Here is a compilation of some really good collective works and my write-ups. In the current time of information technology and social platforms its easy to get access of such works but I post only those which are really damn good.
Sunday, December 13, 2020
બાકી છે....
Friday, December 4, 2020
वेद वाणी 2-18-8
Monday, November 2, 2020
व्हाट्सएप ग्रुप
कार से उतरकर भागते हुए हॉस्पिटल में पहुंचे नोजवान बिजनेस मैन ने पूछा..
“डॉक्टर, अब कैसी हैं माँ?“ हाँफते हुए उसने पूछा।
“अब ठीक हैं। माइनर सा स्ट्रोक था। ये बुजुर्ग लोग उन्हें सही समय पर लें आये, वरना कुछ बुरा भी हो सकता था।"
डॉ ने पीछे बेंच पर बैठे दो बुजुर्गों की तरफ इशारा कर के जवाब दिया।
“रिसेप्शन से फॉर्म इत्यादि की फार्मैलिटी करनी है अब आपको।” डॉ ने जारी रखा।
“थैंक यू डॉ. साहेब, वो सब काम मेरी सेक्रेटरी कर रही हैं“ अब वो रिलैक्स था।
फिर वो उन बुजुर्गों की तरफ मुड़ा.. “थैंक्स अंकल, पर मैनें आप दोनों को नहीं पहचाना।“
“सही कह रहे हो बेटा, तुम नहीं पहचानोगे क्योंकि हम तुम्हारी माँ के वाट्सअप फ्रेंड हैं ।”एक ने बोला।
“क्या, वाट्सअप फ्रेंड ?” चिंता छोड़ , उसे अब, अचानक से अपनी माँ पर गुस्सा आया।
“महीने में एक दिन हम सब किसी पार्क में मिलने का भी प्रोग्राम बनाते हैं।”
“जिस किसी दिन कोई भी मेम्बर मैसेज नहीं भेजता है तो उसी दिन उससे लिंक लोगों द्वारा, उसके घर पर, उसके हाल चाल का पता लगाया जाता है।”
आज सुबह तुम्हारी माँ का मैसेज न आने पर हम 2 लोग उनके घर पहुंच गए..।
“माँ से अंतिम बार तुमने कब बात की थी बेटा? क्या तुम्हें याद है ?” एक ने पूछा।
बिज़नेस में उलझा, तीस मिनट की दूरी पर बने माँ के घर जाने का समय निकालना कितना मुश्किल बना लिया था खुद उसने।
हाँ पिछली दीपावली को ही तो मिला था वह उनसे गिफ्ट देने के नाम पर।
उसके सर पर हाथ फेर कर दोनों बुज़ुर्ग अस्पताल से बाहर की ओर निकल पड़े। नवयुवक एकटक उनको जाते हुए देखता ही रह गया।
Tuesday, October 6, 2020
सहारे, सरक जाया करते हैं...
अपनी ख़ुशी टाँगने को, तुम कंधे क्यूँ तलाशती हो..?
कमज़ोर हो, ये वहम क्यों पालती हो..??
ख़ुश रहो क़ि ये काजल, तुम्हारी आँखों मे आकर सँवर जाता हैं..!
ख़ुश रहो क़ि कालिख़ को, तुम निखार देती हों..!!
ख़ुश रहो क़ि तुम्हारा माथा, बिंदिया की ख़ुशकिस्मती हैं..!
ख़ुश रहो क़ि तुम्हारा रोम-रोम, बेशक़ीमती हैं..!!
ख़ुश रहो क़ि तुम न होतीं, तो क्या-क्या न होता..?
न मकानों के घर हुए होते, न आसरा होता..!!
न रसोइयों से खुशबुएँ ममता की, उड़ रही होतीं..!
न त्योहारों पर महफिलें, सज रही होतीं..!!
ख़ुश रहो क़ि तुम बिन, कुछ नहीं हैं..!
तुमसे ये आसमाँ, दिलक़श और ये ज़मीं हसीं हैं..!!
ख़ुश रहो क़ि रब ने तुम्हें पैदा ही, ख़ुद मुख़्तार किया..!
फ़िर क्यों किसी और को तुमने, अपनी मुस्कानों का हक़दार किया..!!
ख़ुश रहो जान लो क़ि, तुम क्या हों..?
चांद सूरज हरियाली, हवा हो..!!
खुशियाँ देती हो, खुशियाँ पा भी लो..!
कभी बेबात, गुनगुना भी लों..!!
अपनी मुस्कुराहटों के फूलों को,अपने संघर्ष की मिट्टी में खिलने दो..!
अपने पंखों की ताकत को, नया आसमान मिलने दो..!!
और हाँ मत ढूँढो कंधे..!
क़ि सहारे, सरक जाया करते हैं..!!
😊 सभी महिलाओं को समर्पित....
Monday, October 5, 2020
''क़मर” और “कमर” में फ़र्क़
मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र…
कुछ बरस पहले ये गाना ख़ूब हिट हुआ और अभी भी ख़ासा पसंद किया जाता है :
“मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया”
जब ये गाना आया तो पहले-पहले तो बहुत से लोग इसको “रक़्स-ए-कमर” मान कर चलने/समझने लगे। यहाँ “रक़्स” का मतलब है “डांस/नृत्य” और “कमर” का मतलब कमर/waist। क्योंकि कमर और डांस एक दूसरे से जुड़े हैं इसीलिए लोगों को सही भी लगने लगा। कुछ लोगों को ये “लचके कमर/कमरिया लचके” टाइप लगा !
ये ग़लतफ़हमी बुनयादी तौर पर “क़मर” और “कमर” में फ़र्क़ न करने की वजह से हुआ।
“क़मर” और ”कमर” का फ़र्क़
कमर का मतलब हम ऊपर बयान कर चुके हैं। जबकि “क़मर” का मतलब है “चाँद”। गाने में भी इसी सेंस में इस्तेमाल हुआ है। ये अरबी का लफ़्ज़ है जो कि उर्दू में भी इस्तेमाल भी होता है। इसीलिए “क़मर” लोगों का नाम भी होता है, ठीक उसी तरह से जैसे “महताब”। महताब फ़ारसी का लफ़्ज़ है। महताब का मतलब “चाँद” होता है और “आफ़ताब” का सूरज। आफ़ताब भी फ़ारसी ज़बान से उर्दू में आया है। अरबी में सूरज को “शम्स” कहते हैं ।
“रश्के-क़मर” का मतलब जानने से पहले हम एक और शब्द का मतलब जान लें तो अच्छा होगा। वो है, “रश्क”। इसका अर्थ होता है “ईर्ष्या, जलन”।
जानकारों का कहना है कि “रश्के-क़मर” दरअसल रश्क और क़मर से मिलकर बना है, जिसका मतलब है : चाँद जैसा ख़ूबसूरत, बेहद हसीन, बहुत ख़ूबसूरत या फिर ऐसा हसीन कि चाँद को भी रश्क आये (जलन हो)। जैसे कहते है : “आपको देखकर रश्क होता है”।
इस गाने में भी “रश्के-क़मर” का इस्तेमाल इसी सेंस में हुआ है।
हाँ, एक और बात। वो ये कि “रश्क” और “हसद” में फ़र्क़ होता है। बावजूद इसके कि दोनों का शाब्दिक अर्थ (literal meaning) “जलन” होता है।
“रश्क” और “हसद” का फ़र्क़
उर्दू में “ईर्ष्या, जलन” के अर्थ में दो शब्दों का इस्तेमाल होता हैं, “रश्क” और “हसद”। दोनों का शाब्दिक अर्थ : डाह, जलन, ईर्ष्या, jealousy, envy, malice होता है ।
अलबत्ता दोनों में बारीक लेकिन बहुत अहम फ़र्क़ है। वो फ़र्क़ है दोनों अल्फ़ाज़ के इस्तेमाल का है।
अगर आसान लफ़्ज़ों में कहा जाये तो ये कह सकते हैं कि “रश्क” का इस्तेमाल positive सेंस में होता है और “हसद” का इस्तेमाल negative सेंस में होता है।
जैसे “रूही कंजाही” का ये शेर देखें :
“कि रश्क आने लगा अपनी बे-कमाली पर
कमाल ऐसे भी अहल-ए-कमाल के देखे”
यहाँ पर शायर कहना चाह रहा है कि “अहल-ए-कमाल” (enlightened/प्रबुद्ध लोगों) का कमाल देखकर अपनी बे-कमाली (अकुशलता) पर रश्क आने लगा।
वहीं “ख़लील तनवीर” का ये शेर देखिये :
“हसद की आग थी और दाग़ दाग़ सीना था
दिलों से धुल न सका वो ग़ुबार-ए-कीना था”
ज़ाहिर है यहाँ “हसद” लफ्ज़ का negative बात बताने के लिए हुआ है। “हसद की आग” वैसा ही phrase है जैसे कहते हैं “बदले की आग”। हिंदी में “हसद” का पर्यायवाची शब्द “डाह” हो सकता है।
चलते चलते : अगर मज़ाक़ करने की इजाज़त हो तो कहना चाहूंगा, आप मुझ पर “रश्क” तो कर सकते हैं लेकिन मुझसे “हसद” करना अच्छी बात नहीं ।
"क़वायद तेज़” के मायने के बहाने उर्दू भाषा के पेच-ओ-ख़म को जानने की कोशिश
अक्सर सुनने और पढ़ने में आता है : “बीपीसीएल को बेचने की कवायद तेज”, “राम मंदिर निर्माण की कवायद तेज, PM Modi करेंगे भूमि पूजन!”,”महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर कवायद तेज हो गयी है” या “कोरोना के फैलाव को देख बिस्तरों की संख्या बढ़ाने की कवायद”
जहाँ तक मुझे पता/लगता है ऊपर के वाक्यों में “क़वायद” शब्द का इस्तेमाल “प्रक्रिया” (process) के सेंस में हुआ है जबकि उर्दू में “क़वायद” का मतलब होता है : नियम या नियमावली (Rules), जो कि “क़ायदा” का बहुवचन है। ये शब्द उर्दू में अरबी से आया है। जैसे उर्दू में व्याकरण की किताब को “उर्दू का क़ायदा” कहते हैं।
वैसे क़ायदा से याद आया कि हमारे कुछ साथी अक्सर मज़ाक़ में कहते हैं कि हमारे “खोजी पत्रकारों” का ये हाल है कि अगर किसी मुसलमान के घर से “क़ायदा बग़दादी” बरामद हो जाये तो उसका संबंध “अल-क़ायदा” और “अबुबक्र अल-बगदादी” से जोड़ देंगे।
दरअसल,”क़ायदा बग़दादी/बग़दादी क़ायदा” अरबी सीखने की बुनयादी किताबों में से है। बचपन में क़ुरान पढ़ने से पहले हमने “क़ायदा बग़दादी/बग़दादी क़ायदा” ही पढ़ी थी।
वापस लौटते हैं क़वायद पर। उर्दू में “प्रक्रिया” के लिए जो शब्द है वो है “अमल”। ये भी उर्दू में अरबी से आया है।
जैसे उर्दू में लिखते हैं : “कोरोना वायरस के टेस्टों/टेस्टिंग का अमल तेज़” या “महाराष्ट्र में हुकूमत साज़ी का अमल तेज़”
कुछ लोग ये भी कह सकते हैं क्योंकि “क़वायद” का एक मतलब “परेड”/ “अभ्यास” (military drill) भी होता है इसीलिये प्रक्रिया के लिये “क़वायद” लिखना/बोलना मुनासिब है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि “सरकार बनाने का “परेड”/ “अभ्यास” तेज” क्यों नहीं बोलते/लिखते?
“शफ़्फ़ाफ़” और “सफ़्फ़ाक” फ़र्क़
ये दो ऐसे अल्फ़ाज़ हैं, जिसके बारे में कह सकते हैं : “सावधानी हटी, दुर्घटना घटी”
वो इसलिए क्योंकि “शफ़्फ़ाफ़” और “सफ़्फ़ाक” में बहुत फ़र्क़ है और ध्यान न देने पर अर्थ का अनर्थ हो सकता है।
शफ़्फ़ाफ़” का मतलब होता है “साफ़ सुथरा”, “निर्मल”, “पारदर्शी” या transparent, clear, clean.
आपने लोगों को “साफ़-शफ़्फ़ाफ़” बोलते सुना होगा, वो भी इसी से सेंस में है।
“अम्मार यासिर” का ये शेर देखें :
“चश्मे के पानी जैसा शफ़्फ़ाफ़ हूँ मैं
दाग़ कोई दिल में है न पेशानी पर”
ध्यान रहे यहाँ चश्मे का मतलब पहने वाला चश्मा नहीं बल्कि झरना/fountain है।
जबकि “सफ़्फ़ाक” का अर्थ होता है : निष्ठुर, अत्याचारी, cruel, tyrant.
जैसे “रज़ा मौरान्वी” का ये शेर देखें :
“ज़िंदगी अब इस क़दर सफ़्फ़ाक हो जाएगी क्या
भूख ही मज़दूर की ख़ुराक हो जाएगी क्या”
इसी तरह निष्ठुर व्यक्ति के लिए “सफ़्फ़ाक़ दिल इंसान” लफ्ज़ का इस्तेमाल करते हैं। या फिर “अत्याचार की पराकाष्ठा” के लिए “सफ़्फ़ाकियत की इंतिहा” लिखते/बोलते हैं।
मेरे पास है ...
لكن
تذكر ان ما تصنعه الْيوم لنفسك ستكسبه في الغد سالبا او موجبا
لكن تذكر أيضا ان الحياة عبر
قال تعالى
فَاعْتَبِرُوا يَا أُولِي الْأَبْصَارِ
وايضاً قال
فَاتَّقُوا اللَّهَ يَا أُولِي الْأَلْبَابِ الَّذِينَ آمَنُوا
A rich man looked through his window and saw a poor man picking something from his dustbin ... He said, Thank GOD I'm not poor;
نظر أحد الأغنياء من خلال نافِذتِه فرأى فقيراً يلتقط شيئاً ما من سلَّة القُمامَة فَحَمَد الله وشَكَرَهُ أنه ليس فقيراً؛
The poor man looked around and saw a naked man misbehaving on the street ... He said, Thank GOD I'm not mad;
نظر الرجل المسكين حوله وشاهد رجُلاً عارياً يُسِيء السلوك في الشارع وقال الحَمْدُ لله أني لسْتُ بِمَجْنُون؛
The mad man looked ahead and saw an ambulance carrying a patient ... He said, Thank GOD am not sick;
نظر الرجل المجنون إلى الأمام ورأى سيارة إسعاف تَقِلُ مَرِيضًا وقال الحمد لله أَنِي لسْتُ مَرِيضًا؛
Then a sick person in hospital saw a trolley taking a dead body to the mortuary ... He said, Thank GOD I'm not dead;
ومِن ثُم رأى مَرِيضٌ في المُستشْفَى عربةً تَنْقِل جثةً إلى المشرحة فَحَمَد الله وشَكَرَهُ أنه لا يزال حيٌ يُرْزَق؛
Only a dead person cannot thank God;
المَوتَى هُمْ وَحْدَهُم الذين لا يَستطِيعوُن الكلام وشُكْر الله؛
Why don't you thank GOD today for all your blessings and for the gift of life ... for another beautiful day;
فبما أنك لازلت حياً تُرْزَق فلماذا لا تبادر بِشُكْر المَوْلَى عَزَّ وجَلْ على مَنِّهِ وكَرَمهِ وفَضْلِهِ وعلى هبة الحياة ومَنْحِك يوم آخَر جَمِيل؛
What is LIFE?
To understand life better, you have to go to 3 locations:
ماهي الحياة؟
لكي تفهم معنى الحياة، بصورةٍ أفضل، عليك بالتوجه إلى ٣ أماكن:
1. Hospital
2. Prison
3. Cemetery
١. المستشفى
٢. السجن
*٣. المقبرة
At the Hospital, you will understand that nothing is more beautiful than HEALTH.
في المستشفى سَتُدْرِك أن لا شيئ يضاهي نِعْمَة الصِحَة والعافِيَة
In the Prison, you'll see that FREEDOM is the most precious thing
وفي السجن سَتَعْلَم أن الحرية لا تُقَدَر بِثَمَن
At the Cemetery, you will realize that life is worth nothing. The ground that we walk today will be our roof tomorrow.
في المَقبَرَة، سَتُدْرِك أن الحياة لا تُساوِي شيئاً وأن الأرض التي نمْشِى عليها اليوم وستكون السقف الذِي نلتَحِف به غدا؛
Sad Truth* : We all come with Nothing and we will go with Nothing ... Let us, therefore, remain humble and be thankful & grateful to God at all times for everything.
Could you please share this with someone else, and let them know that God loves them
ये आलम - ग़ज़ल
ये आलम शौक़ का देखा न जाए
वो बुत है या ख़ुदा देखा न जाए
ये किन नज़रों से तू ने आज देखा
कि तेरा देखना देखा न जाए
हमेशा के लिए मुझ से बिछड़ जा
ये मंज़र बार-हा देखा न जाए
ग़लत है जो सुना पर आज़मा कर
तुझे ऐ बेवफ़ा देखा न जाए
ये महरूमी नहीं पास-ए-वफ़ा है
कोई तेरे सिवा देखा न जाए
यही तो आश्ना बनते हैं आख़िर
कोई ना-आश्ना देखा न जाए
ये मेरे साथ कैसी रौशनी है
कि मुझ से रास्ता देखा न जाए
'फ़राज़' अपने सिवा है कौन तेरा
तुझे तुझ से जुदा देखा न जाए
महरूम” और “मरहूम” में फ़र्क़
महरूम का मतलब है : “वंचित” या कोई चीज़ न मिल पाना।
मरहूम का अर्थ है : “दिवगंत” या जो अब इस दुनिया में न हों। उदहारण : “मरहूम” रफ़ी साहब की आवाज़ का कोई सानी नहीं था/है। उस दिन देरी से पहुँचने की वजह से मैं उनकी गायकी सुनने से “महरूम” रहा।
अच्छा, अब ये क़िस्सा सुनिये।ये कोई फ़र्ज़ी कहानी नहीं है बल्कि हक़ीक़त में ऐसा हुआ था। पिछले साल की बात है, हमारे अपार्टमेंट में गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम के मंच से ऐलान हुआ : “जो लोग अभी तक नहीं आए हैं, जल्दी चले आएं वरना पकोड़े से ‘मरहूम’ रह जाएँगे…”
दरअसल, वो “महरूम” कहना चाहते थे !
उर्दू 3
अक्सर पढ़ने/सुनने को मिलता है : अमुक व्यक्ति के विचार “आज के संदर्भ में भी उतने ही मौजूं हैं”, “मौजूं बात यह है कि…”,”मौजूं है प्रियंका गांधी का यह सवाल”, “मंटो की कालजयी रचनाएं आज भी मौजूं” या “ये बहस मौज़ूं मालूम होता है”
जहाँ तक मुझे समझ में आया, इन सब में “मौजूं” लफ़्ज़ का इस्तेमाल “उचित”,”समुचित”, “प्रासंगिक” या “relevant” के सेंस में हुआ है।लेकिन जब हम उर्दू में ये शब्द तलाशने की कोशिश करते हैं तो नहीं मिलता। इस सेंस का जो शब्द मिलता/इस्तेमाल होता है वो है, “मौज़ूं”।
जैसे ज़ुबैर फ़ारूक़ का ये शेर देखें :
“इतनी सर्दी है कि मैं बाहों की हरारत मांगू
रुत ये मौज़ूं है कहाँ घर से निकलने के लिए”
यहाँ “मौज़ूं” का मतलब है : “उचित”, “समुचित”, “प्रासंगिक”,”relevant”। ये अरबी से उर्दू में आया है और “मौज़ूं” से “मौज़ूं-तरीन” लफ़्ज़ बना है। जैसे कहते हैं : अमुक व्यक्ति इस ओहदे (पोस्ट/पद) के लिए मौज़ूं-तरीन उम्मीदवार है। यहाँ ये लफ्ज़ most appropriate के सेंस में इस्तेमाल हुआ है।
लेकिन ऐसा देखने/सुनने और पढ़ने में आया है कि लोग “मौज़ूं” का मतलब topic/विषय समझ लेते है या फिर उस सेंस में इस्तेमाल करते हैं।जैसे लोग लिखते/बोलते है : “ख़ैर यह मौज़ूं एक अलग लेख में उठाए जाने चाहिए” या “तवील होने का छींटा किसी बहस का मौज़ूं नहीं बन सकता”।
इन दोनों वाक्यों में मौज़ूं लफ़्ज़ का इस्तेमाल “विषय” के सेंस में हुआ जो कि मुनासिब नहीं है क्योंकि जो लफ़्ज़ इस्तेमाल होना चाहिए वो “मौज़ू” है न कि “मौज़ूं”।
शायद “अब्बास ताबिश” के इस शेर ये “मौज़ू” और वाज़ेह (clear) हो :
“ज़रा सी देर को मौसम का ज़िक्र आया था
फिर उस के बाद तो मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू तुम थे”
इसको इस तरह से भी समझ सकते हैं : “मौज़ूं बहस” मतलब “प्रासांगिक बहस” और “मौज़ू-ए-बहस” का मतलब “बहस का विषय”।
उर्दू 2
महताब आलम
नाज़नीन, नाज़मीन और नाज़रीन
ये तीन ऐसे अल्फ़ाज़ हैं जिनके बारे में हम अकसर कन्फ़्यूज़ हो जाते हैं। तीनों शब्दों का अर्थ और इस्तेमाल पता हो तो कन्फ़्यूज़न का इमकान (chance) कम रहता है।
“नाज़नीन” मतलब “सुंदरी”, “प्रिय” या “sweetheart”, “lovely” .
जैसे आपने ये गाना सुना होगा :
“ऐ नाज़नीं सुनो ना, हमें तुमपे हक़ तो दो ना, चाहे तो जान लो न
के देखा तुम्हें तो होश उड़ गए, होंठ जैसे खुद ही सिल गए
ऐ नाज़नीं सुनो ना…”
यहाँ “सुंदरी” और “प्रिय” के सेंस में ही इस्तेमाल हुआ है। “नाज़नीन” को “नाज़नीं” भी पढ़ते/बोलते हैं।
दूसरा शब्द है , “नाज़मीन”। ये शब्द “नाज़िम” का बहुवचन है, जिसके मतलब होता है “इंतेज़ाम करने वाला”।
ये शब्द “संचालक”, “मैनेजर”, “प्रबंधक”, “हाकिम” के सेंस में भी इस्तेमाल होता है। जैसे : मुशायरे का संचालन करने वाले को “नाज़िम ए मुशायरा” कहते हैं।
अनवर जलालपुरी नाम के एक मशहूर “नाज़िम ए मुशायरा” हुए हैं, जिन्होंने “उर्दू शायरी में गीता” और “उर्दू शायरी में गीतांजलि” जैसी किताबें भी लिखीं।
और “#नाज़रीन” कहते हैं देखने वालों को। इसका इस्तेमाल “दर्शकों/viewers” के सेंस में होता है । इसी तरह सुनने वालों/श्रोतागण को “सामईन” (listeners) और पढ़ने वालों/पाठकों को “क़ारईन” (readers) कहते हैं।
“आब-ए-ज़मज़म का पानी” और “शबे बरात की रात”
आपको पता होगा कि मुसलमान हज करने मक्का जाते हैं और वहां से लौटते समय कुछ लायें या न लायें “आब-ए-ज़मज़म” ज़रूर लाते हैं और लोगों में बाँटते हैं।
“आब-ए-ज़मज़म” का मतलब होता है “ज़मज़म का पानी”। “आब” का मतलब होता है “पानी”। ये फ़ारसी से उर्दू में आया है और ज़मज़म एक कुआँ का नाम है जो कि मक्का में है।
“आब” से ही “आबपाशी” और “आबयारी” जैसे अल्फ़ाज़ (लफ़्ज़ का बहुवचन) बने हैं। दोनों शब्दों का इस्तेमाल “सिंचाई/irrigation” के सेंस में होता है। इसीलिए “सिंचाई विभाग/ irrigation department” को उर्दू में “महकमा-ए-आबपाशी” बोलते हैं।
इसीलिए “आब-ए-ज़मज़म” के साथ पानी लगाने की ज़रुरत नहीं है जैसा कि लोग जाने-अनजाने में कर बैठते हैं. जैसे इस वाक्य में किया गया है, “चमत्कारिक है आब-ए-जमजम का पानी”। ऐसा कहना/बोलना या लिखना “ग़लती से mistake हो गया” कहने/बोलने या “पवित्र गंगाजल का पानी” कहने/बोलने/लिखने जैसा है ! इसी तरह से “शबे बरात की रात” लिखना/बोलना भी मुनासिब नहीं है क्योंकि “शब” का मतलब “रात” होता है।
जैसे “विनोद कुमार त्रिपाठी बशर” का शेर देखें :
“हो न आमद तिरी जिस शब तो वो शब शब ही नहीं
नींद उस रात बग़ावत पे उतर आती है”
सबसे ज़्यादा खुशी
एक टेलीफोन साक्षात्कार में, रेडियो उद्घोषक ने अपने एक करोड़पति अतिथि से पूछा, "आपको जीवन में सबसे ज़्यादा खुशी 😊कब और कैसे मिली ?"
करोड़पति ने कहा:
मैं जीवन में खुशियों 😄 के चार पड़ावों से गुजरा हूं और आखिरकार मैंने सच्चे सुख का मतलब समझा। पहला चरण धन और साधनों का संचय करना था। लेकिन इस पड़ाव पर मुझे वह खुशी नहीं मिली जो मैं चाहता था।
तब कीमती सामान और वस्तुओं को इकट्ठा करने का दूसरा चरण आया। लेकिन मैंने महसूस किया कि इस चीज का प्रभाव भी अस्थायी है और मूल्यवान चीजों की चमक लंबे समय तक नहीं रहती है।
फिर बड़े प्रोजेक्ट्स पाने का तीसरा चरण आया। जैसे फुटबॉल टीम खरीदना, टूरिस्ट रिसोर्ट खरीदना आदि, लेकिन यहां भी मुझे वह खुशी नहीं मिली जिसकी मैंने कल्पना की थी।
चौथी बार मेरे एक मित्र ने मुझे कुछ विकलांग बच्चों के लिए व्हीलचेयर खरीदने के लिए कहा।
उस मित्र के अनुरोध पर मैंने तुरंत एक व्हीलचेयर खरीदी। लेकिन दोस्त ने जोर देकर कहा कि मैं उसके साथ जाऊँ और बच्चों को व्हीलचेयर स्वयं दूँ । मैं तैयार हो गया और उसके साथ चला गया। वहाँ मैंने अपने हाथों से उन बच्चों को ये व्हीलचेयर दी । मैंने उन बच्चों के चेहरों पर खुशी की अजीब सी चमक देखी। मैंने उन सभी को कुर्सियों पर बैठते, घूमते और मस्ती करते देखा। नज़ारा ऐसा था कि जैसे वे किसी पिकनिक स्थल पर गए हों।
लेकिन मुझे असली खुशी तब महसूस हुई जब मैं वहाँ से जाने के तैयार हुआ और बच्चों में से एक ने मेरा पैर पकड़ लिया। मैंने धीरे से अपने पैरों को छुड़ाने की कोशिश की लेकिन बच्चे ने मेरे चेहरे को देखा और मेरे पैरों को कसकर पकड़ लिया।
मैं नीचे झुका और बच्चे से धीरे से पूछा: क्या तुम्हें और भी कुछ चाहिए?
इस बच्चे ने जो जवाब दिया, उससे न केवल मुझे खुशी हुई, बल्कि मेरी ज़िंदगी भी पूरी तरह से बदल गई। इस बच्चे ने कहा: "मैं आपके चेहरे को याद करना चाहता हूं ताकि जब मैं आपसे स्वर्ग में मिलूं, तो मैं आपको पहचान पाऊंगा और एक बार और धन्यवाद दूंगा"
अस्तु ।
English Story
In a telephone interview, the radio announcer asked his guest, a millionaire, "What made you happiest in life?"
The millionaire said:
I have gone through four stages of happiness in life and finally I understood the meaning of true happiness. The first stage was to accumulate wealth and means. But at this stage I did not get the happiness I wanted. Then came the second stage of collecting valuables and items. But I realized that the effect of this thing is also temporary and the lustre of valuable things does not last long.
Then came the third stage of getting big projects. Like buying a football team, buying a tourist resort, etc. But even here I did not get the happiness I had imagined. The fourth time a friend of mine asked me to buy a wheelchair for some disabled children.
At a friend's request, I immediately bought a wheelchair. But the friend insisted that I go with him and hand over the wheelchairs to the children. I got ready and went with it. There I give these chairs to these children with my own hands. I saw the strange glow of happiness on the faces of these children. I saw them all sitting on chairs, moving around and having fun. It was as if they had arrived at a picnic spot.
But I felt real joy when I started to leave and one of the kids grabbed my leg. I gently tried to free my legs but the child stared at my face and held my legs tightly.
I bent down and asked the child: Do you need anything else?
The answer that this child gave me not only made me happy but also changed my life completely. This child said: "I want to remember your face so that when I meet you in heaven, I will be able to recognize you and thank you once again"
Sanskrit, a magical language
1. There is no need of particular sentence structure for Sanskrit.
Like, In English:- Subject +Verb + Object
Ex:- I am writing an answer.
But in Sanskrit there is no need for particular structure.
अहं उत्तरम् लिखामि (I am writing an Answer.)
लिखामि अहं उत्तरम् (I am writing an Answer.)
अहं लिखामि उत्तरम् (I am writing an Answer.) .
2. Elephant word has 4000 synonyms in Sanskrit. Here are some of them.
कुञ्जरः,गजः,हस्तिन्, हस्तिपकः,द्विपः,द्विरदः,वारणः,करिन्,मतङ्गः,सुचिकाधरः, सुप्रतीकः, अङ्गूषः, अन्तेःस्वेदः, इभः, कञ्जरः, कञ्जारः, कटिन्, कम्बुः, करिकः, कालिङ्गः, कूचः, गर्जः, चदिरः, चक्रपादः, चन्दिरः, जलकाङ्क्षः, जर्तुः, दण्डवलधिः, दन्तावलः, दीर्घपवनः, दीर्घवक्त्रः, द्रुमारिः, द्विदन्तः, द्विरापः, नगजः, नगरघातः, नर्तकः, निर्झरः, पञ्चनखः, पिचिलः, पीलुः, पिण्डपादः, पिण्डपाद्यः, पृदाकुः, पृष्टहायनः, पुण्ड्रकेलिः, बृहदङ्गः, प्रस्वेदः, मदकलः, मदारः, महाकायः, महामृगः, महानादः, मातंगः, मतंगजः, मत्तकीशः, राजिलः, राजीवः, रक्तपादः, रणमत्तः, रसिकः, लम्बकर्णः, लतालकः, लतारदः, वनजः, वराङ्गः, वारीटः, वितण्डः, षष्टिहायनः, वेदण्डः, वेगदण्डः, वेतण्डः, विलोमजिह्वः, विलोमरसनः, विषाणकः।
This is just one example. Have you seen any language with such rich vocabulary?
3. Magha was a great Sanskrit Poet and Author. He was an expert in writing a whole Sloka with one-two-three-four consonants. Here is just an example from his book Shishupala Vadha:-
In 144th stanza, he writes whole sloka with only one consonant.
दाददो दुद्ददुद्दादी दाददो दूददीददोः ।
दुद्दादं दददे दुद्दे दादाददददोऽददः ॥
(Translation:- Sri Krishna, the giver of every boon, the scourge of the evil-minded, the purifier, the one whose arms can annihilate the wicked who cause suffering to others, shot his pain-causing arrow at the enemy.)
Also, he was an expert in writing palindromes. He writes in 44th stanza:-वारणागगभीरा सा साराभीगगणारवा ।
कारितारिवधा सेना नासेधा वारितारिका ॥
(Translation:- It is very difficult to face this army which is endowed with elephants as big as mountains. This is a very great army and the shouting of frightened people is heard. It has slain its enemies.)
4. Have you heard about any book which can give you different story when you read it from backward? Here is a book Sri Raghava Yadhaveeyam.
This book is written in such a way that you will enjoy the story of Rama when you read it in forward way while you will enjoy the story of Krishna when you read it from backward.
Forward:-
वन्देऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥
(Translation:- I pay my obeisance to Lord Shri Rama, who with his heart pining for Sita, travelled across the Sahyadri Hills and returned to Ayodhya after killing Ravana and sported with his consort, Sita, in Ayodhya for a long time.)
Backward:-
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी मारामोरा ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देहं देवं ॥
(Translation:- I bow to Lord Shri Krishna, whose chest is the sporting resort of Shri Lakshmi; who is fit to be contemplated through penance and sacrifice, who fondles Rukmani and his other consorts and who is worshipped by the gopis, and who is decked with jewels radiating splendour.)
5. NASA
scientist Rick Briggs said that Sanskrit is the only unambiguous language in existence. He also wrote some explanations about Sanskrit in his article.
6. Sanskrit is a language which is used as Speech Therapy. Sanskrit has five different classes of word — Kanthya (Spoken from throat), Talavya (Spoken while touching tongue to jaw), Dantya (Spoken while touching tongue to teeth), Murdhanya (Spoken by twisting tongue), Ostya (Spoken by lips).
7. Sanskrit has been identified as the most suitable programming languages for computers to understand. Research is going on to make a programming language in Sanskrit which can be compiled and executed million times faster than other programming languages.
संस्कृत
Sunday, October 4, 2020
english humour
वाघलधारा
Sunday, September 20, 2020
उर्दू 1
उर्दू तलफ़्फ़ुज़ की सुंदरता
Tuesday, September 8, 2020
महागुरु है मेरा कन्हैया...
Sunday, July 19, 2020
તો હું શું કરું?
Saturday, July 18, 2020
મહાભારતના ૯ સાર-સુત્રો
Sunday, July 5, 2020
रामायण के सात काण्ड
Saturday, June 27, 2020
हनुमान जी का कर्जा
Friday, June 5, 2020
सच्ची प्रार्थना
आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर - अपने घर की व्यापार की - राजनीति की चर्चा करते हैं, परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई थी । वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं । आप इस लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं । यह श्लोक इस प्रकार है -
अनायासेन मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।
इस श्लोक का अर्थ है अनायासेन मरणम्...... अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं ।
बिना देन्येन जीवनम्......... अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो । ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके ।
देहांते तव सानिध्यम ........अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले ।
देहि में परमेशवरम्..... हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।
यह प्रार्थना करें गाड़ी, लाडी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन यह नहीं मांगना है, यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं । इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए ।
यह प्रार्थना है, याचना नहीं है । याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है; वह याचना है, वह भीख है।
हम प्रार्थना करते हैं, प्रार्थना का अर्थ विशेष होता है अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ । अर्थना अर्थात निवेदन । ठाकुर जी से प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या करना है, यह श्लोक बोलना है :
सब से जरूरी बात
जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए । उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं । आंखें बंद क्यों करना - हम तो दर्शन करने आए हैं । भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, मुखारविंद का, शृंगार का, सम्पूर्ण आनंद लें । आंखों में भर ले - स्वरूप को । दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे, तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं, उस स्वरूप का ध्यान करें । मंदिर में नेत्र बंद नहीं करना । बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए, तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें । नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें।
यहीं शास्त्र हैं, यहीं बड़े बुजुर्गो का कहना हैं !
Tuesday, June 2, 2020
Intelligence and Wisdom
Thursday, May 28, 2020
A Collection of superb, hard hitting, humorous comments...
"In
my many years I have come to a conclusion, ... that one useless man is a
shame, two [useless men] is a law firm and three or more [useless men] is
a government."
~John
Adams
"If you don't read the newspaper you are uninformed, if you do read the newspaper, you are misinformed."
"I
contend that for a nation to try to tax itself into prosperity is like a
man standing in a bucket and trying to lift himself up by the
handle."
"A
government which robs Peter to pay Paul can always depend on the support
of Paul."
"Foreign aid might be defined as a transfer of money from poor people in rich countries to rich people in poor countries."
~ Douglas Casey, Classmate of Bill Clinton at Georgetown University
"Giving money and power to government is like giving whiskey and car keys to teenage boys."
~P.J. O'Rourke, Civil Libertarian
"Just because you do not take an interest in politics doesn't mean politics won't take an interest in you!"
~Pericles (430 B.C.)
"No man's life, liberty, or property is safe while the legislature is in session."
~Mark Twain (1866)
"The government is like a baby's alimentary canal, with a happy appetite at one end and no responsibility at the other."
~ Ronald Reagan
"The only difference between a tax man and a taxidermist is that the taxidermist leaves the skin."
~Mark Twain
"What this country needs are more unemployed politicians."
~Edward Langley, Artist (1928-1995)
"A government big enough to give you everything you want, is strong enough to take everything you have."
~Thomas Jefferson
"We hang the petty thieves and appoint the great ones to public office."
~Aesop
"If you think health care is expensive now, wait until you see what it costs when it's free!"
~P.J. O'Rourke