Sunday, December 13, 2020

બાકી છે....

આ ઊંમર તો આવી પહોંચી
      કેટલાક કામો કરવાં બાકી છે,
આ કેશ થયા સૌ ચાંદીનાં
      મનને સોનાનું કરવું બાકી છે.

જરા મહેકી લઉં હું પૃથ્વીથી
      થોડા તારા ગણવાં બાકી છે,
આ વૃક્ષોને પાણી દઈ દઉં,
      પેલા પંખીને ચણ બાકી છે.

ગીતો મસ્તીનાં ખૂબ ગાયાં
      થોડી પ્રાર્થનાઓ હાજી બાકી છે,
મારાં સૌને મેં ખૂબ ચાહ્યા,
      જગને ચાહવાનું બાકી છે.

બસ બહુ જાણ્યાં જીવે સહુને,
       ખુદને ઓળખવું હજુ બાકી છે,
કહે છે ખાલી હાથે જવાનું છે,
       બસ ખાલી થવાનું બાકી છે.

Friday, December 4, 2020

वेद वाणी 2-18-8

न म इन्द्रेण सख्यं वि योषदस्मभ्यमस्य दक्षिणा दुहीत।
उप ज्येष्ठे वरूथे गभस्तौ प्रायेप्राये जिगीवांसः स्याम॥ ऋग्वेद २-१८-८॥


मेरी मित्रता परमेश्वर से सदैव बनी रहे। परमेश्वर का रक्षण सदैव मुझे प्राप्त होता रहे। परमेश्वर सदैव मुझे उत्तम कर्म करने के लिए ज्ञान और प्रेरणा प्रदान करते रहें। जिससे कि मैं अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकूं। (ऋग्वेद २-१८-८) 


May my friendship be with Parmatma forever. I always keep receiving the protection of Parmatma. May Parmatma always provide me the knowledge and inspiration to do noble deeds. So that I can achieve my goal of life. (Rig Veda 2-18-8)

Monday, November 2, 2020

व्हाट्सएप ग्रुप

कार से उतरकर भागते हुए हॉस्पिटल में पहुंचे नोजवान बिजनेस मैन ने पूछा..

“डॉक्टर, अब कैसी हैं माँ?“ हाँफते हुए उसने पूछा।

“अब ठीक हैं। माइनर सा स्ट्रोक था। ये बुजुर्ग लोग उन्हें सही समय पर लें आये, वरना कुछ बुरा भी हो सकता था।" 

डॉ ने पीछे बेंच पर बैठे दो बुजुर्गों की तरफ इशारा कर के जवाब दिया।

“रिसेप्शन से फॉर्म इत्यादि की फार्मैलिटी करनी है अब आपको।” डॉ ने जारी रखा।

“थैंक यू डॉ. साहेब, वो सब काम मेरी सेक्रेटरी कर रही हैं“ अब वो रिलैक्स था।

फिर वो उन बुजुर्गों की तरफ मुड़ा.. “थैंक्स अंकल, पर मैनें आप दोनों को नहीं पहचाना।“

“सही कह रहे हो बेटा, तुम नहीं पहचानोगे क्योंकि हम तुम्हारी माँ के वाट्सअप फ्रेंड हैं ।”एक ने बोला।

“क्या, वाट्सअप फ्रेंड ?” चिंता छोड़ , उसे अब, अचानक से अपनी माँ पर गुस्सा आया।

“60 + नाम का वाट्सप ग्रुप है हमारा।”
“सिक्सटी प्लस नाम के इस ग्रुप में साठ साल व इससे ज्यादा उम्र के लोग जुड़े हुए हैं। इससे जुड़े हर मेम्बर को उसमे रोज एक मेसेज भेज कर अपनी उपस्थिति दर्ज करानी अनिवार्य होती है, साथ ही अपने आस पास के बुजुर्गों को इसमें जोड़ने की भी ज़िम्मेदारी दी जाती है।”

“महीने में एक दिन हम सब किसी पार्क में मिलने का भी प्रोग्राम बनाते हैं।”

“जिस किसी दिन कोई भी मेम्बर मैसेज नहीं भेजता है तो उसी दिन उससे लिंक लोगों द्वारा, उसके घर पर, उसके हाल चाल का पता लगाया जाता है।”

आज सुबह तुम्हारी माँ का मैसेज न आने पर हम 2 लोग उनके घर पहुंच गए..।

वह गम्भीरता से सुन रहा था ।
“पर माँ ने तो कभी नहीं बताया।" उसने धीरे से कहा।

“माँ से अंतिम बार तुमने कब बात की थी बेटा? क्या तुम्हें याद है ?” एक ने पूछा।

बिज़नेस में उलझा, तीस मिनट की दूरी पर बने माँ के घर जाने का समय निकालना कितना मुश्किल बना लिया था खुद उसने।

हाँ पिछली दीपावली को ही तो मिला था वह उनसे गिफ्ट देने के नाम पर।

बुजुर्ग बोले..
“बेटा, तुम सबकी दी हुई सुख सुविधाओं के बीच, अब कोई और माँ या बाप अकेले घर मे कंकाल न बन जाएं... बस यही सोच ये ग्रुप बनाया है हमने। वरना दीवारों से बात करने की तो हम सब की आदत पड़ चुकी है।”

उसके सर पर हाथ फेर कर दोनों बुज़ुर्ग अस्पताल से बाहर की ओर निकल पड़े। नवयुवक एकटक उनको जाते हुए देखता ही रह गया।

Tuesday, October 6, 2020

सहारे, सरक जाया करते हैं...

 अपनी ख़ुशी टाँगने को, तुम कंधे क्यूँ तलाशती हो..?

    कमज़ोर हो, ये वहम क्यों पालती हो..??


ख़ुश रहो क़ि ये काजल, तुम्हारी  आँखों मे आकर सँवर जाता हैं..!

    ख़ुश रहो क़ि कालिख़ को, तुम निखार देती हों..!!


ख़ुश रहो क़ि तुम्हारा माथा, बिंदिया की ख़ुशकिस्मती हैं..!

    ख़ुश रहो क़ि तुम्हारा रोम-रोम, बेशक़ीमती हैं..!!


ख़ुश रहो क़ि तुम न होतीं, तो क्या-क्या न होता..?

    न मकानों के घर हुए होते, न आसरा होता..!!


न रसोइयों से खुशबुएँ ममता की, उड़ रही होतीं..!

     न त्योहारों पर महफिलें, सज रही होतीं..!!


ख़ुश रहो क़ि तुम बिन, कुछ नहीं हैं..!

    तुमसे ये आसमाँ, दिलक़श और ये ज़मीं हसीं हैं..!!


ख़ुश रहो क़ि रब ने तुम्हें पैदा ही, ख़ुद मुख़्तार किया..!

    फ़िर क्यों किसी और को तुमने, अपनी मुस्कानों का हक़दार किया..!!


ख़ुश रहो जान लो क़ि, तुम क्या हों..?

   चांद सूरज हरियाली, हवा हो..!!


खुशियाँ देती हो, खुशियाँ पा भी लो..!

     कभी बेबात, गुनगुना भी लों..!!


अपनी मुस्कुराहटों के फूलों को,अपने संघर्ष की मिट्टी में खिलने दो..!

    अपने पंखों की ताकत को, नया आसमान मिलने दो..!!


और हाँ मत ढूँढो कंधे..!

       क़ि सहारे, सरक जाया करते हैं..!!


😊  सभी महिलाओं को समर्पित.... 

Monday, October 5, 2020

''क़मर” और “कमर” में फ़र्क़

मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र…


कुछ बरस पहले ये गाना ख़ूब हिट हुआ और अभी भी ख़ासा पसंद किया जाता है :


“मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया”


जब ये गाना आया तो पहले-पहले तो बहुत से लोग इसको “रक़्स-ए-कमर” मान कर चलने/समझने लगे। यहाँ “रक़्स” का मतलब है “डांस/नृत्य” और “कमर” का मतलब कमर/waist। क्योंकि कमर और डांस एक दूसरे से जुड़े हैं इसीलिए लोगों को सही भी लगने लगा। कुछ लोगों को ये “लचके कमर/कमरिया लचके” टाइप लगा !


ये ग़लतफ़हमी बुनयादी तौर पर “क़मर” और “कमर” में फ़र्क़ न करने की वजह से हुआ।


“क़मर” और ”कमर” का फ़र्क़


कमर का मतलब हम ऊपर बयान कर चुके हैं। जबकि “क़मर” का मतलब है “चाँद”। गाने में भी इसी सेंस में इस्तेमाल हुआ है। ये अरबी का लफ़्ज़ है जो कि उर्दू में भी इस्तेमाल भी होता है। इसीलिए “क़मर” लोगों का नाम भी होता है, ठीक उसी तरह से जैसे “महताब”। महताब फ़ारसी का लफ़्ज़ है। महताब का मतलब “चाँद” होता है और “आफ़ताब” का सूरज। आफ़ताब भी फ़ारसी ज़बान से उर्दू में आया है। अरबी में सूरज को “शम्स” कहते हैं ।


“रश्के-क़मर” का मतलब जानने से पहले हम एक और शब्द का मतलब जान लें तो अच्छा होगा। वो है, “रश्क”। इसका अर्थ होता है “ईर्ष्या, जलन”।


जानकारों का कहना है कि “रश्के-क़मर” दरअसल रश्क और क़मर से मिलकर बना है, जिसका मतलब है : चाँद जैसा ख़ूबसूरत, बेहद हसीन, बहुत ख़ूबसूरत या फिर ऐसा हसीन कि चाँद को भी रश्क आये (जलन हो)। जैसे कहते है : “आपको देखकर रश्क होता है”।


इस गाने में भी “रश्के-क़मर” का इस्तेमाल इसी सेंस में हुआ है।


हाँ, एक और बात। वो ये कि “रश्क” और “हसद” में फ़र्क़ होता है। बावजूद इसके कि दोनों का शाब्दिक अर्थ (literal meaning) “जलन” होता है।


“रश्क” और “हसद” का फ़र्क़


उर्दू में “ईर्ष्या, जलन” के अर्थ में दो शब्दों  का इस्तेमाल होता हैं, “रश्क” और “हसद”। दोनों का शाब्दिक अर्थ : डाह, जलन, ईर्ष्या, jealousy, envy, malice होता है ।



अलबत्ता दोनों में बारीक लेकिन बहुत अहम फ़र्क़ है। वो फ़र्क़ है दोनों अल्फ़ाज़ के इस्तेमाल का है।


अगर आसान लफ़्ज़ों में कहा जाये तो ये कह सकते हैं कि “रश्क” का इस्तेमाल positive सेंस में होता है और “हसद” का इस्तेमाल negative सेंस में होता है।


जैसे “रूही कंजाही” का ये शेर देखें :


“कि रश्क आने लगा अपनी बे-कमाली पर


कमाल ऐसे भी अहल-ए-कमाल के देखे”


यहाँ पर शायर कहना चाह रहा है कि “अहल-ए-कमाल” (enlightened/प्रबुद्ध लोगों) का कमाल देखकर अपनी बे-कमाली (अकुशलता) पर रश्क आने लगा।


वहीं “ख़लील तनवीर” का ये शेर देखिये :


“हसद की आग थी और दाग़ दाग़ सीना था


दिलों से धुल न सका वो ग़ुबार-ए-कीना था”


ज़ाहिर है यहाँ “हसद” लफ्ज़ का negative बात बताने के लिए हुआ है। “हसद की आग” वैसा ही phrase है जैसे कहते हैं “बदले की आग”। हिंदी में “हसद” का पर्यायवाची शब्द “डाह” हो सकता है।


चलते चलते : अगर मज़ाक़ करने की इजाज़त हो तो कहना चाहूंगा, आप मुझ पर “रश्क” तो कर सकते हैं लेकिन मुझसे “हसद” करना अच्छी बात नहीं ।

"क़वायद तेज़” के मायने के बहाने उर्दू भाषा के पेच-ओ-ख़म को जानने की कोशिश

अक्सर सुनने और पढ़ने में आता है : “बीपीसीएल को बेचने की कवायद तेज”, “राम मंदिर निर्माण की कवायद तेज, PM Modi करेंगे भूमि पूजन!”,”महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर कवायद तेज हो गयी है” या “कोरोना के फैलाव को देख बिस्तरों की संख्या बढ़ाने की कवायद”


जहाँ तक मुझे पता/लगता है ऊपर के वाक्यों में “क़वायद” शब्द का इस्तेमाल “प्रक्रिया” (process) के सेंस में हुआ है जबकि उर्दू में “क़वायद” का मतलब होता है : नियम या नियमावली (Rules), जो कि “क़ायदा” का बहुवचन है। ये शब्द उर्दू में अरबी से आया है। जैसे उर्दू में व्याकरण की किताब को “उर्दू का क़ायदा” कहते हैं।


वैसे क़ायदा से याद आया कि हमारे कुछ साथी अक्सर मज़ाक़ में कहते हैं कि हमारे “खोजी पत्रकारों” का ये हाल है कि अगर किसी मुसलमान के घर से “क़ायदा बग़दादी” बरामद हो जाये तो उसका संबंध “अल-क़ायदा” और “अबुबक्र अल-बगदादी” से जोड़ देंगे।


दरअसल,”क़ायदा बग़दादी/बग़दादी क़ायदा” अरबी सीखने की बुनयादी किताबों में से है। बचपन में क़ुरान पढ़ने से पहले हमने “क़ायदा बग़दादी/बग़दादी क़ायदा” ही पढ़ी थी।


वापस लौटते हैं क़वायद पर। उर्दू में “प्रक्रिया” के लिए जो शब्द है वो है “अमल”। ये भी उर्दू में अरबी से आया है।


जैसे उर्दू में लिखते हैं : “कोरोना वायरस के टेस्टों/टेस्टिंग का अमल तेज़” या “महाराष्ट्र में हुकूमत साज़ी का अमल तेज़”


कुछ लोग ये भी कह सकते हैं क्योंकि “क़वायद” का एक मतलब “परेड”/ “अभ्यास” (military drill) भी होता है इसीलिये प्रक्रिया के लिये “क़वायद” लिखना/बोलना मुनासिब है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि “सरकार बनाने का “परेड”/ “अभ्यास” तेज” क्यों नहीं बोलते/लिखते?


“शफ़्फ़ाफ़” और “सफ़्फ़ाक” फ़र्क़


ये दो ऐसे अल्फ़ाज़ हैं, जिसके बारे में कह सकते हैं : “सावधानी हटी, दुर्घटना घटी”


वो इसलिए क्योंकि “शफ़्फ़ाफ़” और “सफ़्फ़ाक” में बहुत फ़र्क़ है और ध्यान न देने पर अर्थ का अनर्थ हो सकता है।

 शफ़्फ़ाफ़” का मतलब होता है “साफ़ सुथरा”, “निर्मल”, “पारदर्शी” या transparent, clear, clean.


आपने लोगों को “साफ़-शफ़्फ़ाफ़” बोलते सुना होगा, वो भी इसी से सेंस में है।


“अम्मार यासिर” का ये शेर देखें :


“चश्मे के पानी जैसा शफ़्फ़ाफ़ हूँ मैं


दाग़ कोई दिल में है न पेशानी पर”


ध्यान रहे यहाँ चश्मे का मतलब पहने वाला चश्मा नहीं बल्कि झरना/fountain है।


जबकि “सफ़्फ़ाक” का अर्थ होता है : निष्ठुर, अत्याचारी, cruel, tyrant.


जैसे “रज़ा मौरान्वी” का ये शेर देखें :


“ज़िंदगी अब इस क़दर सफ़्फ़ाक हो जाएगी क्या


भूख ही मज़दूर की ख़ुराक हो जाएगी क्या”


इसी तरह निष्ठुर व्यक्ति के लिए “सफ़्फ़ाक़ दिल इंसान” लफ्ज़ का इस्तेमाल करते हैं। या फिर “अत्याचार की पराकाष्ठा” के लिए “सफ़्फ़ाकियत की इंतिहा” लिखते/बोलते हैं।

मेरे पास है ...

لكن  

تذكر  ان  ما تصنعه  الْيوم  لنفسك  ستكسبه في  الغد  سالبا  او  موجبا  

لكن  تذكر  أيضا  ان  الحياة  عبر   

قال تعالى  

فَاعْتَبِرُوا يَا أُولِي الْأَبْصَارِ 

وايضاً قال  

فَاتَّقُوا اللَّهَ يَا أُولِي الْأَلْبَابِ الَّذِينَ آمَنُوا


A rich man looked through his window and saw a poor man picking something from his dustbin ... He said, Thank GOD I'm not poor;


نظر أحد الأغنياء من خلال نافِذتِه فرأى فقيراً يلتقط شيئاً ما من سلَّة القُمامَة فَحَمَد الله وشَكَرَهُ أنه ليس فقيراً؛

  

The poor man looked around and saw a naked man misbehaving on the street ... He said, Thank GOD I'm not mad;


نظر الرجل المسكين حوله وشاهد رجُلاً عارياً يُسِيء السلوك في الشارع وقال الحَمْدُ لله أني لسْتُ بِمَجْنُون؛


The mad man looked ahead and saw an ambulance carrying a patient ... He said, Thank GOD am not sick;


نظر الرجل المجنون إلى الأمام ورأى سيارة إسعاف تَقِلُ مَرِيضًا وقال الحمد لله أَنِي لسْتُ مَرِيضًا؛


Then a sick person in hospital saw a trolley taking a dead body to the mortuary ... He said, Thank GOD I'm not dead;


ومِن ثُم رأى مَرِيضٌ في المُستشْفَى عربةً تَنْقِل جثةً إلى المشرحة فَحَمَد الله وشَكَرَهُ أنه لا يزال حيٌ يُرْزَق؛


Only a dead person cannot thank God;


المَوتَى هُمْ وَحْدَهُم الذين لا يَستطِيعوُن الكلام وشُكْر الله؛


Why don't you thank GOD today for all your blessings and for the gift of life ... for another beautiful day;


فبما أنك لازلت حياً تُرْزَق فلماذا لا تبادر بِشُكْر المَوْلَى عَزَّ وجَلْ على مَنِّهِ وكَرَمهِ وفَضْلِهِ وعلى هبة الحياة ومَنْحِك يوم آخَر جَمِيل؛


What is LIFE?

To understand life better, you have to go to 3 locations:

 

ماهي الحياة؟

لكي تفهم معنى الحياة،   بصورةٍ أفضل، عليك بالتوجه إلى ٣ أماكن:


1. Hospital

2. Prison 

3. Cemetery


١. المستشفى

٢. السجن

*٣. المقبرة 


At the Hospital, you will understand that nothing is more beautiful than HEALTH.


في المستشفى سَتُدْرِك أن  لا شيئ يضاهي نِعْمَة الصِحَة والعافِيَة


 In the Prison, you'll see that FREEDOM is the most precious thing


وفي السجن سَتَعْلَم  أن الحرية لا تُقَدَر بِثَمَن


 At the Cemetery, you will realize that life is worth nothing. The ground that we walk today will be our roof tomorrow.


في المَقبَرَة، سَتُدْرِك أن الحياة لا تُساوِي شيئاً وأن الأرض التي نمْشِى عليها اليوم وستكون السقف الذِي نلتَحِف به غدا؛  


Sad Truth* :  We all come with Nothing and we will go with Nothing ... Let us, therefore, remain humble and be thankful & grateful to God at all times for everything. 


Could you please share this with someone else, and let them know that God loves them 

ये आलम - ग़ज़ल

ये आलम शौक़ का देखा न जाए 


वो बुत है या ख़ुदा देखा न जाए 


ये किन नज़रों से तू ने आज देखा 


कि तेरा देखना देखा न जाए 


हमेशा के लिए मुझ से बिछड़ जा 


ये मंज़र बार-हा देखा न जाए 


ग़लत है जो सुना पर आज़मा कर 


तुझे ऐ बेवफ़ा देखा न जाए 


ये महरूमी नहीं पास-ए-वफ़ा है 


कोई तेरे सिवा देखा न जाए 


यही तो आश्ना बनते हैं आख़िर 


कोई ना-आश्ना देखा न जाए 


ये मेरे साथ कैसी रौशनी है 


कि मुझ से रास्ता देखा न जाए 


'फ़राज़' अपने सिवा है कौन तेरा 


तुझे तुझ से जुदा देखा न जाए

महरूम” और “मरहूम” में फ़र्क़

महरूम का मतलब है : “वंचित” या कोई चीज़ न मिल पाना।


मरहूम का अर्थ है : “दिवगंत” या जो अब इस दुनिया में न हों। उदहारण : “मरहूम” रफ़ी साहब की आवाज़ का कोई सानी नहीं था/है। उस दिन देरी से पहुँचने की वजह से मैं उनकी गायकी सुनने से “महरूम” रहा।


अच्छा, अब ये क़िस्सा सुनिये।ये कोई फ़र्ज़ी कहानी नहीं है बल्कि हक़ीक़त में ऐसा हुआ था। पिछले साल की बात है, हमारे अपार्टमेंट में गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम के मंच से ऐलान हुआ : “जो लोग अभी तक नहीं आए हैं, जल्दी चले आएं वरना पकोड़े से ‘मरहूम’ रह जाएँगे…”


दरअसल, वो “महरूम” कहना चाहते थे !

उर्दू 3

 अक्सर पढ़ने/सुनने को मिलता है : अमुक व्यक्ति के विचार “आज के संदर्भ में भी उतने ही मौजूं हैं”, “मौजूं बात यह है कि…”,”मौजूं है प्रियंका गांधी का यह सवाल”, “मंटो की कालजयी रचनाएं आज भी मौजूं” या “ये बहस मौज़ूं मालूम होता है”


जहाँ तक मुझे समझ में आया, इन सब में “मौजूं” लफ़्ज़ का इस्तेमाल “उचित”,”समुचित”, “प्रासंगिक” या “relevant” के सेंस में हुआ है।लेकिन जब हम उर्दू में ये शब्द तलाशने की कोशिश करते हैं तो नहीं मिलता। इस सेंस का जो शब्द मिलता/इस्तेमाल होता है वो है, “मौज़ूं”।


जैसे ज़ुबैर फ़ारूक़ का ये शेर देखें :


“इतनी सर्दी है कि मैं बाहों की हरारत मांगू


रुत ये मौज़ूं है कहाँ घर से निकलने के लिए”


यहाँ “मौज़ूं” का मतलब है : “उचित”, “समुचित”, “प्रासंगिक”,”relevant”। ये अरबी से उर्दू में आया है और “मौज़ूं” से “मौज़ूं-तरीन” लफ़्ज़ बना है। जैसे कहते हैं : अमुक व्यक्ति इस ओहदे (पोस्ट/पद) के लिए मौज़ूं-तरीन उम्मीदवार है। यहाँ ये लफ्ज़ most appropriate के सेंस में इस्तेमाल हुआ है।


लेकिन ऐसा देखने/सुनने और पढ़ने में आया है कि लोग “मौज़ूं” का मतलब topic/विषय समझ लेते है या फिर उस सेंस में इस्तेमाल करते हैं।जैसे लोग लिखते/बोलते है : “ख़ैर यह मौज़ूं एक अलग लेख में उठाए जाने चाहिए” या “तवील होने का छींटा किसी बहस का मौज़ूं नहीं बन सकता”।


इन दोनों वाक्यों में मौज़ूं लफ़्ज़ का इस्तेमाल “विषय” के सेंस में हुआ जो कि मुनासिब नहीं है क्योंकि जो लफ़्ज़ इस्तेमाल होना चाहिए वो “मौज़ू” है न कि “मौज़ूं”।


शायद “अब्बास ताबिश” के इस शेर ये “मौज़ू” और वाज़ेह (clear) हो :


“ज़रा सी देर को मौसम का ज़िक्र आया था


फिर उस के बाद तो मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू तुम थे”


इसको इस तरह से भी समझ सकते हैं : “मौज़ूं बहस” मतलब “प्रासांगिक बहस” और “मौज़ू-ए-बहस” का मतलब “बहस का विषय”।


उर्दू 2

महताब आलम  


नाज़नीन, नाज़मीन और नाज़रीन 

ये तीन ऐसे अल्फ़ाज़ हैं जिनके बारे में हम अकसर कन्फ़्यूज़ हो जाते हैं। तीनों शब्दों का अर्थ और इस्तेमाल पता हो तो कन्फ़्यूज़न का इमकान (chance) कम रहता है।


“नाज़नीन” मतलब “सुंदरी”, “प्रिय” या “sweetheart”, “lovely” .


जैसे आपने ये गाना सुना होगा :


“ऐ नाज़नीं सुनो ना, हमें तुमपे हक़ तो दो ना, चाहे तो जान लो न

के देखा तुम्हें तो होश उड़ गए, होंठ जैसे खुद ही सिल गए

ऐ नाज़नीं सुनो ना…”


यहाँ “सुंदरी” और “प्रिय” के सेंस में ही इस्तेमाल हुआ है। “नाज़नीन” को “नाज़नीं” भी पढ़ते/बोलते हैं।


दूसरा शब्द है , “नाज़मीन”। ये शब्द “नाज़िम” का बहुवचन है, जिसके मतलब होता है “इंतेज़ाम करने वाला”।


ये शब्द “संचालक”, “मैनेजर”, “प्रबंधक”, “हाकिम” के सेंस में भी इस्तेमाल होता है। जैसे : मुशायरे का संचालन करने वाले को “नाज़िम ए मुशायरा” कहते हैं।


अनवर जलालपुरी नाम के एक मशहूर “नाज़िम ए मुशायरा” हुए हैं, जिन्होंने “उर्दू शायरी में गीता” और “उर्दू शायरी में गीतांजलि” जैसी किताबें भी लिखीं।


और “#नाज़रीन” कहते हैं देखने वालों को। इसका इस्तेमाल “दर्शकों/viewers” के सेंस में होता है । इसी तरह सुनने वालों/श्रोतागण को “सामईन” (listeners) और पढ़ने वालों/पाठकों को “क़ारईन” (readers) कहते हैं।


 “आब-ए-ज़मज़म का पानी” और “शबे बरात की रात”


आपको पता होगा कि मुसलमान हज करने मक्का जाते हैं और वहां से लौटते समय कुछ लायें या न लायें “आब-ए-ज़मज़म” ज़रूर लाते हैं और लोगों में बाँटते हैं।


“आब-ए-ज़मज़म” का मतलब होता है “ज़मज़म का पानी”। “आब” का मतलब होता है “पानी”। ये फ़ारसी से उर्दू में आया है और ज़मज़म एक कुआँ का नाम है जो कि मक्का में है।


“आब” से ही “आबपाशी” और “आबयारी” जैसे अल्फ़ाज़ (लफ़्ज़ का बहुवचन) बने हैं। दोनों शब्दों का इस्तेमाल “सिंचाई/irrigation” के सेंस में होता है। इसीलिए “सिंचाई विभाग/ irrigation department” को उर्दू में “महकमा-ए-आबपाशी” बोलते हैं।


इसीलिए “आब-ए-ज़मज़म” के साथ पानी लगाने की ज़रुरत नहीं है जैसा कि लोग जाने-अनजाने में कर बैठते हैं. जैसे इस वाक्य में किया गया है, “चमत्कारिक है आब-ए-जमजम का पानी”। ऐसा कहना/बोलना या लिखना “ग़लती से mistake हो गया” कहने/बोलने या “पवित्र गंगाजल का पानी” कहने/बोलने/लिखने जैसा है ! इसी तरह से “शबे बरात की रात” लिखना/बोलना भी मुनासिब नहीं है क्योंकि “शब” का मतलब “रात” होता है।


जैसे “विनोद कुमार त्रिपाठी बशर” का शेर देखें :


“हो न आमद तिरी जिस शब तो वो शब शब ही नहीं


नींद उस रात बग़ावत पे उतर आती है”

सबसे ज़्यादा खुशी

एक टेलीफोन साक्षात्कार में, रेडियो उद्घोषक ने अपने एक करोड़पति अतिथि से पूछा, "आपको जीवन में सबसे ज़्यादा खुशी 😊कब और कैसे मिली ?"

करोड़पति ने कहा:

मैं जीवन में खुशियों 😄 के चार पड़ावों से गुजरा हूं और आखिरकार मैंने सच्चे सुख का मतलब समझा। पहला चरण धन और साधनों का संचय करना था। लेकिन इस पड़ाव पर मुझे वह खुशी नहीं मिली जो मैं चाहता था। 

तब कीमती सामान और वस्तुओं को इकट्ठा करने का दूसरा चरण आया। लेकिन मैंने महसूस किया कि इस चीज का प्रभाव भी अस्थायी है और मूल्यवान चीजों की चमक लंबे समय तक नहीं रहती है।

फिर बड़े प्रोजेक्ट्स पाने का तीसरा चरण आया। जैसे फुटबॉल टीम खरीदना, टूरिस्ट रिसोर्ट खरीदना आदि, लेकिन यहां भी मुझे वह खुशी नहीं मिली जिसकी मैंने कल्पना की थी। 

चौथी बार मेरे एक मित्र ने मुझे कुछ विकलांग बच्चों के लिए व्हीलचेयर खरीदने के लिए कहा।

उस मित्र के अनुरोध पर मैंने तुरंत एक व्हीलचेयर खरीदी। लेकिन दोस्त ने जोर देकर कहा कि मैं उसके साथ जाऊँ और बच्चों को व्हीलचेयर स्वयं दूँ । मैं तैयार हो गया और उसके साथ चला गया। वहाँ मैंने अपने हाथों से उन बच्चों को ये व्हीलचेयर दी । मैंने उन बच्चों के चेहरों पर खुशी की अजीब सी चमक देखी। मैंने उन सभी को कुर्सियों पर बैठते, घूमते और मस्ती करते देखा। नज़ारा ऐसा था कि जैसे वे किसी पिकनिक स्थल पर गए हों।

लेकिन मुझे असली खुशी तब महसूस हुई जब मैं वहाँ से जाने के तैयार हुआ और बच्चों में से एक ने मेरा पैर पकड़ लिया। मैंने धीरे से अपने पैरों को छुड़ाने की कोशिश की लेकिन बच्चे ने मेरे चेहरे को देखा और मेरे पैरों को कसकर पकड़ लिया।

मैं नीचे झुका और बच्चे से धीरे से पूछा: क्या तुम्हें और भी कुछ चाहिए?

इस बच्चे ने जो जवाब दिया, उससे न केवल मुझे खुशी हुई, बल्कि मेरी ज़िंदगी भी पूरी तरह से बदल गई। इस बच्चे ने कहा: "मैं आपके चेहरे को याद करना चाहता हूं ताकि जब मैं आपसे स्वर्ग में मिलूं, तो मैं आपको पहचान पाऊंगा और एक बार और धन्यवाद दूंगा"

अस्तु । 

English Story

In a telephone interview, the radio announcer asked his guest, a millionaire, "What made you happiest in life?"

The millionaire said:

I have gone through four stages of happiness in life and finally I understood the meaning of true happiness. The first stage was to accumulate wealth and means. But at this stage I did not get the happiness I wanted. Then came the second stage of collecting valuables and items. But I realized that the effect of this thing is also temporary and the lustre of valuable things does not last long.

Then came the third stage of getting big projects. Like buying a football team, buying a tourist resort, etc. But even here I did not get the happiness I had imagined. The fourth time a friend of mine asked me to buy a wheelchair for some disabled children.

At a friend's request, I immediately bought a wheelchair. But the friend insisted that I go with him and hand over the wheelchairs to the children. I got ready and went with it. There I give these chairs to these children with my own hands. I saw the strange glow of happiness on the faces of these children. I saw them all sitting on chairs, moving around and having fun. It was as if they had arrived at a picnic spot.

But I felt real joy when I started to leave and one of the kids grabbed my leg. I gently tried to free my legs but the child stared at my face and held my legs tightly.

I bent down and asked the child: Do you need anything else?

The answer that this child gave me not only made me happy but also changed my life completely. This child said: "I want to remember your face so that when I meet you in heaven, I will be able to recognize you and thank you once again"

Sanskrit, a magical language

1. There is no need of particular sentence structure for Sanskrit. 

Like, In English:- Subject +Verb + Object

Ex:- I am writing an answer.


But in Sanskrit there is no need for particular structure. 

अहं उत्तरम् लिखामि (I am writing an Answer.)

लिखामि अहं उत्तरम् (I am writing an Answer.)

अहं लिखामि उत्तरम् (I am writing an Answer.) . 


2. Elephant word has 4000 synonyms in Sanskrit. Here are some of them.

कुञ्जरः,गजः,हस्तिन्, हस्तिपकः,द्विपः,द्विरदः,वारणः,करिन्,मतङ्गः,सुचिकाधरः, सुप्रतीकः, अङ्गूषः, अन्तेःस्वेदः, इभः, कञ्जरः, कञ्जारः, कटिन्, कम्बुः, करिकः, कालिङ्गः, कूचः, गर्जः, चदिरः, चक्रपादः, चन्दिरः, जलकाङ्क्षः, जर्तुः, दण्डवलधिः, दन्तावलः, दीर्घपवनः, दीर्घवक्त्रः, द्रुमारिः, द्विदन्तः, द्विरापः, नगजः, नगरघातः, नर्तकः, निर्झरः, पञ्चनखः, पिचिलः, पीलुः, पिण्डपादः, पिण्डपाद्यः, पृदाकुः, पृष्टहायनः, पुण्ड्रकेलिः, बृहदङ्गः, प्रस्वेदः, मदकलः, मदारः, महाकायः, महामृगः, महानादः, मातंगः, मतंगजः, मत्तकीशः, राजिलः, राजीवः, रक्तपादः, रणमत्तः, रसिकः, लम्बकर्णः, लतालकः, लतारदः, वनजः, वराङ्गः, वारीटः, वितण्डः, षष्टिहायनः, वेदण्डः, वेगदण्डः, वेतण्डः, विलोमजिह्वः, विलोमरसनः, विषाणकः।


This is just one example. Have you seen any language with such rich vocabulary?


3. Magha was a great Sanskrit Poet and Author. He was an expert in writing a whole Sloka with one-two-three-four consonants. Here is just an example from his book Shishupala Vadha:- 


In 144th stanza, he writes whole sloka with only one consonant.

दाददो दुद्ददुद्दादी दाददो दूददीददोः । 

दुद्दादं दददे दुद्दे दादाददददोऽददः ॥


(Translation:- Sri Krishna, the giver of every boon, the scourge of the evil-minded, the purifier, the one whose arms can annihilate the wicked who cause suffering to others, shot his pain-causing arrow at the enemy.)


Also, he was an expert in writing palindromes. He writes in 44th stanza:-वारणागगभीरा सा साराभीगगणारवा । 

कारितारिवधा सेना नासेधा वारितारिका ॥


(Translation:- It is very difficult to face this army which is endowed with elephants as big as mountains. This is a very great army and the shouting of frightened people is heard. It has slain its enemies.)


4. Have you heard about any book which can give you different story when you read it from backward? Here is a book Sri Raghava Yadhaveeyam. 


This book is written in such a way that you will enjoy the story of Rama when you read it in forward way while you will enjoy the story of Krishna when you read it from backward.


Forward:- 

वन्देऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।

रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥


(Translation:- I pay my obeisance to Lord Shri Rama, who with his heart pining for Sita, travelled across the Sahyadri Hills and returned to Ayodhya after killing Ravana and sported with his consort, Sita, in Ayodhya for a long time.)


Backward:-

सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी मारामोरा ।

यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देहं देवं ॥


(Translation:- I bow to Lord Shri Krishna, whose chest is the sporting resort of Shri Lakshmi; who is fit to be contemplated through penance and sacrifice, who fondles Rukmani and his other consorts and who is worshipped by the gopis, and who is decked with jewels radiating splendour.)


5. NASA 

scientist Rick Briggs said that Sanskrit is the only unambiguous language in existence. He also wrote some explanations about Sanskrit in his article.


6. Sanskrit is a language which is used as Speech Therapy. Sanskrit has five different classes of word — Kanthya (Spoken from throat), Talavya (Spoken while touching tongue to jaw), Dantya (Spoken while touching tongue to teeth), Murdhanya (Spoken by twisting tongue), Ostya (Spoken by lips). 


7. Sanskrit has been identified as the most suitable programming languages for computers to understand. Research is going on to make a programming language in Sanskrit which can be compiled and executed million times faster than other programming languages.

संस्कृत

आप जानते है विश्व की सबसे ज्यादा समृद्ध भाषा कौन सी है.....

अंग्रेजी में 'THE QUICK BROWN FOX JUMPS OVER A LAZY DOG' एक प्रसिद्ध वाक्य है। जिसमें अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर समाहित कर लिए गए, मज़ेदार बात यह है की अंग्रेज़ी वर्णमाला में कुल 26 अक्षर ही उप्लब्ध हैं जबकि इस वाक्य में 33 अक्षरों का प्रयोग किया गया जिसमे चार बार O और A, E, U तथा R अक्षर का प्रयोग क्रमशः 2 बार किया गया है। इसके अलावा इस वाक्य में अक्षरों का क्रम भी सही नहीं है। जहां वाक्य T से शुरु होता है वहीं G से खत्म हो रहा है। 
अब ज़रा संस्कृत के इस श्लोक को पढिये।-

*क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोSटौठीडढण:।*
*तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।।* 

अर्थात: पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनार कौन? राजा मय! जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं।

श्लोक को ध्यान से पढ़ने पर आप पाते हैं की संस्कृत वर्णमाला के *सभी 33 व्यंजन इस श्लोक में दिखाये दे रहे हैं वो भी क्रमानुसार*। यह खूबसूरती केवल और केवल संस्कृत जैसी समृद्ध भाषा में ही देखने को मिल सकती है! 

पूरे विश्व में केवल एक संस्कृत ही ऐसी भाषा है जिसमें केवल एक अक्षर से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है, किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में *केवल “न” व्यंजन से अद्भुत श्लोक बनाया है* और गजब का कौशल्य प्रयोग करके भारवि नामक महाकवि ने थोडे में बहुत कहा है-

*न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु।*
*नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्॥*

अर्थात: जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है। ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है। घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है। वंदेसंस्कृतम्! 

एक और उदहारण है।-

*दाददो दुद्द्दुद्दादि दादादो दुददीददोः*
*दुद्दादं दददे दुद्दे ददादददोऽददः*

अर्थात: दान देने वाले, खलों को उपताप देने वाले, शुद्धि देने वाले, दुष्ट्मर्दक भुजाओं वाले, दानी तथा अदानी दोनों को दान देने वाले, राक्षसों का खण्डन करने वाले ने, शत्रु के विरुद्ध शस्त्र को उठाया।

है ना खूबसूरत? इतना ही नहीं, क्या किसी भाषा में *केवल 2 अक्षर* से पूरा वाक्य लिखा जा सकता है? संस्कृत भाषा के अलावा किसी और भाषा में ये करना असम्भव है। माघ कवि ने शिशुपालवधम् महाकाव्य में केवल “भ” और “र ” दो ही अक्षरों से एक श्लोक बनाया है। देखिये –

*भूरिभिर्भारिभिर्भीराभूभारैरभिरेभिरे*
*भेरीरे भिभिरभ्राभैरभीरुभिरिभैरिभा:।*

अर्थात- निर्भय हाथी जो की भूमि पर भार स्वरूप लगता है, अपने वजन के चलते, जिसकी आवाज नगाड़े की तरह है और जो काले बादलों सा है, वह दूसरे दुश्मन हाथी पर आक्रमण कर रहा है।

एक और उदाहरण-

*क्रोरारिकारी कोरेककारक कारिकाकर।*
*कोरकाकारकरक: करीर कर्करोऽकर्रुक॥*

अर्थात- क्रूर शत्रुओं को नष्ट करने वाला, भूमि का एक कर्ता, दुष्टों को यातना देने वाला, कमलमुकुलवत, रमणीय हाथ वाला, हाथियों को फेंकने वाला, रण में कर्कश, सूर्य के समान तेजस्वी [था]।

पुनः क्या किसी भाषा मे केवल *तीन अक्षर* से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है? यह भी संस्कृत भाषा के अलावा किसी और भाषा में असंभव है!
उदहारण- 

*देवानां नन्दनो देवो नोदनो वेदनिंदिनां*
*दिवं दुदाव नादेन दाने दानवनंदिनः।।*

अर्थात- वह परमात्मा [विष्णु] जो दूसरे देवों को सुख प्रदान करता है और जो वेदों को नहीं मानते उनको कष्ट प्रदान करता है। वह स्वर्ग को उस ध्वनि नाद से भर देता है, जिस तरह के नाद से उसने दानव [हिरण्याकश्यप] को मारा था।

अब इस छंद को ध्यान से देखें इसमें पहला चरण ही चारों चरणों में चार बार आवृत्त हुआ है, लेकिन अर्थ अलग-अलग हैं, जो यमक अलंकार का लक्षण है। इसीलिए ये महायमक संज्ञा का एक विशिष्ट उदाहरण है -

विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जतीशमार्गणा:।
विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा:॥

अर्थात- पृथ्वीपति अर्जुन के बाण विस्तार को प्राप्त होने लगे, जबकि शिवजी के बाण भंग होने लगे। राक्षसों के हंता प्रथम गण विस्मित होने लगे तथा शिव का ध्यान करने वाले देवता एवं ऋषिगण (इसे देखने के लिए) पक्षियों के मार्गवाले आकाश-मंडल में एकत्र होने लगे।

जब हम कहते हैं की संस्कृत इस पूरी दुनिया की सभी प्राचीन भाषाओं की जननी है तो उसके पीछे इसी तरह के खूबसूरत तर्क होते हैं। यह विश्व की अकेली ऐसी भाषा है, जिसमें "अभिधान- सार्थकता" मिलती है अर्थात् अमुक वस्तु की अमुक संज्ञा या नाम क्यों है, यह प्रायः सभी शब्दों में मिलता है। जैसे इस विश्व का नाम संसार है तो इसलिये है क्यूँकि वह चलता रहता है, परिवर्तित होता रहता है-
संसरतीति संसारः गच्छतीति जगत् आकर्षयतीति कृष्णः,  रमन्ते योगिनो यस्मिन् स रामः इत्यादि।
जहाँ तक मुझे ज्ञान है विश्व की अन्य भाषाओं में ऐसी अभिधानसार्थकता नहीं है। 
Good का अर्थ अच्छा, भला, सुन्दर, उत्तम, प्रियदर्शन, स्वस्थ आदि है किसी अंग्रेजी विद्वान् से पूछो कि ऐसा क्यों है तो वह कहेगा है बस पहले से ही इसके ये अर्थ हैं क्यों हैं वो ये नहीं बता पायेगा।
ऐसी सरल और समृद्ध भाषा जो सभी भाषाओं की जननी है आज अपने ही देश में अपने ही लोगों में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है बेहद चिंताजनक है।

Sunday, October 4, 2020

english humour

Some fresh husband wife naughty bytes
👊👊👊👊👊😂

Wife: I hate you.
Husband: What a                         
co-incidence..!!! 

😆😂😆😂😂😂

NOW, THIS IS TOO MUCH !!
A husband takes photograph of his wife and then declares himself to be a "WILD-LIFE" PHOTOGRAPHER !!

😂😂😂

A smart wife's note for the husband :
I am going out with my friends for dinner. Your dinner is in the recipe book, on page 25 and ingredients are available at reliance Fresh.

😂😂😂😂😂

Wife: "Darling Let's Enjoy our Saturday and Sunday"!
Husband: "Good Idea!, Let's meet on Monday....!"

😂😂😆

Boss to his friend: Kya zamana aaya hai. My  secretary resigned yesterday.
Friend: Why?
Boss: She caught me with my wife in coffee shop

😜😝

वाघलधारा

गुजरात से मुम्बई के राजमार्ग पर सूरत से ७८ किलोमीटर  वलसाड से 16 km ( सुरतकी तरफ)  पर वाघलधारा गाँव है । राइट हेंड साइड पर आपको "श्री प्रभव हेम कामधेनु गीरीविहार ट्रस्ट, पालीताणा" संचालित "श्री रसिकलाल माणिकचंद धारीवाल कैंसर हॉस्पिटल" की कमान दिखाई देगी । हजारो चोरस मिटर मै फैला फल, फूल, खेत से हराभरा ये संकुल कोई आश्रम से कम नही। यहाँ अति सुंदर  जैन मंदिर एवं विशाल भोजन शाला भी है । ऒंर यहां की गौंशाला में करीब 400  देशी गाय है । यहां कैंसर के मरीज़ (दर्दी) एवं एक साथी को 10 दिन उपचार एवं ट्रेनिंग के लिए रखा जाता है । 80 बेड उपलब्ध है।  नास्ता, लंच और डिनर के समय दर्दी से मिल सकते है।*

*सुबह ९ बजे आपको सिर्फ ५० रुपये मे केस निकलवाना है । अपने साथ मरीज़ (दर्दी) की केस फाइल एवं अगर ऑपरेशन, केमो करवाई हो तो वो साथ ले जानी है । सुबह १०.३० से १२.३० और दोपहर ३.३० से ५.३० दरमियान डॉक्टर द्वारा दर्दी की जांच के बाद १० दिन के लिए एडमिट किया जाता है । केवल दर्दी एवं एक साथी को ही प्रवेश की अनुमति है। ऐसी स्थिति में दर्दी को बिलकुल मुफ्त एवं साथी को ११ दिन के लिए केवल ३३ रुपये में रोज सुबह नास्ता, लंच एवं डीनर के लिए ३३ कूपन दीये जाते है, बस और कोई खर्च नहीं । रुपये १००० की डिपॉज़िट देनी होती है जो ११वें दिन रसीद दिखाने पर वापस मिल जाती है ( १० दिन से पहले निकलने पर डिपॉज़िट वापस नही मिलती )।*
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
*सुबह ५.३० बजे योग, प्राणायाम, ७ बजे गाय के गोबर, गौमुत्र, गाय का दुध, दही, घी से बना पंचगव्य मिश्रण,*
*८ से ९ बजे के बीच नास्ता,*
*९ बजे गौमुत्र के साथ आयुर्वेदिक टेबलेटस,*
*९ से १० शरीर के कैंसरग्रस्त भाग मे गोबर, गौमुत्र का लेप लगाकर धूप मे बैठना,*
*१० बजे काढा ( उकाळा),*
*११ से १ बज के बीच लंच, लंच के बाद आयुर्वेदिक टेबलेटस,*
*२ से ३ बजे सभाग्रुह में दर्दी के खानपान एवं उपचार के लिए सवाल जवाब, चर्चा,* 
*३.३० बजे काढा (उकाळा)*, 
*५ से ६ बजे के बीच सायंकाल भोजन, उसके बाद आयुर्वेदिक टेबलेटस,* 
*८ बजे से ९.३० बजे तक सत्संग, कीर्तन, और बाद में दर्दी को दूध,* 
*यही दिनचर्या १० दिन जारी रहेगी । ११वें दिन आप १ महिने की दवाई (करीब २५०० से ४००० रुपएकी) लेकर अपने घर लौट सकते है, और घर पर ठीक यहाँ की तराह कम से कम एक साल बताये गये परहेज के साथ उपचार करना है । महीने, दो महीने पर दवाइयाँ लेने जाना है ।*

*_अहम ध्यानाकर्षित बाते :-_*

*👁करोड़पति हो या रोडपति, सब  के लिए समान व्यवहार,एक समान नियम,*
*👁कोई वीआइपी कल्चर नहीं।*
*👁अति निष्ठावान, प्रामाणिक,मिलनसार, सेवा भावना मे लीन स्टाफ।*
*👁डॉक्टरों एवं स्टाफ साथ में ही समान खाना खायेंगे।*
*📵तीन समय की सभा, सत्संग ऐवं भोजन समय मोबाइल के उपयोग पर प्रतिबंध ।*
*🛑 ८वें दिन अगर आपकी इच्छा हो या अनुकूल हो तो यहाँ की ऑफिस से प्रमाणित किया फॉर्म दिया जाएगा। आपको ये फॉर्म और दर्दी और आप का आधार कार्ड लेकर केवल १७ किलोमीटर वलसाड रेलवे स्टेशन जाना है, दर्दी की टोटल फ्री और साथी की ५०% discount पर confirm टिकट मिल जाएगी । १ महीने के बाद १ बार आने, जाने के लिए भी फॉर्म साथ में ले आने पर यह सुविधा प्राप्त होगी।* 

*💀टाटा हॉस्पिटल एवं देश की बड़ी बड़ी हॉस्पिटल में लाखों रुपये बरबाद करके मृत्यु के समीप पहुँचे हुए मरीज थक, हार के सेंकडो की संख्या मे यहाँ आशा के साथ आ रहे है।*
 
*शुभम् भवतु ।*

*शुभकामनाँ के साथ* 🙏🏻
*vaghaldhara  hospital*
*08141880808.*
 *06354514539

Sunday, September 20, 2020

उर्दू 1

अकसर लोग विरोध  के लिए “ख़िलाफ़त” लफ्ज़ का इस्तेमाल करते हैं , जो की मुनासिब  (उचित) नहीं है।ख़िलाफ़त का मतलब होता है : इस्लामी शासन व्यवस्था, जिसका प्रमुख ख़लीफ़ा कहलाता है। इसीलिए जब “विरोध” के लिए “ख़िलाफ़त” शब्द का इस्तेमाल किया जाता है तो उसका “अनर्थ” भी निकल सकता है। जैसे कोई ये कहे या लिखे कि : मैंने ऐसा उनकी “ख़िलाफ़त” में किया।

उर्दू में “विरोध” के “मुख़ालिफ़त” शब्द है और “विरोधी” के लिए “मुख़ालिफ़”. उदहारण : मैं उसके ख़िलाफ़ (विरोध में) हूँ। मैं उसका “मुख़ालिफ़” (विरोधी) हूँ या फिर मैं उसके इस प्रस्ताव की मुख़ालिफ़त (विरोध) करता हूँ।

इसी बात पर “सादिक़ हुसैन” का ये शेर सुनिये :

“तुंदी-ए-बाद-ए-मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब

ये तो चलती है तुझे ऊँचा उड़ाने के लिए”

 

“बाज़ी” और “बाजी” का फ़र्क़

“मेरा दिल था अकेला

तूने खेल ऐसा खेला

तेरी याद मे जागूं रात भर

बाज़ीगर ओ बाज़ीगर

तू है बड़ा जादूगर

बाज़ीगर ओ बाज़ीगर

तू है बड़ा जादूगर…”

बाज़ीगर (1993) फ़िल्म का ये गाना तो सुना ही होगा आपने और “बाज़ीगर” का मतलब भी जानते होंगे : तमाशा करने वाला, धोका देने वाला, रिस्क लेने वाला, जुआरी या अंग्रेजी में कहें तो juggler या gambler.

लोग इसे “बाजीगर” लिखते और बोलते देखे गए हैं। जैसे : “आज का दिन : जब हार कर भी ‘बाजीगर’ बनीं भारतीय महिला क्रिकेट टीम” ,”महाराष्ट्र की राजनीति के बाजीगर शरद पवार लॉकडाउन में अपनी बेटी सुप्रिया सुले को भी शतरंज में दे रहे हैं मात”।

इन दोनों वाक्यों में ‘बाजीगर’ शब्द का इस्तेमाल उसी सेंस में हुआ है। अलबत्ता ज के नीचे “नुक़्ता” न लगे होने की वजह से confusion का इमकान (संभावना) रहता है क्योंकि नुक़्ता न लगे होने की वजह से इसे बाजीगर पढ़ा जायेगा जिसका कोई ‘सेंस नहीं बनता’।

वो इसलिए क्योंकि उर्दू में “बाजी” का मतलब होता है बड़ी बहन और “बाजीगर” जैसा कोई शब्द नहीं है जिसका मतलब भी “बाज़ीगर” वाला हो।  कहने का मतलब ये है कि “बाज़ी” और “बाजी” दो अलक्षग अलग शब्द हैं।

 

इसी तरह “बाज़” और “बाज” भी अलग अलग शब्द हैं।  “बाज़” का मतलब eagle या hawk जबकि “बाज” का मतलब है कर, चुंगी या tax, duty, cess.

वैसे “बाज़” का एक मतलब “कुछ”, “चंद”, “कोई-कोई”,”कभी” या few, some भी होता है। जैसे उर्दू में लिखते/बोलते हैं : “बाज़ दफ़ा/बाज़ औक़ात ऐसा होता है” मतलब कई बार या कभी कभी ऐसा होता है या फिर “बाज़ हल्क़ों (कुछ क्षेत्रों) के नताएज (नतीजा का बहुवचन) से ऐसा मालूम होता है कि…”।

लेकिन उर्दू में दोनों का “हिज्जे” (spelling) अलग-अलग होता है। चिड़या मतलब वाले “बाज़” का हिज्जे “باز” होता है जबकि कुछ मतलब वाले बाज़ का हिज्जे “بعض” होता है। “बाज़” के कुछ और meanings भी होते हैं लेकिन उस पर कभी और।

उर्दू तलफ़्फ़ुज़ की सुंदरता

तलफ़्फ़ुज़ किसी भी ज़ुबान का रस है जो कान में तो टपकता ही है, इमला की शक्ल में आंख से देखा भी जाता है। देखिये –

‘नाजुकी’ उसके लब की क्या कहिए’

ख़ुदाए-सुख़न ‘मीर’ का यह ला-ज़वाल मिसरा एक बिंदी की ग़ैर-मौजूदगी के सबब आंख में तीर की तरह चुभा और उसे लहू-लहू कर गया। ग़ुस्से के सबब दूसरी क़िरअत ज़रा बुलन्द आवाज़ में की गई तो ‘नाजुकी’ ने अपने ही कानों में सीसे जैसा कुछ घोल दिया।

आगे बढ़ते हैं। तसव्वुर के पर खोलिए।

आप ख़बरें देख और सुन रहे हैं। बे इंतिहा चुस्त और दीदा-ज़ेब लिबास में किसी माॅडल को किनारे रख देने की क़ुव्वत रखने वाली न्यूज़-एंकर आपके कानों से ज़्यादा आपकी आंखों को बांधे हुए है। अचानक उसकी मख़मली आवाज़ यह ज़ुल्म करती है –

‘खाड़ी देश के इस हवाई जहाज को एक्सप्रेस-वे पर उतरना पड़ा’।

आपके कानों को झटका लगता है। ऐसा लगता है कि यह ‘जहाज’ आपके ऊपर ही उतार दिया गया हो। पिछले सेकेन्ड तक का वो मनभावन चेहरा कितना बदसूरत हो गया है।

इस तरह के तजुर्बों से हम रोज़ गुज़रते हैं। बच्चा गिरे तो हम सब उसे उठाने भागते हैं, मगर जब कोई बड़ा गिरता है तो पहले हम हंसते हैं। फिर हम में से कोई जाकर उसे उठा लेता है। इसी तरह जब बच्चा ग़लत तलफ़्फ़ुज़ या उच्चारण से कोई लफ़्ज़ बोलता तो हम उसे तुतलाहट कहते हैं। हमें उस पर प्यार आता है। मगर जब कोई बड़ा ग़लत बोलता है तो हमें प्यार नहीं ग़ुस्सा आता है, झुंझलाहट होती है। यानी लफ़्ज़ का ग़लत तलफ़्फ़ुज़ एक बचकानी बात है जो सिर्फ़ बच्चों पर ही ज़ेब देती है। कोई भी ज़ुबान अपनी ख़ासियत रखती है। उर्दू ज़ुबान की सबसे बड़ी ख़ासियत इसकी मिठास और इसकी नर्मी है। जो किसी भी सुनने वाले को अपनी तरफ खींचती है। उर्दू ज़ुबान जैसे-जैसे क़रीब आती है, वैसे-वैसे शख़्सियत में नरमी, मिठास और कशिश आने लगती है।

कई नौजवान शायर और नस्र निगार हैरान किए हुए हैं। कमाल लिख रहे हैं। मगर कुछ एक को सुनिये तो अफ़सोस और हैरानी की दोनों कैफ़िय्यतें आपस में ऐसे जज़्ब होकर ज़ाहिर होती हैं कि बयान से बाहर की बात है। ऐसा महसूस होता है कि सामने एक बेइंतिहा ख़ूबसूरत इमारत ताश के पत्तों की तरह ढह रही है। एक तलफ़्फ़ुज़ की ख़ामी क्या ज़ुल्म कर देती है। अस्ल में हर लफ़्ज़ की एक शक्ल और एक आवाज़ होती है जो उस ज़बान के जानने वाले के शऊर और लाशऊर का हिस्सा होती है। जब इमला या तलफ़्फ़ुज़ उस तस्वीर को मजरूह करता है तो शऊर और लाशऊर के तार झनझना उठते हैं और महसूस होता है कि किसी लफ़्ज़ पर ज़ुल्म हुआ है। आंखों के सामने तेज़ी से भागती इस स्क्रीन ने एक बेकनार रचना संसार तो हमारी उंगलियों का ताबे कर दिया है। मगर ठहरने, सीखने और समझने का माद्दा भी ख़त्म कर दिया है। अब हम किसी से कुछ सीखने के ख़्वाहिश-मंद नहीं हैं। अब हमसे जो जल्दी से हो जाए वो ही करना हमें पसंद है, सीखना वो भी नहीं है। हमें एक वक़्त में बहुत सारे काम करने हैं, जैसे हमारे पास वक़्त ही नहीं है।

यही मुआमला उर्दू अदब के चाहने वालों मगर उर्दू जैसा अदब तख़लीक़ करने वालों का है। उन्हें उर्दू ज़बान ख़ासतौर पर उर्दू रस्मुल-ख़त से कोई मतलब नहीं है। उन्हें बस उर्दू अदब आ जाए। फिर चाहे गजल हो, नज्म हो, गालिब हो, जौक हो, फिराक हो, फैज हो, मजाज हो, कैफी आजमी हो, फराज हो, जफर इकबाल हो, अस्मत चुगताई हो, कुरतुल-आइन हो, सादत हसन हो, गबन हो, मुगले-आजम हो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। मगर शख़्स को शख़्सियत बनाना है और अदब में कुछ कर दिखाना है तो ज़ुबान के पांव दाबने होंगे। अपने शीन-क़ाफ़ को अर्जुन और एक्लव्य के तीरों की तरह हमेशा अचूक रखना होगा और यह मुश्किल काम सिर्फ़ ज़ुबान के क़रीब जाने से होगा। ज़ुबान मज़बूत हो गयी तो अदब ख़ुद अपने दरवाज़े खोल देगा। नहीं तो ज़ुबान भी मायूस रहेगी और फ़राज़ का यह शेर भी-

सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं

Tuesday, September 8, 2020

महागुरु है मेरा कन्हैया...

कभी सूरदास ने एक स्वप्न देखा था कि रुक्मिणी और राधिका मिली हैं और एक दूजे पर निछावर हुई जा रही हैं।
      सोचता हूँ, कैसा होगा वह क्षण जब दोनों ठकुरानियाँ मिली होंगी। दोनों ने प्रेम किया था। एक ने बालक कन्हैया से, दूसरे ने राजनीतिज्ञ कृष्ण से। एक को अपनी मनमोहक बातों के जाल में फँसा लेने वाला कन्हैया मिला था, और दूसरे को मिले थे सुदर्शन चक्र धारी, महायोद्धा कृष्ण।
      कृष्ण राधिका के बाल सखा थे, पर राधिका का दुर्भाग्य था कि उन्होंने कृष्ण को तात्कालिक विश्व की महाशक्ति बनते नहीं देखा। राधिका को न महाभारत के कुचक्र जाल को सुलझाते चतुर कृष्ण मिले, न पौंड्रक-शिशुपाल का वध करते बाहुबली कृष्ण मिले।
      रुक्मिणी कृष्ण की पत्नी थीं, महारानी थीं, पर उन्होंने कृष्ण की वह लीला नहीं देखी जिसके लिए विश्व कृष्ण को स्मरण रखता है। उन्होंने न माखन चोर को देखा, न गौ-चरवाहे को। उनके हिस्से में न बाँसुरी आयी, न माखन।
      कितनी अद्भुत लीला है, राधिका के लिए कृष्ण कन्हैया था, रुख्मिनी के लिए कन्हैया कृष्ण थे। पत्नी होने के बाद भी रुख्मिनी को कृष्ण उतने नहीं मिले कि वे उन्हें "तुम" कह पातीं। आप से तुम तक की इस यात्रा को पूरा कर लेना ही प्रेम का चरम पा लेना है। रुख्मिनी कभी यह यात्रा पूरी नहीं कर सकीं।
     राधिका की यात्रा प्रारम्भ ही 'तुम' से हुई थीं। उन्होंने प्रारम्भ ही "चरम" से किया था। शायद तभी उन्हें कृष्ण नहीं मिले।
     कितना अजीब है न! कृष्ण जिसे नहीं मिले, युगों युगों से आजतक उसी के हैं, और जिसे मिले उसे मिले ही नहीं।
     तभी कहता हूँ, कृष्ण को पाने का प्रयास मत कीजिये। पाने का प्रयास कीजियेगा तो कभी नहीं मिलेंगे। बस प्रेम कर के छोड़ दीजिए, जीवन भर साथ निभाएंगे कृष्ण। कृष्ण इस सृष्टि के सबसे अच्छे मित्र हैं। राधिका हों या सुदामा, कृष्ण ने मित्रता निभाई तो ऐसी निभाई कि इतिहास बन गया।
      राधा और रुक्मिणी जब मिली होंगी तो रुक्मिणी राधा के वस्त्रों में माखन की गंध ढूंढती होंगी, और राधा ने रुक्मिणी के आभूषणों में कृष्ण का बैभव तलाशा होगा। कौन जाने मिला भी या नहीं। सबकुछ कहाँ मिलता है मनुष्य को... कुछ न कुछ तो छूटता ही रहता है।
      जितनी चीज़ें कृष्ण से छूटीं उतनी तो किसी से नहीं छूटीं। कृष्ण से उनकी माँ छूटी, पिता छूटे, फिर जो नंद-यशोदा मिले वे भी छूटे। संगी-साथी छूटे। राधा छूटीं। गोकुल छूटा, फिर मथुरा छूटी। कृष्ण से जीवन भर कुछ न कुछ छूटता ही रहा। कृष्ण जीवन भर त्याग करते रहे। हमारी आज की पीढ़ी जो कुछ भी छूटने पर टूटने लगती है, उसे कृष्ण को गुरु बना लेना चाहिए। जो कृष्ण को समझ लेगा वह कभी अवसाद में नहीं जाएगा। कृष्ण आनंद के देवता है। कुछ छूटने पर भी कैसे खुश रहा जा सकता है, यह कृष्ण से अच्छा कोई सिखा ही नहीं सकता। महागुरु है मेरा कन्हैया...

Sunday, July 19, 2020

તો હું શું કરું?

દીલ ન લાગે કિનારે, તો હું શું કરું?
દૂર ઝંઝા પુકારે, તો હું શું કરું?

હું કદી ના ગણું તુજને પથ્થર સમો,
તું જ એ રૂપ ધારે, તો હું શું કરું?

હો વમળમાં તો મનને મનાવી લઉં,
નાવ ડૂબે કિનારે, તો હું શું કરું?

આંસુઓ ખૂબ મોંઘા છે માન્યું છતાં
કોઈ પાલવ પ્રસારે, તો હું શું કરું?

તારી ઝૂલ્ફોમાં ટાંકી દઉં તારલાં,
પણ તું આવે સવારે, તો હું શું કરું?

Saturday, July 18, 2020

મહાભારતના ૯ સાર-સુત્રો

૧)  સંતાનોની ખોટી જીદ અને માંગણીઓ ઉપર, તમારો જો સમયસર અંકુશ નહિ હોય તો, જીવનમાં છેલ્લે તમે નિ:સહાય થઈ જશો = કૌરવો

૨)  તમે ગમે તેટલા બલવાન હો,પણ તમે અધર્મ નો સાથ આપશો તો, તમારી શક્તિ, અસ્ત્ર -શસ્ત્ર, વિધા,વરદાન, બધું જ નકામું થઈ જશે. = કર્ણ

૩)  સંતાનો ને એટલા મહત્વાકાંક્ષી ન બનાવો,
 કે વિદ્યાનો દુરૂપયોગ કરીને સર્વનાશ નોતરે = અષ્વત્થામા

૪). ક્યારેય  કોઈને એવાં વચન ના આપો, કે જેનાથી તમારે અધર્મીઓની સામે સમર્પણ કરવું પડે = ભીષ્મપિતા

૫). સંપત્તિ, શક્તિ, સત્તા, સંખ્યાનો દુરુપયોગ, અને દુરાચારીઓનો સથવારો, અંતે  સર્વનાશ નોતરે છે = દુર્યોધન

૬). અંધ વ્યક્તિ .. અર્થાત્ ..સ્વાર્થાંધ, વિત્તાંધ, મદાંધ, જ્ઞાનાન્ધ , મોહાન્ધ અને  કામાન્ધ વ્યક્તિના હાથમાં સત્તાનું સુકાન ના સોંપાવુ જોઈએ, નહીં તો તે સર્વ નાશ નોંતરશે. = ધ્રુતરાષ્ટ્ર

૭)  વિદ્યા ની સાથે વિવેક હશે તો, તમે અવશ્ય વિજયી થશો - = અર્જુન 

૮)  બધા સમયે-બધી બાબતોમાં  છળકપટથી, તમે બધે, બધી બાબતમાં, દરેક વખત સફળ નહીં થાવ = શકુનિ

૯)  જો તમે નીતી/ધર્મ/કર્મ સફળતા પુર્વક નિભાવશો તો, વિશ્વની કોઈ પણ શક્તિ,  તમારો વાળ પણ વાંકો નહીં કરી શકે = યુધિષ્ઠિર

Sunday, July 5, 2020

रामायण के सात काण्ड

श्री राम जय राम जय जय राम 
जय जय विघ्न हरण हनुमान

रामायण के सात काण्ड मानव की उन्नति के सात सोपान
 
1. बालकाण्ड –

बालक प्रभु को प्रिय है क्योकि उसमेँ छल , कपट , नही होता विद्या , धन एवं प्रतिष्ठा बढने पर भी जो अपना हृदय निर्दोष निर्विकारी बनाये रखता है ,उसी को भगवान प्राप्त होते है। बालक जैसा निर्दोष निर्विकारी दृष्टि रखने पर ही राम के स्वरुप को पहचान सकते है। जीवन मेँ सरलता का आगमन संयम एवं ब्रह्मचर्य से होता है।बालक की भाँति अपने मान अपमान को भूलने से
जीवन मेँ सरलता आती है बालक के समान निर्मोही एवं निर्विकारी बनने पर शरीर अयोध्या बनेगा । जहाँ युद्ध, वैर, ईर्ष्या नहीँ है, वही अयोध्या है।

2. अयोध्याकाण्ड –

यह काण्ड मनुष्य को निर्विकार बनाता है। जब जीव भक्ति रुपी सरयू नदी के तट पर हमेशा निवास करता है, तभी मनुष्य निर्विकारी बनता है। भक्ति अर्थात् प्रेम, अयोध्याकाण्ड प्रेम प्रदान करता है । रामका भरत प्रेम , राम का सौतेली माता से प्रेम आदि, सब इसी काण्ड मेँ है। राम की निर्विकारिता इसी मेँ दिखाई  देती है ।अयोध्याकाण्ड का पाठ करने से परिवार मेँ प्रेम बढता है ।उसके घर मेँ लडाई झगडे नहीँ होते ।उसका घर अयोध्या बनता है। कलह का मूल कारण धन एवं प्रतिष्ठा है ।अयोध्याकाण्ड का फल निर्वैरता है ।सबसे पहले अपने घर की ही सभी प्राणियोँ मेँभगवद् भाव रखना चाहिए।

3.  अरण्यकाण्ड –

यह निर्वासन प्रदान करता है ।इसका मनन करने से वासना नष्ट होगी ।बिना अरण्यवास(जंगल) के जीवन मेँ दिव्यता नहीँ आती ।रामचन्द्र राजा होकर भी सीता के साथ वनवास किया ।वनवास मनुष्य हृदय को कोमल बनाता है।तप द्वारा ही कामरुपी रावण का बध होगा । इसमेँ सूपर्णखा(मोह )एवं शबरी (भक्ति)दोनो ही है।भगवान राम सन्देश देते हैँ कि मोह को त्यागकर भक्ति को अपनाओ ।

किष्किन्धाकाण्ड –

जब मनुष्य निर्विकार एवं निर्वैर होगा तभी जीव की ईश्वर से मैत्री होगी ।इसमे सुग्रीव और राम अर्थात् जीव और ईश्वर की मैत्री का वर्णन है।जब जीव सुग्रीव की भाँति हनुमान अर्थात् ब्रह्मचर्य का आश्रय लेगा तभी उसे राम मिलेँगे। जिसका कण्ठ सुन्दर है वही सुग्रीव है।कण्ठ की शोभा आभूषण से नही बल्कि राम नाम का जप करने से है।जिसका कण्ठ सुन्दर है ,उसी की मित्रता राम से होती है किन्तु उसे हनुमान यानी ब्रह्मचर्य की सहायता लेनी पडेगी।

5. सुन्दरकाण्ड –

जब जीव की मैत्री राम से हो जाती है तो वह सुन्दर हो जाता है ।इस काण्ड मेँ हनुमान को सीता के दर्शन होते है।सीताजी पराभक्ति है ,जिसका जीवन सुन्दर होता है उसे ही पराभक्ति के दर्शन होते है ।संसार समुद्र पार करने वाले को पराभक्ति सीता के दर्शन होते है ।ब्रह्मचर्य एवं रामनाम का आश्रय लेने वाला संसार सागर को पार करता है ।संसार सागर को पार करते समय मार्ग मेँ सुरसा बाधा डालने आ जाती है। अच्छे रस ही सुरसा है , नये नये रस की वासना रखने वाली जीभ ही सुरसा है। संसार सागर पार करने की कामना रखने वाले को जीभ को वश मे रखना होगा ।जहाँ पराभक्ति सीता है वहाँ शोक नही रहता ,जहाँ सीता है वहाँ अशोकवन है।

6.  लंकाकाण्ड –

जीवन भक्तिपूर्ण होने पर राक्षसो का संहार होता है काम क्रोधादि ही राक्षस हैँ ।जो इन्हेँ मार
सकता है ,वही काल को भी मार सकता है ।जिसे काम मारता है उसे काल भी मारता है ,लंका शब्द के अक्षरो को इधर उधर करने पर होगा कालं ।काल सभी को मारता है किन्तु हनुमान जी काल को भी मार देते हैँ ।क्योँकि वे ब्रह्मचर्य का पालन करते हैँ पराभक्ति का दर्शन करते है ।

7 उत्तरकाण्ड –

इस काण्ड मेँ काकभुसुण्डि एवं गरुड संवाद को बार बार पढना चाहिए । इसमेँ सब कुछ है ।जब तक राक्षस ,काल का विनाश नहीँ होगा तब तक उत्तरकाण्ड मे प्रवेश नही मिलेगा। इसमेँ भक्ति की कथा है। भक्त कौन है ? जो भगवान से एक क्षण भी अलग नही हो सकता वही भक्त है पूर्वार्ध मे जो काम रुपी रावण को मारता है उसी का उत्तरकाण्ड सुन्दर बनता है ,वृद्धावस्था मे
राज्य करता है। जब जीवन के पूर्वार्ध मे युवावस्था मे काम को मारने का प्रयत्न होगा तभी उत्तरार्ध –उत्तरकाण्ड सुधर पायेगा । अतः जीवन को सुधारने का प्रयत्न युवावस्था से ही करना चाहिए उसमे भी यदि अपने सद्गुरु जैसे की कृपा हो जाय तो जीवन धन्य,सफल हो जाय।

भावार्थ रामायण से

Saturday, June 27, 2020

हनुमान जी का कर्जा

रामजी लंका पर विजय प्राप्त करके आए तो, भगवान ने विभीषण जी, जामवंत जी, अंगद जी, सुग्रीव जी सब को अयोध्या से विदा किया। 
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तो सब ने सोचा हनुमान जी को प्रभु बाद में बिदा करेंगे, लेकिन रामजी ने हनुमानजी को विदा ही नहीं किया,
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अब प्रजा बात बनाने लगी कि क्या बात सब गए हनुमानजी नहीं गए अयोध्या से !
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अब दरबार में काना फूसी शुरू हुई कि हनुमानजी से कौन कहे जाने के लिए, तो सबसे पहले माता सीता की बारी आई कि आप ही बोलो कि हनुमानजी चले जाएं।
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माता सीता बोलीं मै तो लंका में विकल पड़ी थी, मेरा तो एक एक दिन एक एक कल्प के समान बीत रहा था, 
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वो तो हनुमानजी थे,जो प्रभु मुद्रिका ले के गए, और धीरज बंधवाया कि...!

कछुक दिवस जननी धरु धीरा।
कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।

निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।
तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥
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मै तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी अयोध्या छोड़कर जाने के लिए, आप किसी और से बुलावा लो।
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अब बारी आयी लखनजी की तो लक्ष्मण जी ने कहा, मै तो लंका के रणभूमि में वैसे ही मरणासन्न अवस्था में पड़ा था, पूरा रामदल विलाप कर रहा था।

प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।
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ये तो जो खड़ा है, वो हनुमानजी का लक्ष्मण है। मै कैसे बोलूं, किस मुंह से बोलूं कि हनुमानजी अयोध्या से चले जाएं !
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अब बारी आयी भरतजी की, अरे ! भरतजी तो इतना रोए, कि रामजी को अयोध्या से निकलवाने का कलंक तो वैसे ही लगा है मुझपे, हनुमानजी का सब मिलके और लगवा दो !
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और दूसरी बात ये कि...!

बीतें अवधि रहहिं जौं प्राना।
अधम कवन जग मोहि समाना
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मैंने तो नंदीग्राम में ही अपनी चिता लगा ली थी, वो तो हनुमानजी थे जिन्होंने आकर ये खबर दी कि...!
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रिपु रन जीति सुजस सुर गावत।
सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥
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मैं तो बिल्कुल न बोलूं हनुमानजी से अयोध्या छोड़कर चले जाओ, आप किसी और से बुलवा लो।
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अब बचा कौन..? सिर्फ शत्रुहन भैया। जैसे ही सब ने उनकी तरफ देखा, तो शत्रुहन भैया बोल पड़े.. 
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मैंने तो पूरी रामायण में कहीं नहीं बोला, तो आज ही क्यों बुलवा रहे हो, और वो भी हनुमानजी को अयोध्या से निकलने के लिए, 
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जिन्होंने ने माता सीता, लखन भैया, भरत भैया सब के प्राणों को संकट से उबारा हो ! किसी अच्छे काम के लिए कहते बोल भी देता। मै तो बिल्कुल भी न बोलूं।
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अब बचे तो मेरे राघवेन्द्र सरकार... 
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माता सीता ने कहा प्रभु ! आप तो तीनों लोकों ये स्वामी है, और देखती हूं आप हनुमानजी से सकुचाते है। और आप खुद भी कहते हो कि...!
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प्रति उपकार करौं का तोरा।
सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥
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आखिर आप के लिए क्या अदेय है प्रभु ! 
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राघवजी ने कहा देवी कर्जदार जो हूं, हनुमान जी का, इसीलिए तो..
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सनमुख होइ न सकत मन मोरा
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देवी ! हनुमानजी का कर्जा उतारना आसान नहीं है, इतनी सामर्थ राम में नहीं है, जो "राम नाम" में है। 
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क्योंकि कर्जा उतारना भी तो बराबरी का ही पड़ेगा न...! यदि सुनना चाहती हो तो सुनो हनुमानजी का कर्जा कैसे उतारा जा सकता है।
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पहले हनुमान विवाह करें,
लंकेश हरें इनकी जब नारी।
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मुदरी लै रघुनाथ चलै,
निज पौरुष लांघि अगम्य जे वारी।
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अायि कहें, सुधि सोच हरें, 
तन से, मन से होई जाएं उपकारी।
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तब रघुनाथ चुकायि सकें, 
ऐसी हनुमान की दिव्य उधारी।।
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देवी ! इतना आसान नहीं है, हनुमान जी का कर्जा चुकाना। मैंने ऐसे ही नहीं कहा था कि...!
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं
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मैंने बहुत सोच विचार कर कहा था। लेकिन यदि आप कहती हो तो कल राज्य सभा में बोलूंगा कि हनुमानजी भी कुछ मांग लें।
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दूसरे दिन राज्य सभा में सब एकत्र हुए, सब बड़े उत्सुक थे कि हनुमानजी क्या मांगेंगे, और रामजी क्या देंगे।
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राघवजी ने कहा ! हनुमान सब लोगों ने मेरी बहुत सहायता की और मैंने, सब को कोई न कोई पद दे दिया। 
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विभीषण और सुग्रीव को क्रमशः लंका और किष्कन्धा का राजपद, अंगद को युवराज पद। तो तुम भी अपनी इच्छा बताओ...?
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हनुमानजी बोले ! प्रभु आप ने जितने नाम गिनाए, उन सब को एक एक पद मिला है, और आप कहते हो...!
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तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना
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तो फिर यदि मै दो पद मांगू तो..?
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सब लोग सोचने लगे बात तो हनुमानजी भी ठीक ही कह रहे हैं। 
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रामजी ने कहा ! ठीक है, मांग लो, 
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सब लोग बहुत खुश हुए कि आज हनुमानजी का कर्जा चुकता हुआ।
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हनुमानजी ने कहा ! प्रभु जो पद आप ने सबको दिए हैं, उनके पद में राजमद हो सकता है, तो मुझे उस तरह के पद नहीं चाहिए, जिसमे राजमद की शंका हो, 
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तो फिर...! आप को कौन सा पद चाहिए ?
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हनुमानजी ने रामजी के दोनों चरण पकड़ लिए, प्रभु ..! हनुमान को तो बस यही दो पद चाहिए।
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हनुमत सम नहीं कोउ बड़भागी।
नहीं कोउ रामचरण अनुरागी।।

जय श्री राम।।

Friday, June 5, 2020

सच्ची प्रार्थना

बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं, तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं । क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है?

आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर - अपने घर की व्यापार की - राजनीति की चर्चा करते हैं, परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई थी । वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं । आप इस लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं । यह श्लोक इस प्रकार है -

अनायासेन मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

इस श्लोक का अर्थ है अनायासेन मरणम्...... अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं ।

बिना देन्येन जीवनम्......... अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो । ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके ।

देहांते तव सानिध्यम ........अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले ।

देहि में परमेशवरम्..... हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।

यह प्रार्थना करें गाड़ी, लाडी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन यह नहीं मांगना है, यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं । इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए ।
यह प्रार्थना है, याचना नहीं है । याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है; वह याचना है, वह भीख है।

हम प्रार्थना करते हैं, प्रार्थना का अर्थ विशेष होता है अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ । अर्थना अर्थात निवेदन । ठाकुर जी से प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या करना है, यह श्लोक बोलना है :

सब से जरूरी बात
जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए । उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं । आंखें बंद क्यों करना - हम तो दर्शन करने आए हैं । भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, मुखारविंद का, शृंगार का, सम्पूर्ण आनंद लें । आंखों में भर ले - स्वरूप को । दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे, तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं, उस स्वरूप का ध्यान करें । मंदिर में नेत्र बंद नहीं करना । बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए, तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें । नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें।

यहीं शास्त्र हैं, यहीं बड़े बुजुर्गो का कहना हैं !

Tuesday, June 2, 2020

Intelligence and Wisdom

This is so so good ... I had never known these  profound distinctions between Intelligence and Wisdom
(Quotes from our ancient 
Books )


1. Intelligence leads to arguments.
Wisdom leads to settlements.
2. Intelligence is power of will.
Wisdom is power OVER  will.
3. Intelligence is heat, it burns.
Wisdom is warmth, it comforts.
4. Intelligence is pursuit of knowledge, it tires the seeker.
Wisdom is pursuit of truth, it inspires the seeker.
5. Intelligence is holding on.
Wisdom is letting go.
6. Intelligence leads you.
Wisdom guides you.
7. An intelligent man thinks he knows everything.
A wise man knows that there is still something to learn.
8. An intelligent man always tries to prove his point.
A wise man knows there really is no point.
9. An intelligent man freely gives unsolicited advice.
A wise man keeps his counsel until all options are considered.
10. An intelligent man understands what is being said.
A wise man understands what is left unsaid.
11. An intelligent man speaks when he has to say something.
A wise man speaks when he has something to say.
12. An intelligent man sees  everything as relative.
A wise man sees everything as related.
13. An intelligent man tries to control the mass flow.
A wise man navigates the mass flow.
14. An intelligent man preaches.
A wise man reaches.

Intelligence is good
but wisdom achieves better results.

Thursday, May 28, 2020

A Collection of superb, hard hitting, humorous comments...

"In my many years I have come to a conclusion, ... that one useless man is a shame,  two [useless men] is a law firm and three or more [useless men] is a government."

~John Adams 

 

"If you don't read the newspaper you are  uninformed, if you do read the newspaper, you are  misinformed."

 ~Mark Twain 

 

"I  contend that for  a nation to try to tax itself into prosperity is like a man standing in a bucket and trying  to lift himself up by the  handle."

 ~Winston Churchill 

 

"A government which  robs Peter to pay Paul can always depend on the support of  Paul."

 ~George Bernard Shaw  

 

"Foreign aid might be defined as a transfer of money from poor people in rich countries to rich people in poor countries."

~ Douglas Casey, Classmate of Bill Clinton at Georgetown University 


"Giving  money and  power to  government is like giving whiskey and car keys to teenage boys."

~P.J. O'Rourke,  Civil Libertarian 


"Just because you do not take an interest in politics doesn't mean politics won't take an interest in you!"

~Pericles (430  B.C.)  


"No man's life, liberty, or property is safe while the legislature is in session."

~Mark Twain  (1866)


"The government is like a baby's alimentary canal, with a happy appetite at one end and no responsibility at the other."

~ Ronald  Reagan  


"The  only difference between a tax man and a taxidermist is that the taxidermist leaves the skin."

~Mark Twain 


"What this country needs are more unemployed politicians."

~Edward Langley,  Artist (1928-1995)  


"A  government big enough to give you everything you want, is strong enough to take everything you have."

~Thomas Jefferson  

 

"We hang the petty thieves and appoint the great ones to public office."

~Aesop  


"If you think health care is expensive now, wait until you see what it costs when it's free!"

~P.J.  O'Rourke 


Wednesday, May 6, 2020

ओशो

*ओशो* गजब का *ज्ञान* दे गये, *कोरोना* जैसी *जगत बिमारी* के लिए

*70* के *दशक* में *हैजा* भी *महामारी* के रूप में पूरे *विश्व* में फैला था, तब *अमेरिका* में किसी ने *ओशो रजनीश जी* से प्रश्न किया
-इस *महामारी* से कैसे  बचे ?

*ओशो* ने विस्तार से जो समझाया वो आज *कोरोना* के सम्बंध में भी बिल्कुल *प्रासंगिक* है।

🌹 *ओशो* 🌹

यह *प्रश्न* ही आप *गलत* पूछ रहे हैं,

*प्रश्न* ऐसा होना चाहिए था कि *महामारी* के कारण मेरे मन में *मरने का जो डर बैठ गया है* उसके सम्बन्ध में कुछ कहिए?*

इस *डर* से कैसे बचा जाए...?

क्योंकि *वायरस* से *बचना* तो बहुत ही *आसान* है,

लेकिन जो *डर* आपके और *दुनिया* के *अधिकतर लोगों* के *भीतर* बैठ गया है, उससे *बचना* बहुत ही *मुश्किल* है।

अब इस *महामारी* से कम लोग, इसके *डर* के कारण लोग ज्यादा *मरेंगे*.......।

*’डर’* से ज्यादा खतरनाक इस *दुनिया* में कोई भी *वायरस* नहीं है।

इस *डर* को समझिये, 
अन्यथा *मौत* से पहले ही आप एक *जिंदा* लाश बन जाएँगे।

यह जो *भयावह माहौल* आप अभी देख रहे हैं, इसका *वायरस* आदि से कोई *लेना* *देना* नहीं है।

यह एक *सामूहिक पागलपन* है, जो एक *अन्तराल* के बाद हमेशा घटता रहता है, कारण *बदलते* रहते हैं, कभी *सरकारों की प्रतिस्पर्धा*, कभी *कच्चे तेल की कीमतें*, कभी *दो देशों की लड़ाई*, तो कभी *जैविक हथियारों की टेस्टिंग*!!

इस तरह का *सामूहिक* *पागलपन* समय-समय पर *प्रगट* होता रहता है। *व्यक्तिगत पागलपन* की तरह *कौमगत*, *राज्यगत*, *देशगत* और *वैश्विक* *पागलपन* भी होता है।

इस में *बहुत* से लोग या तो हमेशा के लिए *विक्षिप्त* हो जाते हैं या फिर *मर* जाते हैं ।

ऐसा पहले भी *हजारों* बार हुआ है, और आगे भी होता रहेगा और आप देखेंगे कि आने वाले बरसों में युद्ध *तोपों* से नहीं बल्कि *जैविक हथियारों* से लड़ें जाएंगे।

🌹मैं फिर कहता हूं हर समस्या *मूर्ख* के लिए *डर* होती है, जबकि *ज्ञानी* के लिए *अवसर*!!

इस *महामारी* में आप *घर* बैठिए, *पुस्तकें पढ़िए*, शरीर को कष्ट दीजिए और *व्यायाम* कीजिये, *फिल्में* देखिये, *योग*  कीजिये और एक माह में *15* किलो वजन घटाइए, चेहरे पर बच्चों जैसी ताजगी लाइये
अपने *शौक़* पूरे कीजिए।

मुझे अगर *15* दिन घर  बैठने को कहा जाए तो में इन *15* दिनों में *30* पुस्तकें पढूंगा और नहीं तो एक *बुक* लिख डालिये, इस *महामन्दी* में पैसा *इन्वेस्ट* कीजिये, ये अवसर है जो *बीस तीस* साल में एक बार आता है *पैसा* बनाने की सोचिए....क्युं बीमारी की बात करके वक्त बर्बाद करते हैं...

ये *’भय और भीड़’* का मनोविज्ञान सब के समझ नहीं आता है।* 

*’डर’* में रस लेना बंद कीजिए...

आमतौर पर हर आदमी *डर* में थोड़ा बहुत रस लेता है, अगर *डरने* में मजा नहीं आता तो लोग *भूतहा* फिल्म देखने क्यों जाते?


☘ यह सिर्फ़ एक *सामूहिक पागलपन* है जो *अखबारों* और *TV* के माध्यम से *भीड़* को बेचा जा रहा है...

लेकिन *सामूहिक पागलपन* के *क्षण* में आपकी *मालकियत छिन* सकती है...आप *महामारी* से *डरते* हैं तो आप भी *भीड़* का ही हिस्सा है

*ओशो* कहते है...tv पर खबरे सुनना या *अखबार* पढ़ना बंद करें

ऐसा कोई भी *विडियो* या *न्यूज़* मत देखिये जिससे आपके भीतर *डर* पैदा हो...

*महामारी* के बारे में बात करना *बंद* कर दीजिए, 

*डर* भी एक तरह का *आत्म-सम्मोहन* ही है। 

एक ही तरह के *विचार* को बार-बार *घोकने* से *शरीर* के भीतर *रासायनिक* बदलाव  होने लगता है और यह *रासायनिक* बदलाव कभी कभी इतना *जहरीला* हो सकता है कि आपकी *जान* भी ले ले;

*महामारी* के अलावा भी बहुत कुछ *दुनिया* में हो रहा है, उन पर *ध्यान* दीजिए;

*ध्यान-साधना* से *साधक* के चारों तरफ  एक *प्रोटेक्टिव Aura* बन जाता है, जो *बाहर* की *नकारात्मक उर्जा* को उसके भीतर *प्रवेश* नहीं करने देता है, 
अभी पूरी *दुनिया की उर्जा* *नाकारात्मक*  हो चुकी  है.......

ऐसे में आप कभी भी इस *ब्लैक-होल* में  गिर सकते हैं....ध्यान की *नाव* में बैठ कर हीं आप इस *झंझावात* से बच सकते हैं।

*शास्त्रों* का *अध्ययन* कीजिए, 
*साधू-संगत* कीजिए, और *साधना* कीजिए, *विद्वानों* से सीखें

*आहार* का भी *विशेष* ध्यान रखिए, *स्वच्छ* *जल* पीए,

*अंतिम बात:*
*धीरज* रखिए...*जल्द* ही सब कुछ *बदल* जाएगा.......

जब  तक *मौत* आ ही न जाए, तब तक उससे *डरने* की कोई ज़रूरत नहीं है और जो *अपरिहार्य* है उससे *डरने* का कोई *अर्थ* भी नहीं  है, 

*डर* एक  प्रकार की *मूढ़ता* है, अगर किसी *महामारी* से अभी नहीं भी मरे तो भी एक न एक दिन मरना ही होगा, और वो एक दिन कोई भी  दिन हो सकता है, इसलिए *विद्वानों* की तरह *जीयें*, *भीड़* की तरह  नहीं!!

☘☘ *ओशो* 🙏☘☘

Sunday, May 3, 2020

कवच

पूरे मोहल्ले में यह चर्चा थी कि गुड़िया को एड्स की बीमारी है। दरअसल उसका पति एक सरकारी मुलाज़िम था जो कि सिर्फ 25 वर्ष की आयु में ही अचानक किसी रहस्यमयी बीमारी का शिकार हो कर दुनिया छोड़ गया था। एड्स पर काम कर रही एक स्वयंसेवी संस्था के कार्यकर्ता बहुत समझा-बुझा कर गुडिया को एड्स की जाँच करवाने अपने साथ ले गए थे। गुड़िया को जो सरकारी पेंशन मिलती थी उसी से किसी तरह अपना जीवन यापन कर रही थी।
 जांच करने वाले डॉक्टर ने बड़ी हैरानी से पूछा कि रिपोर्ट में तो तुम्हें कोई बीमारी नहीं है, तुम तो बिलकुल स्वस्थ हो, फिर यह एड्स की अफवाह क्यों ? तुम लोगों को मुँह तोड़ जवाब क्यों नहीं देती ? हाथ जोड़ कर गुड़िया बोली,"डॉ० साहिब, आप से विनती है यह बात किसी से भी मत कहिएगा, एक जवान बेवा अपनी इज्जत खूंखार भेडियों से अभी तक इसी अफवाह के सहारे ही बचाती रही है, भगवान् के लिए मेरा यह कवच मुझ से मत छीनिए!"

Friday, March 13, 2020

आस्था का प्रमाण

          एक साधु महाराज श्री रामायण कथा सुना रहे थे। लोग आते और आनंद विभोर होकर जाते। साधु महाराज का नियम था, रोज कथा शुरू करने से पहले "आइए हनुमंत जी बिराजिए" कहकर हनुमान जी का आह्वान करते थे, फिर एक घण्टा प्रवचन करते थे।
          एक वकील साहब हर रोज कथा सुनने आते। वकील साहब के भक्तिभाव पर एक दिन तर्कशीलता हावी हो गई। उन्हें लगा कि महाराज रोज "आइए हनुमंत जी बिराजिए" कहते हैं, तो क्या हनुमान जी सचमुच आते होंगे ? अत: वकील साहब ने महात्मा जी से पूछ ही डाला- महाराजजी ! आप रामायण की कथा बहुत अच्छी कहते हैं, हमें बड़ा रस आता है, परन्तु आप जो गद्दी प्रतिदिन हनुमान जी को देते हैं उस पर क्या हनुमान जी सचमुच बिराजते हैं ?
          साधु महाराज ने कहा: हाँ यह मेरा व्यक्तिगत विश्वास है, कि रामकथा हो रही हो तो हनुमान जी अवश्य पधारते हैं। वकील ने कहा: महाराज ऐसे बात नहीं बनेगी, हनुमान जी यहाँ आते हैं इसका कोई सबूत दीजिए। आपको साबित करके दिखाना चाहिए, कि हनुमान जी आपकी कथा सुनने आते हैं। महाराज जी ने बहुत समझाया, कि भैया आस्था को किसी सबूत की कसौटी पर नहीं कसना चाहिए, यह तो भक्त और भगवान के बीच का प्रेमरस है, व्यक्तिगत श्रद्धा का विषय है। आप कहो तो मैं प्रवचन करना बन्द कर दूँ, या आप कथा में आना छोड़ दो। लेकिन वकील नहीं माना। कहता ही रहा, कि आप कई दिनों से दावा करते आ रहे हैं। यह बात और स्थानों पर भी कहते होंगे, इसलिए महाराज आपको तो साबित करना होगा, कि हनुमान जी कथा सुनने आते हैं।
           इस तरह दोनों के बीच वाद-विवाद होता रहा। मौखिक संघर्ष बढ़ता चला गया। हार कर साधु महाराज ने कहा- हनुमान जी हैं या नहीं उसका सबूत कल दिलाऊँगा। कल कथा शुरू हो तब प्रयोग करूँगा। जिस गद्दी पर मैं हनुमानजी को विराजित होने को कहता हूँ आप उस गद्दी को आज अपने घर ले जाना, कल अपने साथ उस गद्दी को लेकर आना और फिर मैं कल गद्दी यहाँ रखूँगा। कथा से पहले हनुमानजी को बुलाएँगे, फिर आप गद्दी ऊँची उठाना। यदि आपने गद्दी ऊँची कर दी तो समझना कि हनुमान जी नहीं हैं। वकील इस कसौटी के लिए तैयार हो गया।
          महाराज ने कहा: हम दोनों में से जो पराजित होगा वह क्या करेगा, इसका निर्णय भी कर लें ? यह तो सत्य की परीक्षा है। वकील ने कहा: मैं गद्दी ऊँची न कर सका तो वकालत छोड़कर आपसे दीक्षा ले लूँगा। आप पराजित हो गए तो क्या करोगे ? साधु ने कहा: मैं कथा वाचन छोड़कर आपके ऑफिस का चपरासी बन जाऊँगा।
        अगले दिन कथा पंडाल में भारी भीड़ हुई जो लोग रोजाना कथा सुनने नहीं आते थे, वे भी भक्ति, प्रेम और विश्वास की परीक्षा देखने आए, काफी भीड़ हो गई, पंडाल भर गया। श्रद्धा और विश्वास का प्रश्न जो था। साधु महाराज और वकील साहब कथा पंडाल में पधारे। गद्दी रखी गई। महात्मा जी ने सजल नेत्रों से मंगलाचरण किया और फिर बोले: "आइए हनुमंत जी बिराजिए" ऐसा बोलते ही साधु महाराज के नेत्र सजल हो उठे। मन ही मन साधु बोले- प्रभु ! आज मेरा प्रश्न नहीं, बल्कि रघुकुल रीति की परम्परा का सवाल है। मैं तो एक साधारण जन हूँ। मेरी भक्ति और आस्था की लाज रखना। फिर वकील साहब को निमंत्रण दिया गया, आइए गद्दी ऊँची कीजिए। 
           लोगों की आँखे जम गईं। वकील साहब खड़े हुए। उन्होंने गद्दी उठाने के लिए हाथ बढ़ाया पर गद्दी को स्पर्श भी न कर सके। जो भी कारण रहा, उन्होंने तीन बार हाथ बढ़ाया, किन्तु तीनों बार असफल रहे। महात्मा जी देख रहे थे, गद्दी को पकड़ना तो दूर वकील साहब गद्दी को छू भी न सके। तीनों बार वकील साहब पसीने से तर-बतर हो गए। वकील साहब साधु महाराज के चरणों में गिर पड़े और बोले, महाराज गद्दी उठाना तो दूर, मुझे नहीं मालूम कि क्यों मेरा हाथ भी गद्दी तक नहीं पहुँच पा रहा है। अत: मैं अपनी हार स्वीकार करता हूँ।
          कहते है कि श्रद्धा और भक्ति के साथ की गई आराधना में बहुत शक्ति होती है। मानो तो देव नहीं तो पत्थर। प्रभु की मूर्ति तो पाषाण की ही होती है, लेकिन भक्त के भाव से उसमें प्राण प्रतिष्ठा होती है, तो प्रभु बिराजते है।
                          ----------:::×:::--------

Saturday, February 22, 2020

બેટા ...હું લપસી ગયો છું ...પણ પડ્યો નથી....

ગાડી ને વરસાદી વાતવરણ મા પાર્કિંગ માંથી મેં બહાર કાઢી...

અમારા *વર્કશોપ* *સુપરવાઇઝર* 
 *દવે* સાહેબ ને...જેને હું પ્રેમ થી દવે કાકા કેહતો

ધીમા પગે...વરસાદ મા તેમની જાત ને બચવતા તે ચાલતા હતા...

મેં કાર ને બ્રેક મારી.. દવે સાહેબ ને કિધુ..કાકા...ગાડી મા બેસી જાવ...તમે કહેશો ત્યાં ઉતારી દઇશ...

કાર..રસ્તા વચ્ચે દોડતી હતી...

મેં કીધું...કાકા..ખરાબ ના લગાડતા.. પણ આપ ની ઉમ્મર
હવે આરામ કરવા ની નથી..?

કાકા ધીરૂ પણ માર્મિક કાર ની બારી બહાર વરસાદ જોતા..ધીરે થી બોલ્યા....

બેટા *જરૂરિયાત* વ્યક્તી ને કા તો *લાચાર* બનાવે છે..
અથવા.. *આત્મનિર્ભર* થતા શીખવાડે છે...
જીવવું છે..તો રડી..રડી...યાચના..અને યાતના *ભોગવી* ને જીવવું તેના કરતાં *સંઘર્ષ* કરી લેવો...

મતલબ હું સમજ્યો નહીં...દવે કાકા આપની ઉમ્મર...?

બેટા.... *મજબૂરી* માણસ ને વગર *ઉમ્મરે* *ઘરડું* કરી નાખે છે...
પણ હું *ઉમ્મર* લાયક હોવા છતાં... *યુવાન* જેવું *કામ* કરૂં છું...
કારણ.. કે *લાચારી* સામે ફકત તમારી *લાયકાત* જ *લડી* શકે છે...અથવા તમારૂ *મનોબળ* 
અને જે મારી પાસે છે..
મારે *72* પુરા થયા...દવે સાહેબ મીઠું સ્માઈલ સાથે બોલ્યા...

મારાથી બોલાઈ ગયું સાહેબ...દીકરા પાસે અમેરિકા જતા રહો....આ ઉંમરે શાંતી થી જીવો..

દવે સાહેબ થોડા ગંભીર થઈ બોલ્યા...

કચ્છી ભાષાના સર્વકાલીન ઉત્તમ કવિ તેજપાલનું એક મુક્તક યાદ આવ્યું બેટા....

સંસાર સભર સ્વારથી કેંકે ડિને ડોસ ?
હલેં તેં સુંધે હકલ પેઓ, છડે હરખ ને સોસ...

અર્થ : *સંસાર* *સ્વાર્થ* થી *ભરપૂર* છે. તુ કોને *દોષ* આપીશ ? જ્યાં સુધી ચાલે ત્યાં સુધી હર્ષ અને શોક છોડીને ચલાવ્યે રાખ....

કાકા ની *હસ્તી* આંખો પાછળ *દુઃખ* નો દરિયો *છલકાતો* હતો...

બેટા.. મારે પણ ફેક્ટરી હતી...
 *ભૂલ* માત્ર એટલી કરી...મેં મારા
પુત્ર ને ખોટા સમયે...વહીવટ કરવા સોંપી..હું નિવૃત થઈ ગયો
યુવાની ની ના થનગનાટ મા ખોટા નિર્ણયો લેવાથી...એક દિવસ.. ફેક્ટરી ને મારી જાણ બહાર વેચી રૂપિયા રોકડા કરી..અમેરિકા ભેગો થઈ ગયો....

એકાદ વર્ષ પછી અમેરિકા થી ફોન આવ્યો...પપ્પા ઘર કેમ ચલાવો છો ? દર મહિને જરૂર હોય તો રૂપિયા મોકલું..?

મેં કીધું 
બેટા ...હું *લપસી* ગયો છું ...પણ *પડ્યો* નથી..
તને એક વર્ષે તારા બાપા ની યાદ આવી... એક વર્ષ તારો બાપ મંદિરે નથી બેસ્યો સમજ્યો...
ફોન મુક..શરમ જેવું હોય તો બીજી વખત ફોન ના કરતો...

તારા કાકી એ મારી સામે *દયા* ની *નજરે* જોયું...

મેં..તારી કાકી ને કિધુ..
અરે ગાંડી મુંઝાાય છે શા માટે ?

લૂંટવા વાળા તો ભલે લૂંટી જાય..
એને તો ફક્ત બે હાથ જ છે..
દેવા વાળો મારો મહાદેવ છે...
જેને હજારો હાથ છે...

દવે કાકા...તમને તમારા પુત્ર તરફ કોઈ *ફરિયાદ* .. ખરી ?

જો બેટા... બધા *લેણાદેવી* ના *ખેલ* છે..મારી પાસે *પૂર્વજન્મ* નું  *કંઈક* માંગતો હશે...તો...લઇ ગયો..
કેમ લઈ ગયો તેનું દુઃખ નથી... આમે ...તે *હક્કદાર* અને મારો *વારસદાર* હતો...પણ લેવા ની રીત , *સમય* અને *વર્તન* યોગ્ય ન હતું....

બસ બેટા ગાડી આ મહાદેવ ના મંદિર પાસે ઉભી રાખ...મહાદેવ ને સવાર..અને સાંજે..મળ્યા વગર ઘરે નથી જતો...

હવે...બોલતા *સંબધો* સાથે *નફરત* થઈ ગઈ છે...તેના કરતાં વગર બોલે કામ કરતો..મારો મહાદેવ સારો...

દવે..કાકા ને ગાડી બંધ કરી..મેં
હાથ પકડી..મંદિર સુધી લઇ જવા *પ્રયતન* કર્યો..
પણ દવે કાકા બોલ્યા.. બેટા... હું ઘણા વખત થી કોઈ નો *હાથ* પકડતો નથી....
કારણ કે .... *પકડેલો* *હાથ* કોઈ પણ *વ્યક્તી* ...વગર કારણે જયારે *છોડી* દે છે..એ *સહન* નથી થતું....
તેના કરતાં *ધીરૂ* અને *સંભાળી* ને પણ આપણા *પગે* ચાલવું...

એ ફરીથી હસ્તા..હસ્તા બોલ્યા
બેટા.. હું *લપસી* ગયો છું ..પણ હજુ *પડ્યો* નથી....
મારો....મહાદેવ છે ને...નહીં પડવા દે...

ચલ બેટા...જય મહાદેવ 

પ્રભુ ઉપર અતૂટ વિશ્વાસ.અને પોતાની *મક્કમ* પણ *ધીરી* ગતિ થી ચાલતા.. દવે કાકા ને હું જોઈ રહ્યો....

મિત્રો....
 *દુઃખ* એ *અંદર* ની વાત છે..સમાજ ને તેનાથી *મતલબ* નથી....સમાજ ને હંમેશા *હસ્તો* ચેહરો ગમે છે.
ગમે તેટલું *દુઃખ* પડે...અંદર થી *તૂટી* જશો તો ચાલશે....પણ બહાર થી તો *વાઘ* જેવું *વ્યક્તીત્વ* રાખજો.
સમાજ *નીચોવી* નાખવા બેઠો છે....

 *તૂટેલી* ભગવાન ની *મૂર્તિ* ને તો લોકો ઘરમા પણ *નથી* રાખતા..તો આપણી તો શું *હેસિયત* છે....

 *રડવું* હોય તો *ભગવાન* સામે રડી.લેજો..બધા ના *ખભા* એટલા *મજબૂત* નથી હોતા...
જેમ *સિંહણ* નું *દૂધ* ઝીલવા *સુવર્ણ* નું  પાત્ર જોઇએ.. તેમ... *આપણી* *આંખ* *ના* *આંસુ* *ઝીલવા* .. *સજ્જન* *માણસ* *નો* *ખભો* *જોઇએ* .....
સમાજ અને કુટુંબ મા મંથરા..અને શકુની મામા ઘણા ફરે છે....ત્યા હળવા થવા ની કોશિશ ના કરતા...

મેં ગાડી ચાલુ કરી....થોડો *ફ્રેશ* થવા
 *FM* રેડિયો ચાલુ કર્યો....
 *કિશોરકુમાર* નું ગીત......વાગતું હતું..

चिंगारी कोई भड़के, तो सावन उसे बुझाये 
सावन जो अगन लगाये, उसे कौन बुझाये 
पतझड जो बाग़ उजाड़े, वो बाग़ बहार खिलाये 
जो बाग़ बहार में उजड़े, उसे कौन खिलाये..

આપણી *વ્યક્તિ* જ જીંદગી *ઉજ્જડ* કરે તો..
 *દોષ* કોને દેવો....

એક *પિતા* એ તેના પુત્ર ના નામે *દોલત* લખતા પેહલા કીધેલા શબ્દો..યાદ આવ્યા..
 *બેટા* ....હું તારા ઉપર *આંધળો* *વિશ્વાશ* મુકું છું
 *જવાબદારી* તારી છે...મને *આંધળો* સાબિત *ન* કરવાની..

 *જીંદગી* માં બધી *ચાલ* ..ચાલજો..પણ કોઈ નો *વિશ્વાશ* 
 *તોડતા* નહીં....કારણ કે એ *વ્યક્તિ* માટે તો તમારા ઉપર મુકેલ *વિશ્વાશ* જ તેની *મરણ* *મૂડી* હોય છે....
અને એ ગુમાવ્યા પછી ...
 મોત ની રાહ જોવા સિવાય...તેની પાસે કશુ બચતુ નથી....

Sunday, January 5, 2020

हनुमानजी अमर हैं तो अब वे कहां हैं ?

प्राय: लोगों के मन में यह सवाल रहता है कि ‘हनुमानजी अमर हैं तो अब वे कहां हैं ?’ यहां इस पोस्ट में यही बताया गया है कि हनुमानजी किसके आशीर्वाद से चिरंजीवी हुए और अब वे कहां हैं ?

श्रीराम के अनन्य सेवक हनुमानजी अमर, चिरंजीवी और सनातन हैं । उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान माता सीता और प्रभु श्रीराम दोनों ने ही दिया है । माता सीता हनुमानजी को आशीष देते हुए कहती हैं—

अजर अमर गुननिधि सुत होहू । 
करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ॥
करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना । 
निर्भर प्रेम मगन हनुमाना ।। (श्रीरामचरितमानस, सुन्दरकाण्ड)

अर्थात्—हे पुत्र ! तुम अजर (बुढ़ापे से रहित), अमर और गुणों के खजाने होओ । श्रीरघुनाथजी तुम पर बहुत कृपा करें । ‘प्रभु  कृपा करें’ ऐसा कानों से सुनते ही हनुमान जी पूर्ण प्रेम में मग्न हो गए ।
भगवान श्रीरामजी जब अपनी मानव लीला को संवरण कर साकेत जाने लगे, उस समय उन्होंने हनुमान को अपने पास बुलाकर कहा—

‘हे हनुमान ! अब मैं अपने लोक को प्रस्थान कर रहा हूँ । देवी सीता तुम्हें अमरत्व का वर पहले ही दे चुकी हैं, इसलिए अब तुम भूलोक में रहकर शान्ति, प्रेम, ज्ञान तथा भक्ति का प्रचार करो । मेरे वियोग का दु:ख तुम्हें नहीं होना चाहिए, क्योंकि मैं अदृश्य रूप में सदैव तुम्हारे पास ही बना रहूंगा  तथा तुम्हारा हृदय ही मेरा निवास-स्थान होगा । द्वापर युग में जब मैं कृष्ण के रूप में पुन: अवतार धारण करुंगा तब मेरी तुमसे फिर भेंट होगी । जहां भी मेरी कथा तथा कीर्तन हो तुम वहां निरन्तर उपस्थित रहना तथा मेरे भक्तों की सहायता करते रहना ।

 तुम्हें संसार में कभी कोई कष्ट नहीं होगा, इसके अतिरिक्त अपने भक्तों का कष्ट दूर करने की सामर्थ्य भी तुम्हें प्राप्त होगी । जिस स्थान पर मेरा मन्दिर बनेगा और जहां मेरी पूजा होगी, वहां तुम्हारी मूर्ति भी रहेगी और लोग तुम्हारी पूजा भी करेंगे । 

वास्तव में तुम रुद्र के अवतार होने के कारण हम-तुम अभिन्न हैं । सेवक-स्वामी के अनन्य प्रेम-भाव को विश्व में उजागर करने के लिए ही हमने अब तक की सभी लीलाएं की हैं । जो लोग भक्ति और श्रद्धापूर्वक मेरा तथा तुम्हारा स्मरण करेंगे, वे समस्त संकटों से छूट कर मनोवांछित फल प्राप्त करते रहेंगे । लोक में जब तक मेरी कथा रहेगी, तब तक तुम्हारी सुकीर्ति भी जीवित बनी रहेगी । तुमने मेरे पर जो-जो उपकार किए हैं, उनका बदला मैं कभी नहीं चुका सकता ।’

इतना कह कर श्रीरामजी ने अपनी मानवी लीला संवरण कर ली । हनुमानजी नेत्रों में अश्रु भरकर श्रीसीताराम को बार-बार प्रणाम कर तपस्या के लिए हिमालय चले गए ।

हनुमानजी का इन स्थानों पर है निवास!!!!!

▪️रामकथा में हनुमानजी का निवास—श्रीरामजी के साकेत धाम प्रस्थान के बाद हनुमानजी अपने प्रभु के आदेशानुसार उन्हीं के गुणों का कीर्तन एवं श्रवण करते हुए भूतल पर भ्रमण करने लगे । हनुमानजी का राम-नाममय विग्रह है । उनके रोम-रोम में राम-नाम अंकित है। उनके वस्त्र, आभूषण, आयुध–सब राम-नाम से बने हैं ।  उनके भीतर-बाहर सर्वत्र आराध्य श्रीराम हैं। उनका रोम-रोम श्रीराम के अनुराग से रंजित है। जहां भी रामकथा या रामनाम का कीर्तन होता है, वहां वे गुप्त रूप से सबसे पहले पहुंच जाते हैं । दोनों हाथ जोड़कर सिर से लगाये सबसे अंत तक वहां वे खड़े ही रहते हैं । प्रेम के कारण उनके नेत्रों से बराबर आंसू झरते रहते हैं ।

सुनहिं पवनसुत सर्बदा आँखिन अंबु बहाइ । 
छकत रामपद-प्रेम महँ सकल सुरत बिसराइ ।। 
अरु जहँ जहँ रघुपति-कथा सादर बाँचत कोइ । 
तहँ तहँ धरि सिर अंजली सुनत पुलक तन सोइ ।। 
(महाराजा रघुराजसिंहजी द्वारा रचित रामरसिकावली, त्रेतायुगखण्ड, प्रथम अध्याय)

▪️किम्पुरुषवर्ष में हनुमानजी का निवास—किम्पुरुषवर्ष हेमकूट पर्वत के दक्षिण में स्थित है । हेमकूट पर्वत हिमालय में तपस्या करने का वह स्थान है, जहां शीघ्र ही सिद्धि मिल जाती है । यह गंधर्व और किन्नरों का निवासस्थान है ।

(देवताओं की एक जाति का नाम गन्धर्व है । इनका एक अलग लोक होता है जहां ये निवास करते हैं ।
ये देवताओं के गायक, नृत्यक और स्तुति पढ़ने वाले होते हैं । गन्धर्वों में तुम्बरु और हाहा-हूहू बहुत प्रसिद्ध हैं । देवर्षि नारद ने गन्धर्वों से ही संगीत सीखा था और इसी कारण वे लोक में हरिगुणगान करते हुए भगवान विष्णु को अति प्रिय हुए ।)

किम्पुरुषवर्ष में हनुमानजी तुम्बुरु आदि गन्धर्वों द्वारा मधुर-मधुर बाजे-बजाते हुए गायी जाने वाली श्रीराम-कथा का श्रवण करते हैं, श्रीराम का मन्त्र जपते और स्तुति करते रहते हैं, उनके नेत्रों से अश्रु झरते रहते हैं ।

गर्गसंहिता के विश्वजित्-खण्ड में लिखा है कि किम्पुरुषवर्ष में श्रीरामचन्द्रजी सीताजी के साथ विराजमान हैं । हनुमानजी संगीत के महारथी आर्ष्टिषेण के साथ वहां उनके दर्शन के लिए आया करते हैं ।

अध्यात्म रामायण में भी हनुमानजी का तपस्या के लिए हिमालय (किम्पुरुषवर्ष) में जाकर निवास करने का उल्लेख मिलता है ।

नारदजी ने भी किम्पुरुषवर्ष में हनुमानजी को वन की सामग्री से श्रीराम की मूर्ति का पूजन करते हुए और गंधर्वों के मुख से रामायण का गान सुनते हुए देखा था । हनुमानजी ने नारदजी से कहा—‘मैं श्रीराम की मूर्ति का पूजन दर्शन करते हुए यहां निवास करता हू्ँ ।’

▪️अयोध्या में निवास—अयोध्या श्रीराम की पुरी है । हनुमानजी इस पुरी में नित्य निवास करके अपने आराध्य श्रीराम की सेवा करते हैं । अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी हनुमानजी की सेवा की प्रतीक है।

बृहद् ब्रह्मसंहिता के अनुसार श्रीराम के अनन्य सेवक महावीर हनुमान साकेत धाम (अयोध्या) की ईशान दिशा में रक्षक के रूप में सदा विराजमान रहते हैं ।

▪️महाभारत के युद्ध में भी हनुमानजी उपस्थित रहे। वे अर्जुन के रथ की ध्वजा पर बैठे रहते थे । उनके बैठे रहने से अर्जुन के रथ को कोई पीछे नहीं हटा सकता था । कई बार उन्होंने अर्जुन की रक्षा भी की। एक बार हनुमानजी ने भीम, अर्जुन और गरुड़जी को अभिमान करने से बचाया था।

हनुमानजी जीवन्मुक्त हैं, सर्वलोकगामी हैं, वे अपनी इच्छानुसार कभी भी जाकर अपने भक्तों को दर्शन देते रहते है।