चाँद जैसा ख़ूबसूरत, बेहद हसीन, बहुत ख़ूबसूरत या फिर ऐसा हसीन कि चाँद को भी रश्क आये (जलन हो)। जैसे कहते है : “आपको देखकर रश्क होता है”।
इस गाने में भी “रश्के-क़मर” का इस्तेमाल इसी सेंस में हुआ है।
हाँ, एक और बात। वो ये कि “रश्क” और “हसद” में फ़र्क़ होता है। बावजूद इसके कि दोनों का शाब्दिक अर्थ (literal meaning) “जलन” होता है।
“रश्क” और “हसद” का फ़र्क़
उर्दू में “ईर्ष्या, जलन” के अर्थ में दो शब्दों का इस्तेमाल होता हैं, “रश्क” और “हसद”। दोनों का शाब्दिक अर्थ : डाह, जलन, ईर्ष्या, jealousy, envy, malice होता है ।
अलबत्ता दोनों में बारीक लेकिन बहुत अहम फ़र्क़ है। वो फ़र्क़ है दोनों अल्फ़ाज़ के इस्तेमाल का है।
अगर आसान लफ़्ज़ों में कहा जाये तो ये कह सकते हैं कि “रश्क” का इस्तेमाल positive सेंस में होता है और “हसद” का इस्तेमाल negative सेंस में होता है।
जैसे “रूही कंजाही” का ये शेर देखें :
“कि रश्क आने लगा अपनी बे-कमाली पर
कमाल ऐसे भी अहल-ए-कमाल के देखे”
यहाँ पर शायर कहना चाह रहा है कि “अहल-ए-कमाल” (enlightened/प्रबुद्ध लोगों) का कमाल देखकर अपनी बे-कमाली (अकुशलता) पर रश्क आने लगा।
वहीं “ख़लील तनवीर” का ये शेर देखिये :
“हसद की आग थी और दाग़ दाग़ सीना था
दिलों से धुल न सका वो ग़ुबार-ए-कीना था”
ज़ाहिर है यहाँ “हसद” लफ्ज़ का negative बात बताने के लिए हुआ है। “हसद की आग” वैसा ही phrase है जैसे कहते हैं “बदले की आग”। हिंदी में “हसद” का पर्यायवाची शब्द “डाह” हो सकता है।
चलते चलते : अगर मज़ाक़ करने की इजाज़त हो तो कहना चाहूंगा, आप मुझ पर “रश्क” तो कर सकते हैं लेकिन मुझसे “हसद” करना अच्छी बात नहीं ।
"क़वायद तेज़” के मायने के बहाने उर्दू भाषा के पेच-ओ-ख़म को जानने की कोशिश
अक्सर सुनने और पढ़ने में आता है : “बीपीसीएल को बेचने की कवायद तेज”, “राम मंदिर निर्माण की कवायद तेज, PM Modi करेंगे भूमि पूजन!”,”महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर कवायद तेज हो गयी है” या “कोरोना के फैलाव को देख बिस्तरों की संख्या बढ़ाने की कवायद”
जहाँ तक मुझे पता/लगता है ऊपर के वाक्यों में “क़वायद” शब्द का इस्तेमाल “प्रक्रिया” (process) के सेंस में हुआ है जबकि उर्दू में “क़वायद” का मतलब होता है : नियम या नियमावली (Rules), जो कि “क़ायदा” का बहुवचन है। ये शब्द उर्दू में अरबी से आया है। जैसे उर्दू में व्याकरण की किताब को “उर्दू का क़ायदा” कहते हैं।
वैसे क़ायदा से याद आया कि हमारे कुछ साथी अक्सर मज़ाक़ में कहते हैं कि हमारे “खोजी पत्रकारों” का ये हाल है कि अगर किसी मुसलमान के घर से “क़ायदा बग़दादी” बरामद हो जाये तो उसका संबंध “अल-क़ायदा” और “अबुबक्र अल-बगदादी” से जोड़ देंगे।
दरअसल,”क़ायदा बग़दादी/बग़दादी क़ायदा” अरबी सीखने की बुनयादी किताबों में से है। बचपन में क़ुरान पढ़ने से पहले हमने “क़ायदा बग़दादी/बग़दादी क़ायदा” ही पढ़ी थी।
वापस लौटते हैं क़वायद पर। उर्दू में “प्रक्रिया” के लिए जो शब्द है वो है “अमल”। ये भी उर्दू में अरबी से आया है।
जैसे उर्दू में लिखते हैं : “कोरोना वायरस के टेस्टों/टेस्टिंग का अमल तेज़” या “महाराष्ट्र में हुकूमत साज़ी का अमल तेज़”
कुछ लोग ये भी कह सकते हैं क्योंकि “क़वायद” का एक मतलब “परेड”/ “अभ्यास” (military drill) भी होता है इसीलिये प्रक्रिया के लिये “क़वायद” लिखना/बोलना मुनासिब है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि “सरकार बनाने का “परेड”/ “अभ्यास” तेज” क्यों नहीं बोलते/लिखते?
“शफ़्फ़ाफ़” और “सफ़्फ़ाक” फ़र्क़
ये दो ऐसे अल्फ़ाज़ हैं, जिसके बारे में कह सकते हैं : “सावधानी हटी, दुर्घटना घटी”
वो इसलिए क्योंकि “शफ़्फ़ाफ़” और “सफ़्फ़ाक” में बहुत फ़र्क़ है और ध्यान न देने पर अर्थ का अनर्थ हो सकता है।
शफ़्फ़ाफ़” का मतलब होता है “साफ़ सुथरा”, “निर्मल”, “पारदर्शी” या transparent, clear, clean.
आपने लोगों को “साफ़-शफ़्फ़ाफ़” बोलते सुना होगा, वो भी इसी से सेंस में है।
“अम्मार यासिर” का ये शेर देखें :
“चश्मे के पानी जैसा शफ़्फ़ाफ़ हूँ मैं
दाग़ कोई दिल में है न पेशानी पर”
ध्यान रहे यहाँ चश्मे का मतलब पहने वाला चश्मा नहीं बल्कि झरना/fountain है।
जबकि “सफ़्फ़ाक” का अर्थ होता है : निष्ठुर, अत्याचारी, cruel, tyrant.
जैसे “रज़ा मौरान्वी” का ये शेर देखें :
“ज़िंदगी अब इस क़दर सफ़्फ़ाक हो जाएगी क्या
भूख ही मज़दूर की ख़ुराक हो जाएगी क्या”
इसी तरह निष्ठुर व्यक्ति के लिए “सफ़्फ़ाक़ दिल इंसान” लफ्ज़ का इस्तेमाल करते हैं। या फिर “अत्याचार की पराकाष्ठा” के लिए “सफ़्फ़ाकियत की इंतिहा” लिखते/बोलते हैं।